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खेती के लिए मुफिद झारखंड की जमीन, अर्थशास्त्री ने दिए कई टिप्स

झारखंड पठारी क्षेत्र होने के कारण भी यहां पर पानी का संचयन नहीं हो पाता है पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां खेती के लिए जल संचयन की बहुत बड़ी समस्या है जिसके लिए अर्थशास्त्री ज्योति प्रकाश ने अपने सुझाव दिए.

महिला किसान
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Published : Nov 18, 2019, 11:46 PM IST

Updated : Nov 22, 2019, 8:35 PM IST

रांची: झारखंड एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी आधी आबादी गांवों में बसती है. पठारी क्षेत्र होने के बाद भी यहां की भूमि कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है. यहां के लोग पहले पारंपरिक तरीके से ही कृषि पर निर्भर थे लेकिन अब लोगों ने मिश्रित खेती भी करना शुरू कर दिया है. जैसे लोग सिर्फ फसल की कटाई से संबंधित कृषि करते थे लेकिन अब पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे खेती कर झारखंड की कृषि दर को बढ़ाने का काम किया है.

कृषि क्षेत्र की बात करें तो 2004-5 से 2015-16 तक 8. 6 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ा है पिछले कुछ वर्षों 2013-14 में कृषि फसल विकास दर - 4.5 प्रतिशत के आसपास थी. जो बढ़कर 14.5 प्रतिशत लगभग हो गई है। यानी कृषि विकास दर में बढ़ोतरी हुई है. ईटीवी भारत के साथ बातचीत अर्थशास्त्री ज्योति प्रकाश ने बताया कि झारखंड अलग होने के बाद झारखंड कृषि के क्षेत्र में विकास किया है लेकिन जितना करना था उससे थोड़ा पीछे रह गया है. झारखंड मे कृषि का क्षेत्र पूरी तरह मॉनसून पर आधारित है यहां की खेती सिर्फ वर्षा के पानी पर आश्रित होती, साल भर में चार महीने है. बारिश होती है लेकिन उसका भी कोई निश्चित समय नहीं है.

ये भी देखें- रांची में अब सिटी बसों का संचालन करेगा नगर निगम, संवेदकों ने खींचे हाथ, कहा- नहीं हो रहा फायदा

सबसे पहले हम लोगों को वर्षा के पानी को संचयन करने की जरूरत है. तब जाकर हमारी एग्रीकल्चर सेक्टर की उत्पादन क्षमता बढ़ सकती है. झारखंड पठारी क्षेत्र होने के कारण भी यहां पर पानी का संचयन नहीं हो पाता है. बिहार जिस तरह से नदी को नदी से जोड़ने की योजना चलाई गई थी.उसी के तर्ज पर झारखंड में तालाब को तालाब से जोड़ने की किसानों के द्वारा सुझाव दिया गया था लेकिन यह योजना पूरी तरह विफल रही जिसके कारण वर्षा के पानी संचयन की समस्या का निवरण नहीं हो सका. जल संचयन झारखंड के कृषि के विकास में सबसे बड़ी समस्या है. कृषि के क्षेत्र में में विकास के लिए झारखंड को जल संचयन इस गंभीर समस्या से निजात पाना बहुत आवश्यक है.

रांची: झारखंड एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी आधी आबादी गांवों में बसती है. पठारी क्षेत्र होने के बाद भी यहां की भूमि कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है. यहां के लोग पहले पारंपरिक तरीके से ही कृषि पर निर्भर थे लेकिन अब लोगों ने मिश्रित खेती भी करना शुरू कर दिया है. जैसे लोग सिर्फ फसल की कटाई से संबंधित कृषि करते थे लेकिन अब पशुपालन, मत्स्य पालन जैसे खेती कर झारखंड की कृषि दर को बढ़ाने का काम किया है.

कृषि क्षेत्र की बात करें तो 2004-5 से 2015-16 तक 8. 6 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ा है पिछले कुछ वर्षों 2013-14 में कृषि फसल विकास दर - 4.5 प्रतिशत के आसपास थी. जो बढ़कर 14.5 प्रतिशत लगभग हो गई है। यानी कृषि विकास दर में बढ़ोतरी हुई है. ईटीवी भारत के साथ बातचीत अर्थशास्त्री ज्योति प्रकाश ने बताया कि झारखंड अलग होने के बाद झारखंड कृषि के क्षेत्र में विकास किया है लेकिन जितना करना था उससे थोड़ा पीछे रह गया है. झारखंड मे कृषि का क्षेत्र पूरी तरह मॉनसून पर आधारित है यहां की खेती सिर्फ वर्षा के पानी पर आश्रित होती, साल भर में चार महीने है. बारिश होती है लेकिन उसका भी कोई निश्चित समय नहीं है.

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सबसे पहले हम लोगों को वर्षा के पानी को संचयन करने की जरूरत है. तब जाकर हमारी एग्रीकल्चर सेक्टर की उत्पादन क्षमता बढ़ सकती है. झारखंड पठारी क्षेत्र होने के कारण भी यहां पर पानी का संचयन नहीं हो पाता है. बिहार जिस तरह से नदी को नदी से जोड़ने की योजना चलाई गई थी.उसी के तर्ज पर झारखंड में तालाब को तालाब से जोड़ने की किसानों के द्वारा सुझाव दिया गया था लेकिन यह योजना पूरी तरह विफल रही जिसके कारण वर्षा के पानी संचयन की समस्या का निवरण नहीं हो सका. जल संचयन झारखंड के कृषि के विकास में सबसे बड़ी समस्या है. कृषि के क्षेत्र में में विकास के लिए झारखंड को जल संचयन इस गंभीर समस्या से निजात पाना बहुत आवश्यक है.

Intro:डे प्लान... झारखंड स्थापना दिवस स्पेशल --खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड कृषि के क्षेत्र में कितना किया है विकास

रांची

बाइट-- ज्योति प्रकाश अर्थशास्त्री
बाइट-- नकुल महतो प्रगतिशील किसान
बाइट-- महिला किसान
बाइट-- ओपनिंग पीटीसी
बाइट-- क्लोजिंग पीटीसी


झारखंड अपने 19 वें स्थापना दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाने जा रही है खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड देश में अपनी अलग पहचान रखता है। लेकिन इसके बावजूद भी झारखंड की आधी आबादी गांवों में बसती है जिसका जीवन यापन कृषि पर आधारित है कृषि के क्षेत्र में झारखंड सरकार का यह महत्वपूर्ण कार्य किसानों के हितों में कर रही है झारखंड पठारी शेर होते हुए भी यहां की भूमि कृषि के लिए उपायुक्त मानी जाती है यहां सिंचाई के रूप में मुख्य रूप से लोग बारिश पर निर्भर करते हैं परंतु कुआनो नदी का उपयोग भी किया जाता है कृषि को बढ़ावा देने हेतु सरकार के द्वारा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

झारखंड अलग होने के बाद कृषि के क्षेत्र में सरकार के द्वारा कई योजना चलाए गए हैं लोग पहले पारंपरिक तरीके से सिर्फ कृषि पर ही आधारित होते थे लेकिन अब लोग मिश्रित खेती भी करना शुरू कर दिया है जैसे लोग सिर्फ फसल की कटाई से संबंधित कृषि करते थे लेकिन अब पशुपालन मत्स्य पालन जैसे खेती कर झारखंड की कृषि दर को बढ़ाने का काम किया है।2004-05से 2015-2016 में कृषि दर 9.2 प्रतिशत बड़ा है तो वहीं पूरे कृषि क्षेत्र की बात करें तो 2004-5 से 2015-16 तक 8. 6 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ा है पिछले कुछ वर्षों 2013-14 में कृषि फसल विकास दर - 4.5 प्रतिशत के आसपास थी। जो बढ़कर 14.5 प्रतिशत लगभग हो गई है। यानी कृषि विकास दर में बढ़ोतरी हुई है









Body:अर्थशास्त्री ज्योति प्रकाश से हमारे टीम ने बातचीत की उन्होंने बताया कि झारखंड अलग होने के बाद झारखंड कृषि के क्षेत्र में विकास किया है लेकिन जितना करना था उससे थोड़ा पीछे रह गया है झारखंड में एग्रीकल्चर सेक्टर पूरी तरह से मॉनसून बेस्ट है 4 महीने बारिश होती है और यह भी बारिश कब होगी इसका कोई निश्चित समय नहीं होता है यहां की खेती सिर्फ वर्षा के पानी पर आश्रित होती है लेकिन इस वर्षा का पानी का कोई भी संचयन नहीं होता है हम लोगों को वर्षा के पानी को संचयन करने की जरूरत है तब जाकर हमारी एग्रीकल्चर सेक्टर की उत्पादन क्षमता बढ़ सकती है झारखंड की जनसंख्या के आधे से ज्यादा आबादी गांव में बसती है जिनका गुजर-बसर कृषि पर आधारित है


Conclusion:प्रगतिशील किसान नकुल मेहता ने कहा कि झारखंड अलग होने के बाद कृषि के क्षेत्र में विकास जरूर हुआ है लेकिन जितनी होनी चाहिए से थोड़ी पीछे रह गई कारण यह है कि सरकार के द्वारा चलाए जा रहे हैं योजना है किसानों तक नहीं पहुंच पाती वह सिर्फ कागजों पर ही रह जाती हैं वही बात करें तो झारखंड का कृषि वर्षा पर आधारित है जिसके कारण यहां खेती सिर्फ बरसात के पानी पर ही होती है। और झारखंड पठारी क्षेत्र होने के कारण भी यहां पर पानी का संचयन नहीं हो पाता है बिहार जिस तरह से नदी को नदी से जोड़ने की योजना चलाई गई थी उसी के तर्ज पर झारखंड में तलाब को तालाब से जोड़ने की किसानों के द्वारा सुझाव दिया गया था लेकिन यह योजना विफल रही जिसके कारण वर्षा का पानी भी संचयन नहीं हो पा रहा है
Last Updated : Nov 22, 2019, 8:35 PM IST
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