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हेमंत सरकार के 3 साल: 2022 में 1932 की सियासत से खींच दी मजमून की नई लकीर - झारखंड की राजनीति

हेमंत सरकार 29 दिसंबर को अपने कार्यकाल के तीसरे साल को पूरा कर रही है, 2022 के लिए हेमंत सोरेन सरकार ने स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान (1932 Khatian Based Domicile Policy) को अनिवार्य बना दिया. यह हेमंत सोरेन का 22 की सियासत में उनका मास्टर स्ट्रोक था (Master stork of Hemant Soren Government).

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Published : Dec 28, 2022, 8:11 PM IST

रांची: हेमंत सरकार अपनी सफलता के 3 साल पूरा करने जा रही है. 29 दिसंबर को सरकार के तीन साल पूरे हो जाएंगे. 2 साल के कामकाज का आकलन इस बात को लेकर भी बहुत सहज नहीं रहा क्योंकि कोरोना की सजगता ज्यादा थी. हेमंत सोरेन के लिए उनकी सरकार का तीसरा साल यानी 2022 काफी अहम रहा है, एक के बाद एक सरकार के बड़े फैसलों ने जहां झारखंड के राजनीति को नई दिशा दी है, वहीं विपक्ष हेमंत की हर चाल में उलझ कर रह गया. इसे हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक कहा गया (Master stork of Hemant Soren Government).

ये भी पढ़ें: शिक्षा विभाग के लिए मिलाजुला रहा वर्ष, पारा शिक्षकों के लिए बनायी गई नियमावली


2022 में हेमंत सरकार के सबसे दमदार फैसले की बात करें तो वह 1932 के खतियान की स्थानीय नीति रही है. हेमंत को इस मास्टर स्ट्रोक ने उनके विरोधियों के सियासी सफर को आसान करने वाली राह को कड़ा कर दिया. हेमंत सोरेन सरकार ने स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान (1932 Khatian Based Domicile Policy) को अनिवार्य बना दिया है. 2022 के लिए यह हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक था.


11 नवंबर 2022 को सदन में पास: झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर (Special Session Of Jharkhand Legislative Assembly). हेमंत सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को कानून का दर्जा दे दिया, जबकि दूसरा ओबीसी आरक्षण को 14% से 27% कर दिया गया. स्थानीय नीति लागू होने से जिन लोगों को झारखंडी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी होगा, उन्हें राज्य सरकार की तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा.

राज्य की सरकार इन पदों पर नियुक्ति के लिए जो पॉलिसी बनायेगी, उसके लिए डोमिसाइल की शर्त जरूरी तौर पर लागू की जा सकती है या इसके आधार पर प्राथमिकता दी जा सकती है. झारखंड की भौगोलिक सीमा में वर्षों-दशकों से रह रहे जिन लोगों को 1932 का कागज न होने पर झारखंडी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, उनके लिए स्थानीय संस्थानों में दाखिले और तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की नौकरियों के लिए मौके बेहद सीमित होंगे.


22 की राजनीति को हिला दिया: 1932 आधारित स्थानीय नीति के विधानसभा से पास हो जाने के बाद पूरे झारखंड की राजनीति हिल गई. माना और कहा यह जाने लगा कि इससे पहले बाबूलाल मरांडी के समय में भी स्थानीय नीति लाई गई थी लेकिन वह असरदार नहीं रही. हालांकि राजनीति के लिहाज से हेमंत को जिस राजनीति को करना था उसका अपनी फायदा हेमंत सोरेन ने लिया है. इसमें सबसे ज्यादा फायदा संथाल की राजनीति में होना है.


क्या है संथाल वाली राजनीति: संथाल क्षेत्र के 18 विधानसभा सीट में 07 सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व है. आपको हम बता दें कि इन सभी 07 सीटों पर वर्तमान समय में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है. वहीं अगर हम लोकसभा सीट की बात करें तो 03 में से 02 सीट ST के लिए रिजर्व है. हालांकि इसमें दो पर भाजपा और एक पर झामुमो का कब्जा है. विधानसभा सीट में 35% और लोकसभा में 66% सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित होना इस बात को दर्शाता है कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे संथाल क्षेत्र में जो भी आदिवासी समाज के लोग हैं लगभग सभी 1932 के खतियान धारी हैं. इसमें संथाल और पहाड़िया समुदाय के आदिवासी हैं. दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि कहीं-कहीं यह जानकारी मिलती है कि बिहार के पूर्णिया या कटिहार इलाके से सौ-पचास संथाल परिवार के लोग हाल के दशक में इस क्षेत्र में आकर बसे हैं, लेकिन उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं है. कुल मिलाकर जितने भी आदिवासी परिवार हैं सभी के पास 1932 का खतियान है.

आंकड़ों पर डाले नजर: संथाल परगना प्रमंडल में 06 जिले हैं दुमका, देवघर, साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा. 2011 की जनसंख्या की अगर हम बात करें तो लगभग 70 लाख आबादी पूरे प्रमंडल की है. इसमें लगभग 28% आदिवासी और 45 से 50 % मूलवासियों की है. इस मूलवासी में संथाल-पहाड़िया को छोड़कर अनुसूचित जाति, मुस्लिम और अन्य कई जातियां बनिया, यादव, तेली, कोइरी, ब्राह्मण, कुम्हार, मायरा-मोदक और अन्य जाति शामिल हैं. हालांकि काफी संख्या में वैसे भी लोग हैं जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है. ये लोग देश आजादी के बाद या पिछले 40-50 वर्षों में बिहार-पश्चिम बंगाल से आकर संथाल क्षेत्र में बसे हैं. इनकी भी आबादी बढ़ते-बढ़ते 20 से 25% तक पहुंच गई है. इनमें से अधिकांश लोग देवघर, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ और दुमका जिले में निवास करते हैं. इसमें देवघर-गोड्डा में बिहार के अलग-अलग जिलों से लोग आये. जबकि साहिबगंज-पाकुड़ में पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं. वहीं दुमका में बिहार के भागलपुर-बांका और निकटवर्ती पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं, जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है.


कोल्हान की राजनीति पर असर: 1932 आधारित खतियान संभाल की राजनीति में हेमंत के लिए मजबूती के बाद जरूर लेकिन कोल्हान में इसका जमकर विरोध हुआ. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के साथ ही सरकार में शामिल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष गीता कोड़ा ने भी 1932 आधारित खतियान का विरोध किया. झारखंड के बड़े दिग्गज नेता सरजू राय ने भी हेमंत सोरेन तो 1932 आधारित खतियान पर अपनी बात रखते हुए कहा था कि इसे लागू नहीं किया जा सकता है.

कोल्हान में विरोध: 1932 आधारित खतियान को लेकर के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी हेमंत सोरेन का उस तरह से विरोध नहीं कर पाई जिसकी उम्मीद लगाई जा रही थी. अगर बीजेपी मुखर विरोध कर आदिवासी राजनीति में उतरी तो उसे मात खानी पड़ सकती थी.

2022 में हेमंत सोरेन के 1932 आधारित स्थानीय खतियान वाली राजनीति में हेमंत सोरेन के राजनैतिक फसल के खलिहान को बड़ा कर दिया है. यह कहा जा सकता है कि 2022 में हेमंत सोरेन ने राजनीति के जिन पत्तों को फेंका वह सभी बादशाह निकले जो दूसरे राजनीतिक दलों के लिए राजनीति की जगह के लिए नई नगर का रास्ता खोजने का ही मामला बन पाया.

रांची: हेमंत सरकार अपनी सफलता के 3 साल पूरा करने जा रही है. 29 दिसंबर को सरकार के तीन साल पूरे हो जाएंगे. 2 साल के कामकाज का आकलन इस बात को लेकर भी बहुत सहज नहीं रहा क्योंकि कोरोना की सजगता ज्यादा थी. हेमंत सोरेन के लिए उनकी सरकार का तीसरा साल यानी 2022 काफी अहम रहा है, एक के बाद एक सरकार के बड़े फैसलों ने जहां झारखंड के राजनीति को नई दिशा दी है, वहीं विपक्ष हेमंत की हर चाल में उलझ कर रह गया. इसे हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक कहा गया (Master stork of Hemant Soren Government).

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2022 में हेमंत सरकार के सबसे दमदार फैसले की बात करें तो वह 1932 के खतियान की स्थानीय नीति रही है. हेमंत को इस मास्टर स्ट्रोक ने उनके विरोधियों के सियासी सफर को आसान करने वाली राह को कड़ा कर दिया. हेमंत सोरेन सरकार ने स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान (1932 Khatian Based Domicile Policy) को अनिवार्य बना दिया है. 2022 के लिए यह हेमंत सोरेन का मास्टर स्ट्रोक था.


11 नवंबर 2022 को सदन में पास: झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर (Special Session Of Jharkhand Legislative Assembly). हेमंत सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को कानून का दर्जा दे दिया, जबकि दूसरा ओबीसी आरक्षण को 14% से 27% कर दिया गया. स्थानीय नीति लागू होने से जिन लोगों को झारखंडी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट जारी होगा, उन्हें राज्य सरकार की तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा.

राज्य की सरकार इन पदों पर नियुक्ति के लिए जो पॉलिसी बनायेगी, उसके लिए डोमिसाइल की शर्त जरूरी तौर पर लागू की जा सकती है या इसके आधार पर प्राथमिकता दी जा सकती है. झारखंड की भौगोलिक सीमा में वर्षों-दशकों से रह रहे जिन लोगों को 1932 का कागज न होने पर झारखंडी होने का प्रमाण पत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा, उनके लिए स्थानीय संस्थानों में दाखिले और तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग की नौकरियों के लिए मौके बेहद सीमित होंगे.


22 की राजनीति को हिला दिया: 1932 आधारित स्थानीय नीति के विधानसभा से पास हो जाने के बाद पूरे झारखंड की राजनीति हिल गई. माना और कहा यह जाने लगा कि इससे पहले बाबूलाल मरांडी के समय में भी स्थानीय नीति लाई गई थी लेकिन वह असरदार नहीं रही. हालांकि राजनीति के लिहाज से हेमंत को जिस राजनीति को करना था उसका अपनी फायदा हेमंत सोरेन ने लिया है. इसमें सबसे ज्यादा फायदा संथाल की राजनीति में होना है.


क्या है संथाल वाली राजनीति: संथाल क्षेत्र के 18 विधानसभा सीट में 07 सीट अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए रिजर्व है. आपको हम बता दें कि इन सभी 07 सीटों पर वर्तमान समय में झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है. वहीं अगर हम लोकसभा सीट की बात करें तो 03 में से 02 सीट ST के लिए रिजर्व है. हालांकि इसमें दो पर भाजपा और एक पर झामुमो का कब्जा है. विधानसभा सीट में 35% और लोकसभा में 66% सीट आदिवासियों के लिए सुरक्षित होना इस बात को दर्शाता है कि यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है. सबसे बड़ी बात यह है कि पूरे संथाल क्षेत्र में जो भी आदिवासी समाज के लोग हैं लगभग सभी 1932 के खतियान धारी हैं. इसमें संथाल और पहाड़िया समुदाय के आदिवासी हैं. दुमका सांसद सुनील सोरेन कहते हैं कि कहीं-कहीं यह जानकारी मिलती है कि बिहार के पूर्णिया या कटिहार इलाके से सौ-पचास संथाल परिवार के लोग हाल के दशक में इस क्षेत्र में आकर बसे हैं, लेकिन उनका कोई विशेष प्रभाव नहीं है. कुल मिलाकर जितने भी आदिवासी परिवार हैं सभी के पास 1932 का खतियान है.

आंकड़ों पर डाले नजर: संथाल परगना प्रमंडल में 06 जिले हैं दुमका, देवघर, साहिबगंज, गोड्डा, पाकुड़ और जामताड़ा. 2011 की जनसंख्या की अगर हम बात करें तो लगभग 70 लाख आबादी पूरे प्रमंडल की है. इसमें लगभग 28% आदिवासी और 45 से 50 % मूलवासियों की है. इस मूलवासी में संथाल-पहाड़िया को छोड़कर अनुसूचित जाति, मुस्लिम और अन्य कई जातियां बनिया, यादव, तेली, कोइरी, ब्राह्मण, कुम्हार, मायरा-मोदक और अन्य जाति शामिल हैं. हालांकि काफी संख्या में वैसे भी लोग हैं जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है. ये लोग देश आजादी के बाद या पिछले 40-50 वर्षों में बिहार-पश्चिम बंगाल से आकर संथाल क्षेत्र में बसे हैं. इनकी भी आबादी बढ़ते-बढ़ते 20 से 25% तक पहुंच गई है. इनमें से अधिकांश लोग देवघर, गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़ और दुमका जिले में निवास करते हैं. इसमें देवघर-गोड्डा में बिहार के अलग-अलग जिलों से लोग आये. जबकि साहिबगंज-पाकुड़ में पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं. वहीं दुमका में बिहार के भागलपुर-बांका और निकटवर्ती पश्चिम बंगाल के लोग आकर बसे हैं, जिनके पास 1932 का खतियान नहीं है.


कोल्हान की राजनीति पर असर: 1932 आधारित खतियान संभाल की राजनीति में हेमंत के लिए मजबूती के बाद जरूर लेकिन कोल्हान में इसका जमकर विरोध हुआ. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के साथ ही सरकार में शामिल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष गीता कोड़ा ने भी 1932 आधारित खतियान का विरोध किया. झारखंड के बड़े दिग्गज नेता सरजू राय ने भी हेमंत सोरेन तो 1932 आधारित खतियान पर अपनी बात रखते हुए कहा था कि इसे लागू नहीं किया जा सकता है.

कोल्हान में विरोध: 1932 आधारित खतियान को लेकर के प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी हेमंत सोरेन का उस तरह से विरोध नहीं कर पाई जिसकी उम्मीद लगाई जा रही थी. अगर बीजेपी मुखर विरोध कर आदिवासी राजनीति में उतरी तो उसे मात खानी पड़ सकती थी.

2022 में हेमंत सोरेन के 1932 आधारित स्थानीय खतियान वाली राजनीति में हेमंत सोरेन के राजनैतिक फसल के खलिहान को बड़ा कर दिया है. यह कहा जा सकता है कि 2022 में हेमंत सोरेन ने राजनीति के जिन पत्तों को फेंका वह सभी बादशाह निकले जो दूसरे राजनीतिक दलों के लिए राजनीति की जगह के लिए नई नगर का रास्ता खोजने का ही मामला बन पाया.

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