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डीलिस्टिंग महारैली का जवाब देगी आदिवासी एकता महारैली, धर्म बदलने वाले को आदिवासी का दर्जा नहीं देने की मांग पर छिड़ा घमासान

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 25, 2023, 7:01 PM IST

Converted tribals should not get the benefit of reservation. आदिवासी एकता महारैली के माध्यम से उलगुलान डीलिस्टिंग महारैली का जवाब दिया जाएगा. धर्म बदलने वालों को आदिवासी का दर्जा नहीं देने की मांग पर घमासान शुरू हो गया है.

Converted tribals did not get the benefits of reservation
Converted tribals did not get the benefits of reservation

रांची: झारखंड में आदिवासी और धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों के हक के मसले पर राजनीतिक घमासान छिड़ गया है. जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आयोजित उलगुलान डीलिस्टिंग महारैली के खिलाफ आदिवासी एकता महारैली की घोषणा की गई है. 24 दिसंबर को रांची में मंच की ओर से लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष समेत अन्य आदिवासी नेताओं ने मांग की थी कि जिन लोगों ने अपनी मर्जी से आदिवासी रीति-रिवाज और परंपरा छोड़ दी है, उन्हें आदिवासियों को प्राप्त लाभ नहीं मिलना चाहिए. एससी के साथ जो प्रावधान है, वहीं एसटी के साथ भी लागू होना चाहिए.

इसके विरोध में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सह सरकार की समन्वय समिति के सदस्य बंधु तिर्की ने झारखंड जनाधिकार मंच के बैनर तले 4 फरवरी 2024 को मोरहाबादी में आदिवासी एकता महारैली करने की घोषणा की है. बंधु तिर्की ने कहा है कि इस महारैली में न केवल आदिवासियों के मुद्दे पर गहन विमर्श करते हुए आदिवासियों को वास्ताविक ज़मीनी स्थिति से परिचित कराया जायेगा बल्कि आवश्यकता होने पर तीव्र आंदोलन का भी फैसला लिया जायेगा.

बंधु तिर्की ने कहा कि यह चुनावी साल है. अबतक केवल अपने मतलब के लिये आदिवासियों को माध्यम बनाकर स्वार्थी तत्वों ने अपना उल्लू सीधा किया है. इस बार आदिवासियों को केवल अपने मतलब के लिये वैसे स्वार्थी और समाज विरोधी तत्वों का हथियार और आहार नहीं बनने देंगे. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को बरगलाने की साजिश चल रही है. स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी आदिवासियों की स्थिति दयनीय है. वे अपने जीवन की जटिल समस्याओं से जूझते हुए भोजन, वस्त्र, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के लिये तो संघर्ष कर रहे हैं अपनी जमीन से भी हाथ धोते जा रहे हैं.

बंधु तिर्की का कहना है कि जिन लोगों का झारखण्ड की जमीन से भावनात्मक जुड़ाव नहीं है उनमें से अधिकांश लोग बाहर से आये हैं और उन्होंने झारखंड को चारागाह समझ लिया है. वैसे ही तत्वों द्वारा विशेष रूप से आदिवासियों को उनकी जमीन से उखाड़ा-उज़ाड़ा जा रहा है. नतीजा यह कि आदिवासी, पलायन और विस्थापन के लिए मजबूर हैं. कांग्रेस नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार एक-एक कर आदिवासियों के अधिकारों को खत्म कर रही है. यदि यही स्थिति बरकरार रही तो आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन के साथ ही अपनी संस्कृति से भी हाथ धो बैठेंगे. आदिवासियों को अपने-आप को संभालना पड़ेगा और इसी के मद्देनजर झारखंड जनाधिकार मंच ने आदिवासी एकता महारैली बुलाई है.

कांग्रेस नेता का कहना है कि पांचवी अनुसूची का लाभ भी झारखंड को नहीं मिल पा रहा है. वन अधिकार कानून के कारण आदिवासियों के अधिकार सीमित हो गये हैं. उन आदिवासियों को अपने जंगल से हटाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने आदिवासियों से अपील की है कि वह अपने बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन करने और अपनी विचारधारा को बचाने के लिये आदिवासियत और आदिवासी संस्कृति के साथ एकजुट हो जायें. अब देखना है कि यह विवाद और कौन से रुप लेता है.

रांची: झारखंड में आदिवासी और धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासियों के हक के मसले पर राजनीतिक घमासान छिड़ गया है. जनजाति सुरक्षा मंच की ओर से आयोजित उलगुलान डीलिस्टिंग महारैली के खिलाफ आदिवासी एकता महारैली की घोषणा की गई है. 24 दिसंबर को रांची में मंच की ओर से लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष समेत अन्य आदिवासी नेताओं ने मांग की थी कि जिन लोगों ने अपनी मर्जी से आदिवासी रीति-रिवाज और परंपरा छोड़ दी है, उन्हें आदिवासियों को प्राप्त लाभ नहीं मिलना चाहिए. एससी के साथ जो प्रावधान है, वहीं एसटी के साथ भी लागू होना चाहिए.

इसके विरोध में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सह सरकार की समन्वय समिति के सदस्य बंधु तिर्की ने झारखंड जनाधिकार मंच के बैनर तले 4 फरवरी 2024 को मोरहाबादी में आदिवासी एकता महारैली करने की घोषणा की है. बंधु तिर्की ने कहा है कि इस महारैली में न केवल आदिवासियों के मुद्दे पर गहन विमर्श करते हुए आदिवासियों को वास्ताविक ज़मीनी स्थिति से परिचित कराया जायेगा बल्कि आवश्यकता होने पर तीव्र आंदोलन का भी फैसला लिया जायेगा.

बंधु तिर्की ने कहा कि यह चुनावी साल है. अबतक केवल अपने मतलब के लिये आदिवासियों को माध्यम बनाकर स्वार्थी तत्वों ने अपना उल्लू सीधा किया है. इस बार आदिवासियों को केवल अपने मतलब के लिये वैसे स्वार्थी और समाज विरोधी तत्वों का हथियार और आहार नहीं बनने देंगे. उन्होंने कहा कि आदिवासियों को बरगलाने की साजिश चल रही है. स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी आदिवासियों की स्थिति दयनीय है. वे अपने जीवन की जटिल समस्याओं से जूझते हुए भोजन, वस्त्र, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के लिये तो संघर्ष कर रहे हैं अपनी जमीन से भी हाथ धोते जा रहे हैं.

बंधु तिर्की का कहना है कि जिन लोगों का झारखण्ड की जमीन से भावनात्मक जुड़ाव नहीं है उनमें से अधिकांश लोग बाहर से आये हैं और उन्होंने झारखंड को चारागाह समझ लिया है. वैसे ही तत्वों द्वारा विशेष रूप से आदिवासियों को उनकी जमीन से उखाड़ा-उज़ाड़ा जा रहा है. नतीजा यह कि आदिवासी, पलायन और विस्थापन के लिए मजबूर हैं. कांग्रेस नेता ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार एक-एक कर आदिवासियों के अधिकारों को खत्म कर रही है. यदि यही स्थिति बरकरार रही तो आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन के साथ ही अपनी संस्कृति से भी हाथ धो बैठेंगे. आदिवासियों को अपने-आप को संभालना पड़ेगा और इसी के मद्देनजर झारखंड जनाधिकार मंच ने आदिवासी एकता महारैली बुलाई है.

कांग्रेस नेता का कहना है कि पांचवी अनुसूची का लाभ भी झारखंड को नहीं मिल पा रहा है. वन अधिकार कानून के कारण आदिवासियों के अधिकार सीमित हो गये हैं. उन आदिवासियों को अपने जंगल से हटाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने आदिवासियों से अपील की है कि वह अपने बीच किसी भी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन करने और अपनी विचारधारा को बचाने के लिये आदिवासियत और आदिवासी संस्कृति के साथ एकजुट हो जायें. अब देखना है कि यह विवाद और कौन से रुप लेता है.

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