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दुष्कर्म पीड़िता की गिरफ्तारी पर देश के 376 वकीलों ने पटना हाई कोर्ट को लिखा पत्र - ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट

इस घटना के सामने आने के बाद देश के जाने-माने वकीलों ने पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और जजों को खत लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है. बता दें कि अररिया के महिला थाना में दुष्कर्म की रिपोर्ट 7 जुलाई को दर्ज की गई थी.

376 lawyers wrote a letter to patna high court on arrest of molestation victim
पटना उच्च न्यायालय
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Published : Jul 16, 2020, 10:58 PM IST

पटना: बिहार के अररिया में एक दुष्कर्म पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया है. दुष्कर्म पीड़िता और उनके दो सहयोगियों पर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगा है. जिसके बाद इन तीन लोगों को समस्तीपुर के दलसिंहसराय जेल भेज दिया गया है.

376 lawyers wrote a letter to patna high court on arrest of molestation victim
वकीलों ने हाई कोर्ट को लिखा पत्र

376 वकीलों ने पत्र पर किया हस्ताक्षर
इस मामले में इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण समेत 376 से अधिक नामी वकीलों ने पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और बाकी जजों को खत लिखकर मामले में दखल देने की मांग की है. पत्र में लिखा गया है कि न्यायालय की अवमानना मामले में दुष्कर्म पीड़िता को जिन परिस्थितियों में न्यायिक हिरासत में भेजा गया है वो बेहद कठोर है. पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, रेबेका जौन सहित 376 वकीलों ने हस्ताक्षर किया है.

'दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत'
पत्र में कहा गया है कि इस घटना को संवेदनशील होकर देखना चाहिए. पीड़िता मानसिक रूप से बहुत तनाव में थी. बयान दर्ज होने वाले दिन सुबह से पीड़िता ने कुछ खाया-पीया नहीं था. कुछ दिनों से ठीक से उसे नींद भी नहीं आ रही थी और उसे बार-बार उस घटना को पुलिस और अन्य लोगों को बताना पड़ रहा था इसलिए उसके कथित दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत है.

'पीड़िता का नहीं हुआ कोरोना जांच'
पत्र में कहा गया कि, नाजुक स्थिति को समझने की बजाय पीड़िता और उसके दो साथियों को जेल भेज दिया गया. यह भी उल्लेखनीय है कि दुष्कर्म पीड़िता का कोरोना जांच नहीं हुआ. 11 जुलाई की सुबह तक किसी स्थानीय अखबार में एफआईआर दर्ज होने का जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन दोपहर 12.30 बजे दो लोगों से खाली फार्म पर हस्ताक्षर ले लिया जाता है. एफआईआर में कोर्ट की अवमानना की धारा भी लगाई जाती है जो मान्य नहीं है. धारा 353, 228, 188 लगा कर पीड़िता और उसकी मदद कर रहे दो सहयोगियों को 240 किलोमीटर दूर जेल भेज दिया जाता है. हम मानते हैं कि इन्हें जेल भेजना ज्यादती है.

क्या है पूरा मामला
बिहार के अररिया जिले के महिला थाने में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि बीते 6 जुलाई को पीड़ित युवती एक परिचित युवक के साथ मोटरसाइकिल चलाना सीखने गई थी. घर लौटने के दौरान चार अज्ञात लोगों ने उसके साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था. पीड़िता ने भय के कारण एक एनजीओ में अपनी एक परिचित फोन किया. उसके बाद संगठन की अन्य सहयोगियों की मदद से अररिया के महिला थाने में मामले को लेकर 7 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

इसे भी पढे़ं:- 'बिहार और अन्‍य चुनाव में 65 से अधिक उम्र के वोटर को नहीं मिलेगी पोस्‍टल बैलेट की सुविधा'

चार घंटे तक किया गया बयान दर्ज
बताया जाता है कि इसके बाद सात और आठ जुलाई को पीड़िता का मेडिकल जांच कराया गया. 10 जुलाई को बयान दर्ज कराने के लिए पीड़िता को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया. यहां करीब चार घंटे तक पीड़िता का बयान दर्ज किया गया. इस दौरान पीड़िता उत्तेजित हो गई. हालांकि, बाद में पीड़िता ने बयान पर हस्ताक्षर किया. रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता की सहयोगियों ने बयान को पढ़कर सुनाए जाने की मांग की, जिस पर काफी गर्मा-गर्मी होने लगी. इसके बाद पीड़िता और उसके दो सहयोगियों को हिरासत में लिया गया और 11 जुलाई को जेल भेज दिया गया.

पटना: बिहार के अररिया में एक दुष्कर्म पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया है. दुष्कर्म पीड़िता और उनके दो सहयोगियों पर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगा है. जिसके बाद इन तीन लोगों को समस्तीपुर के दलसिंहसराय जेल भेज दिया गया है.

376 lawyers wrote a letter to patna high court on arrest of molestation victim
वकीलों ने हाई कोर्ट को लिखा पत्र

376 वकीलों ने पत्र पर किया हस्ताक्षर
इस मामले में इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण समेत 376 से अधिक नामी वकीलों ने पटना हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और बाकी जजों को खत लिखकर मामले में दखल देने की मांग की है. पत्र में लिखा गया है कि न्यायालय की अवमानना मामले में दुष्कर्म पीड़िता को जिन परिस्थितियों में न्यायिक हिरासत में भेजा गया है वो बेहद कठोर है. पत्र में सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, रेबेका जौन सहित 376 वकीलों ने हस्ताक्षर किया है.

'दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत'
पत्र में कहा गया है कि इस घटना को संवेदनशील होकर देखना चाहिए. पीड़िता मानसिक रूप से बहुत तनाव में थी. बयान दर्ज होने वाले दिन सुबह से पीड़िता ने कुछ खाया-पीया नहीं था. कुछ दिनों से ठीक से उसे नींद भी नहीं आ रही थी और उसे बार-बार उस घटना को पुलिस और अन्य लोगों को बताना पड़ रहा था इसलिए उसके कथित दुर्व्यवहार को संवेदना के साथ देखने की जरूरत है.

'पीड़िता का नहीं हुआ कोरोना जांच'
पत्र में कहा गया कि, नाजुक स्थिति को समझने की बजाय पीड़िता और उसके दो साथियों को जेल भेज दिया गया. यह भी उल्लेखनीय है कि दुष्कर्म पीड़िता का कोरोना जांच नहीं हुआ. 11 जुलाई की सुबह तक किसी स्थानीय अखबार में एफआईआर दर्ज होने का जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन दोपहर 12.30 बजे दो लोगों से खाली फार्म पर हस्ताक्षर ले लिया जाता है. एफआईआर में कोर्ट की अवमानना की धारा भी लगाई जाती है जो मान्य नहीं है. धारा 353, 228, 188 लगा कर पीड़िता और उसकी मदद कर रहे दो सहयोगियों को 240 किलोमीटर दूर जेल भेज दिया जाता है. हम मानते हैं कि इन्हें जेल भेजना ज्यादती है.

क्या है पूरा मामला
बिहार के अररिया जिले के महिला थाने में दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि बीते 6 जुलाई को पीड़ित युवती एक परिचित युवक के साथ मोटरसाइकिल चलाना सीखने गई थी. घर लौटने के दौरान चार अज्ञात लोगों ने उसके साथ कथित तौर पर सामूहिक दुष्कर्म किया था. पीड़िता ने भय के कारण एक एनजीओ में अपनी एक परिचित फोन किया. उसके बाद संगठन की अन्य सहयोगियों की मदद से अररिया के महिला थाने में मामले को लेकर 7 जुलाई को प्राथमिकी दर्ज कराई थी.

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चार घंटे तक किया गया बयान दर्ज
बताया जाता है कि इसके बाद सात और आठ जुलाई को पीड़िता का मेडिकल जांच कराया गया. 10 जुलाई को बयान दर्ज कराने के लिए पीड़िता को ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया. यहां करीब चार घंटे तक पीड़िता का बयान दर्ज किया गया. इस दौरान पीड़िता उत्तेजित हो गई. हालांकि, बाद में पीड़िता ने बयान पर हस्ताक्षर किया. रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता की सहयोगियों ने बयान को पढ़कर सुनाए जाने की मांग की, जिस पर काफी गर्मा-गर्मी होने लगी. इसके बाद पीड़िता और उसके दो सहयोगियों को हिरासत में लिया गया और 11 जुलाई को जेल भेज दिया गया.

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