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50 करोड़ की दवा घोटाले में एसीबी ने दर्ज की पीई, मुख्यमंत्री ने दिया था जांच का आदेश

रांची के स्वास्थ्य विभाग में 50 करोड़ की दवा खरीद मामले में एसीबी ने पीई दर्ज की है. इसे लेकर मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दिया था.

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Published : Oct 13, 2020, 9:42 PM IST

Updated : Oct 13, 2020, 10:03 PM IST

Acb filed PI in a 50 crore drug scam in ranchi
एसीबी

रांची: स्वास्थ्य विभाग में 50 करोड़ से अधिक की गैरजरूरी दवाओं की खरीद और उसे गोदाम में सड़ाने के मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश पर एसीबी ने इस मामले में पीई दर्ज की है.


स्वास्थ्य विभाग की सहमति के बाद पीई दर्ज करने को मंजूरी
20 सितंबर को सीएम ने 50 करोड़ के गैरजरूरी दवाओं की खरीद और उसकी बर्बादी के मामले में एसीबी जांच के आदेश दिए थे. 17 दिसंबर 2018 को मीडिया रिपोर्ट्स में दवाओं की खरीद और सड़ने की खबरें आयी थी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश के बाद इस मामले में स्वास्थ्य विभाग से भी जांच के संबंध में मंतव्य की मांग की गई थी. स्वास्थ्य विभाग ने भी जांच संबंधी मंतव्य एसीबी को भेजा है. जिसके बाद एसीबी ने पीई दर्ज की है. एसीबी ने पीई में झारखंड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के तात्कालिन अधिकारियों व कर्मियों को आरोपी बनाया है.

क्या है पूरा मामला
झारखंड में साल 2007-09 के बीच झारखंड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ने दवाइयां खरीदी थी तब खरीदी गई दवाओं की एक्सपायरी डेट तीन से छह माह ही थी. हर्बल मेडिसीन और अन्य दवाओं को भी बगैर जरूरत खरीद लिया गया था. फंसने के डर से अधिकारियों ने बाद में दवाओं को बिना जरूरत जिलों में भेज दिया था. एनआरएचएम को वापस की गई दवाओं को नामकुम के वेयर हाउस में रखा गया था. जहां ये दवाईयां एक्सपायरी होकर सड़ गई थी. बीते साल तात्कालिन स्वास्थ्य निदेशक ने दवाईयों को नष्ट करने के संबंध में आदेश मांगा था तब मामला सामने आया था.

साल 2018 में जिलों ने वापस कर दी थी दवाएं
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के रूटीन इम्यूनाइजेशन सेल ने बताया था कि आईफेपिन यानि आयरन फोलिक एसिड टैबलेट जूनियर की जरूश्रत नहीं है. इसके बावजूद 20 करोड़ की टैबलेट की खरीद की योजना बना ली गई थी. स्वास्थ्य विभाग ने साल 2018 में ही आईएफए सिरप की भी खरीद की थी, जिसके एक्सपायरी डेट मई 2019 थे. शार्ट एक्सपायरी डेट होने के कारण इस दवा को भी कई जिलों ने लेने से इंकार कर दिया था. साल 2017 में श्रावणी मेले के दौरान भी 1.10 करोड़ रुपये की 24.71 लाख एमोक्सीलिन टैबलेट दवा बर्बाद हो गए थे. इस दवा की सप्याली उसी साल मार्च में हुई थी.

किस आधार पर जांच के आदेश
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 20 सितंबर को इस मामले में एसीबी जांच के आदेश दिए थे. मुख्यमंत्री ने अपने आदेश में कहा था कि यह मामला दवाईयों के रख-रखाव से संबंधित जिलों में आपूर्ति जैसे नीतिगत विषय के अंतर्गत आता है. स्वास्थ्य विभाग ने बेवजह गैर जरूरी दवाएं क्यों खरीद ली, फिर ये दवाएं कैसे सड़ गईं, यह गंभीर मामला है.

रांची: स्वास्थ्य विभाग में 50 करोड़ से अधिक की गैरजरूरी दवाओं की खरीद और उसे गोदाम में सड़ाने के मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने शुरू कर दी है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश पर एसीबी ने इस मामले में पीई दर्ज की है.


स्वास्थ्य विभाग की सहमति के बाद पीई दर्ज करने को मंजूरी
20 सितंबर को सीएम ने 50 करोड़ के गैरजरूरी दवाओं की खरीद और उसकी बर्बादी के मामले में एसीबी जांच के आदेश दिए थे. 17 दिसंबर 2018 को मीडिया रिपोर्ट्स में दवाओं की खरीद और सड़ने की खबरें आयी थी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आदेश के बाद इस मामले में स्वास्थ्य विभाग से भी जांच के संबंध में मंतव्य की मांग की गई थी. स्वास्थ्य विभाग ने भी जांच संबंधी मंतव्य एसीबी को भेजा है. जिसके बाद एसीबी ने पीई दर्ज की है. एसीबी ने पीई में झारखंड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के तात्कालिन अधिकारियों व कर्मियों को आरोपी बनाया है.

क्या है पूरा मामला
झारखंड में साल 2007-09 के बीच झारखंड मेडिकल एंड हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड ने दवाइयां खरीदी थी तब खरीदी गई दवाओं की एक्सपायरी डेट तीन से छह माह ही थी. हर्बल मेडिसीन और अन्य दवाओं को भी बगैर जरूरत खरीद लिया गया था. फंसने के डर से अधिकारियों ने बाद में दवाओं को बिना जरूरत जिलों में भेज दिया था. एनआरएचएम को वापस की गई दवाओं को नामकुम के वेयर हाउस में रखा गया था. जहां ये दवाईयां एक्सपायरी होकर सड़ गई थी. बीते साल तात्कालिन स्वास्थ्य निदेशक ने दवाईयों को नष्ट करने के संबंध में आदेश मांगा था तब मामला सामने आया था.

साल 2018 में जिलों ने वापस कर दी थी दवाएं
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के रूटीन इम्यूनाइजेशन सेल ने बताया था कि आईफेपिन यानि आयरन फोलिक एसिड टैबलेट जूनियर की जरूश्रत नहीं है. इसके बावजूद 20 करोड़ की टैबलेट की खरीद की योजना बना ली गई थी. स्वास्थ्य विभाग ने साल 2018 में ही आईएफए सिरप की भी खरीद की थी, जिसके एक्सपायरी डेट मई 2019 थे. शार्ट एक्सपायरी डेट होने के कारण इस दवा को भी कई जिलों ने लेने से इंकार कर दिया था. साल 2017 में श्रावणी मेले के दौरान भी 1.10 करोड़ रुपये की 24.71 लाख एमोक्सीलिन टैबलेट दवा बर्बाद हो गए थे. इस दवा की सप्याली उसी साल मार्च में हुई थी.

किस आधार पर जांच के आदेश
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 20 सितंबर को इस मामले में एसीबी जांच के आदेश दिए थे. मुख्यमंत्री ने अपने आदेश में कहा था कि यह मामला दवाईयों के रख-रखाव से संबंधित जिलों में आपूर्ति जैसे नीतिगत विषय के अंतर्गत आता है. स्वास्थ्य विभाग ने बेवजह गैर जरूरी दवाएं क्यों खरीद ली, फिर ये दवाएं कैसे सड़ गईं, यह गंभीर मामला है.

Last Updated : Oct 13, 2020, 10:03 PM IST
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