रांची: झारखंड एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी आधी आबादी गांवों में बसती है. पठारी क्षेत्र होने के बाद भी यहां की भूमि कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है. यहां के लोग पहले पारंपरिक तरीके से ही कृषि पर निर्भर थे लेकिन अब लोगों ने मिश्रित खेती भी करना शुरू कर दिया है. जैसे लोग सिर्फ फसल की कटाई से संबंधित कृषि करते थे लेकिन अब पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे खेती कर झारखंड की कृषि दर को बढ़ाने का काम किया है.
कृषि क्षेत्र की बात करें तो 2004-5 से 2015-16 तक 8. 6 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ा है पिछले कुछ वर्षों 2013-14 में कृषि फसल विकास दर - 4.5 प्रतिशत के आसपास थी. जो बढ़कर 14.5 प्रतिशत लगभग हो गई है। यानी कृषि विकास दर में बढ़ोतरी हुई है. ईटीवी भारत के साथ बातचीत अर्थशास्त्री ज्योति प्रकाश ने बताया कि झारखंड अलग होने के बाद झारखंड कृषि के क्षेत्र में विकास किया है लेकिन जितना करना था उससे थोड़ा पीछे रह गया है. झारखंड मे कृषि का क्षेत्र पूरी तरह मॉनसून पर आधारित है यहां की खेती सिर्फ वर्षा के पानी पर आश्रित होती, साल भर में चार महीने है. बारिश होती है लेकिन उसका भी कोई निश्चित समय नहीं है.
ये भी देखें- रांची में अब सिटी बसों का संचालन करेगा नगर निगम, संवेदकों ने खींचे हाथ, कहा- नहीं हो रहा फायदा
सबसे पहले हम लोगों को वर्षा के पानी को संचयन करने की जरूरत है. तब जाकर हमारी एग्रीकल्चर सेक्टर की उत्पादन क्षमता बढ़ सकती है. झारखंड पठारी क्षेत्र होने के कारण भी यहां पर पानी का संचयन नहीं हो पाता है. बिहार जिस तरह से नदी को नदी से जोड़ने की योजना चलाई गई थी.उसी के तर्ज पर झारखंड में तालाब को तालाब से जोड़ने की किसानों के द्वारा सुझाव दिया गया था लेकिन यह योजना पूरी तरह विफल रही जिसके कारण वर्षा के पानी संचयन की समस्या का निवरण नहीं हो सका. जल संचयन झारखंड के कृषि के विकास में सबसे बड़ी समस्या है. कृषि के क्षेत्र में में विकास के लिए झारखंड को जल संचयन इस गंभीर समस्या से निजात पाना बहुत आवश्यक है.