रांचीः झारखंड सरकार हर साल की तरह इस बार भी 15 दिसंबर से धान की खरीद की शुरुआत की. 8 लाख मीट्रिक टन धान खरीद का लक्ष्य रखा गया है, मगर जो स्थितियां बन रही हैं उससे तो यही लग रहा है कि लक्ष्य के आधा भी पूरा करना सरकार के लिए मुश्किल है. इसके अलावा सरकारी अव्यवस्थाएं इतनी हैं, जिससे किसान काफी परेशान हो रहे हैं.
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एक तरफ झारखंड में सुखाड़ की वजह से धान की पैदावार कम हुई वहीं दूसरी तरफ जो भी धान देर सवेर किसानों ने उपजाए उसका उचित मूल्य मिलना मुश्किल हो रहा है. राज्य सरकार ने हर साल की तरह इस बार भी 15 दिसंबर से धान की खरीद की शुरुआत की और 8 लाख मीट्रिक टन खरीदने का लक्ष्य रखा. धान खरीद की धीमी रफ्तार के पीछे कई वजह हैं, जिसके कारण लैम्प्स से लेकर किसान तक बेहद परेशान हैं. ईटीवी भारत ने धान खरीद को लेकर जब पड़ताल करनी शुरू की तो कई तथ्य ऐसे सामने आए जो वाकई में गंभीर चिंता का विषय है.
क्यों नहीं हो पा रहा है धान खरीदः लक्ष्य के अनुरूप धान खरीद नहीं होने के पीछे बड़ी वजह यह है कि राज्य में बिचौलिए हावी हैं, जो किसानों से उनके घरों तक पहुंचकर सरकारी दर के इर्द-गिर्द दाम देकर धान खरीद लेते हैं. घर पर ही किसानों को हाथों हाथ मिल रहे पैसे से बिचौलियों की ओर ये किसान आकर्षित होते हैं और अपनी मेहनत की कमाई जल्द से जल्द निकालने की कोशिश में उसे बेच देते हैं. राज्य सरकार ने इस साल पिछले वर्ष की तरह साधारण धान का मूल्य 2050 और ग्रेड ए धान की कीमत 2070 रुपया निर्धारित कर रखा है.
सरकारी दर पर धान बेचने के लिए किसानों को लैम्प्स तक धान पहुंचाना होता है. धान बिक्री से प्राप्त होनेवाली राशि का 50 प्रतिशत राशि उन्हें 48 घंटे के भीतर मिलेगा. उसके बाद शेष 50 फीसदी राशि मिलर के द्वारा गोदाम में पड़े धान को उठाव किए जाने के बाद 90 दिन के भीतर मिलेगा. सरकार की इस व्यवस्था का लाभ लेने के लिए किसानों को कई बार सरकारी कार्यालयों में चक्कर लगाने पड़ते हैं. इस बार बिचौलियों ने सरकारी दर से थोड़ा सा नीचे यानी 1900 रुपए क्विंटल कि दर से किसानों के घर से ही थान खरीदना शुरू कर दिया जिसके कारण लेंम्प्स में रजिस्टर्ड किसान सरकारी व्यवस्था से मुंह मोड़ते हुए बिचौलियों को ध्यान देकर पूंजी निकालना ही उचित समझा.
लैम्प्स गोदाम में धान सड़ रहे हैं! सरकार की इन व्यवस्थाओं के बीच शुरुआती दौर में राज्य के किसानों ने धान को बेचने के लिए लैम्प्स की ओर जरूर रुख किया मगर धीरे-धीरे धान बेचने वाले किसानों की संख्या कम होती चली गई. हालत यह है कि 11 मार्च तक लक्ष्य का आधा भी पार करने में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग सफल नहीं हुआ है. करीब 14 लाख क्विंटल धान पूरे राज्य भर में खरीद किए गए हैं. मगर विडंबना यह है की किसानों से खरीद की गई हजारों क्विंटल धान मिलर के द्वारा उठाव नहीं किए जाने के कारण यूं ही लैम्प्स के गोदाम में पड़े हुए हैं.
राज्य सरकार ने 85 मिलर के साथ अनुबंध कर रखा है. मिलर के द्वारा धान का उठाव होने पर ही किसानों के 50 प्रतिशत राशि का भुगतान सरकारी प्रावधान के अनुसार हो पाएगा. धान उठाव नहीं होने के पीछे का वजह यह माना जा रहा है कि सरकारी प्रावधानों के अनुसार धान मिलर को प्रति क्विंटल 20 रुपया देने का प्रावधान है जिसे मिलर बढ़ाने की मांग लगातार कर रहे हैं, जिस पर अब तक कोई निर्णय नहीं होने से मिलर नाराज हैं. गोदाम में पड़े धान का उठाव नहीं होने से जहां किसानों को राशि मिलने में परेशानी हो रही है.
वहीं दूसरी ओर सरकार को धान के बदले चावल मिल मालिक से मिलने वाले चावल नहीं मिल पा रहा है. कई महीनों से लैंप्स गोदाम में पड़े धान अब बर्बाद भी होने लगे हैं. ईटीवी भारत की टीम ने जब नामकुम लैम्प्स का जायजा लिया तो यह हकीकत सामने आया. लैम्प्स मैनेजर नीरज कुमार की माने तो गोदाम में रखे धान जहां सूख रहे हैं जिससे कहीं ना कहीं लैम्प्स को ही घाटा लगेगा वहीं धान को चूहा खा रहे हैं जिससे खरीदे गए धान की बर्बादी हो रही है.
सरकारी आंकड़ेः 11 मार्च के अनुसार 2023 के धान खरीद संबंधी सरकारी आंकड़े देखें तो एमएसपी केंद्र 618, मिलर 85, गोदाम 57, अब तक धान प्राप्ति 1398155.68 क्विंटल, जिसकी भुगतान राशि 1 अरब 19 करोड़ 77 लाख 42 हजार 213 रुपया है. वहीं जिलावार धान प्राप्ति इस प्रकार है. पूर्वी सिंहभूम- 493348.41 क्विंटल, गिरिडीह -101247.46 क्विंटल, चतरा -75623.34 क्विंटल, बोकारो -31511. 88 क्विंटल, पश्चिमी सिंहभूम- 43445.1 क्विंटल, रांची -71752.03 क्विंटल, सरायकेला खरसावां- 29490.08 क्विंटल, रामगढ़ -109316.76 क्विंटल, लातेहार -26441.12 क्विंटल, लोहरदगा 14469.89 क्विंटल, कोडरमा- 61384.57 क्विंटल, जामताड़ा- 9442.54 क्विंटल, हजारीबाग 2326285.7 क्विंटल, गढ़वा- 15711.39 क्विंटल और गुमला -32693.95 क्विंटल शामिल है.