रांचीः झारखंड में सरकारी योजनाएं भी कैसे धरातल पर धाराशायी हो जाती है. इसका जीता जागता नमूना राजधानी रांची के कांके में पिछली सरकार में शुरू की गयी अर्बन हाट योजना है. कांके डैम के पठारों के बीच तत्कालीन रघुवर दास की सरकार ने 17 करोड़ की लागत से अर्बन हाट बनाने का फैसला लिया था. रांची नगर निगम और शहरी विकास विभाग की इस योजना पर काम भी वर्ष 2017 में शुरू हो गया लेकिन अचानक काम बंद कर दिया गया. उसके बाद इसका काम दोबारा कभी शुरू नहीं हो पाया.
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अर्बन हाट योजना का निर्माण कार्य बंद होने को लेकर तत्कालीन नगर विकास मंत्री और भाजपा विधायक सीपी सिंह की मानें तो मुख्यमंत्री रघुवर दास को यह लगा कि जिस जगह पर अर्बन हाट बन रहा है वह जगह ठीक नहीं है, इसलिए काम रोक दिया गया. सीपी सिंह के अनुसार किसी भी प्रोजेक्ट का तकनीकी पक्ष अभियंता या तकनीकी विशेषज्ञ बेहतर जानते हैं ना कि जनप्रतिनिधि. सीपी सिंह कहते हैं कि मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास को लगा कि झारखंड के हस्तकलाओं को बाजार देने के लिए बनने वाले अर्बन हाट का डीपीआर बना है और जो चित्रांकन किया गया, वह ठीक नहीं था, इसलिए काम को रुकवा दिया गया तब तक काफी काम हो गया था.
क्या अब इस अर्बन हाट का निर्माण पूरा होने की संभावना है? राज्य में 2019 के अंत मे सरकार बदल गयी. हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नई सरकार बनने के भी 02 वर्ष बीत चुके हैं. नगर विकास विभाग खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जिम्मे है. ऐसे में क्या यह अधूरा अर्बन हाट अस्तित्व में आएगा या नहीं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य से बात की. इसको लेकर उन्होंने कहा कि पूर्व की भाजपा सरकार में बिरसा मुंडा ओल्ड जेल संग्रहालय से लेकर अर्बन हाट तो कई योजनाओं में मिस मैनेजमेंट था. पहले अर्बन हाट को बिरसा मुंडा ओल्ड जेल परिसर में पूर्व की सरकार बनवा रही थी, फिर उसे कांके ले गयी, फिर बीच मे ही काम बंद कर दिया गया. अब हेमंत सोरेन की सरकार जो भी फैसला लेगी वह ठोस होगा और धरातल पर उतरेगा.
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आज अर्बन हाट के आधा-अधूरा निर्माण तत्कालीन सरकार के अदूरदर्शी सोच की गवाही देते हैं. अब इस जगह के कुछ हिस्से में अतिक्रमण कर दुकानें खुल गयी है तो कुछ एरिया में रांची में सीवरेज निर्माण में लगी गुजरात की एक एजेंसी के मजदूर अस्थायी तौर पर रहते हैं. राज्य के पूर्व नगर विकास मंत्री सीपी सिंह, जिस अर्बन हाट प्रोजेक्ट के अधूरे रह जाने का दोष गलत डीपीआर और चित्रांकन बनाने वाले अधिकारियों पर थोप रहे हैं. अगर वह सही भी है तो फिर सवाल यह कि वैसे अधिकारियों पर अब यक कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या जनता की गाढ़ी कमाई से जो पैसा सरकार टैक्स के रूप में वसूलती है उसे यूं ही बर्बाद कर देना ठीक है?