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खूंटी के 19 बिरहोर परिवारों ने पेश की मिसाल, 20 साल से परती पड़ी जमीन पर लगाया लेमनग्रास

खूंटी में लुप्तप्राय बिरहोर आदिम जनजाति आज समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की कोशिश में है. जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसाइटी की मदद से जोजोहातु में 10 एकड़ की जमीन पर लेमनग्रास की खेती की है.

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Published : Sep 24, 2020, 7:39 PM IST

रांची/खूंटी: झारखंड में 32 जनजातियां हैं. इनमें एक जनजाति है बिरहोर जो विलुप्त प्राय की श्रेणी में आ गई है. इस जनजाति के बारे में कहा जाता है कि यह अगर किसी पेड़ को छू देते हैं तो उस पर बंदर कभी नहीं आता. क्योंकि तीर चलाने में इनको महारत होता है और इसी वजह से बंदर भी इनसे डरते हैं. लेकिन जंगलों में निवास करने वाली है जनजाति अब सिमट रही है. अभाव इनकी नियति में है. योजनाएं इनतक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं. लेकिन खूंटी जिला के तेलंगाडीह गांव में रहने वाले 19 बिरहोर परिवार विकास की मुख्यधारा में आने के लिए खेतों में पसीना बहा रहे हैं. जिला प्रशासन और एक स्वयंसेवी संस्था की पहल पर इन लोगों ने 10 एकड़ जमीन पर लेमनग्रास की खेती शुरू की है. इसके लिए कई दिनों तक भूखे प्यासे रहकर इन मेहनतकशों ने पथरीली जमीन को खेती के लायक बना दिया.

देखें स्पेशल स्टोरी

मदद मिली तो जमीन बना दिया हरा-भरा

जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसाइटी के बीच जिले में 100 एकड़ में लेमनग्रास की खेती करने को लेकर हुए एमओयू के तहत बिरहोरों ने लेमनग्रास की खेती की है. जिला प्रशासन से मिले सहयोग के बाद सोसाइटी के लोग लगातार उनके बीच जाकर इनकी हौसला अफजाई करते हैं. अब पांच महीने बाद पहली कटाई होगी और तेल निकाला जाएगा. लेकिन अब भी जरूरत है उनकी इस जमीन पर आसवन केंद्र स्थापित करने की. ऐसा हुआ तो बिरहोरों की कमाई लाखों में पहुंच जाएगी. अब बिरहोरों से आसपास के गुडूबुरू, जोजोहातु आदि गांवों के लोग भी लेमनग्रास की खेती की सिखने लगे हैं.

इसे भी पढ़ें- पलामूः मुखिया चावल के धंधे की आड़ में करता था शराब की तस्करी, बिहार भेजी जाती थी शराब

20 साल से परती थी जमीन

खास बात है कि जिस जमीन पर लेमन ग्रास की खेती की गई है, वह जमीन पिछले 20 वर्षों से परती पड़ी थी. बीस साल पहले सरकार ने खूंटी जिले के तेलंगाडीह गांव में बिरहोरों के लिए कॉलोनी बनाई और उनके जीविकोपार्जन के लिए कॉलोनी से पांच किमी दूर जोजोहातु में 12.83 एकड़ जमीन दी थी. कॉलोनी में तो बिरहोर रहने लगे, पर जोजोहातु में मिली जमीन उनके काम नहीं आई. कभी-कभार वो उस जमीन को देखने जाया करते थे. उस जमीन पर आज तक एक कुदाल भी नहीं चला था. पिछले वर्ष जेएसएलपीएस द्वारा दस बिरहोरों को लेमनग्रास समेत अन्य औषधीय पौधों का प्रशिक्षण दिया गया, वो मदद के अभाव में खेती नहीं कर पाये थे. इस बार जिला प्रशासन के मुखिया डीसी शशि रंजन, डीडीसी अरूण कुमार सिंह, जिला योजना पदाधिकारी बी अब्रार, नीति आयोग के एडीएफ निखिल त्रिपाठी, जेएसएलपीएस के डीपीएम शैलेश रंजन, सेवा वेलफेयर सोसाईटी की सचिव सबीता संगा, देवा हस्सा, सुशील सोय आदि के सहयोग से लेमनग्रास की खेती के क्षेत्र में पहली सफलता मिली है.

रांची/खूंटी: झारखंड में 32 जनजातियां हैं. इनमें एक जनजाति है बिरहोर जो विलुप्त प्राय की श्रेणी में आ गई है. इस जनजाति के बारे में कहा जाता है कि यह अगर किसी पेड़ को छू देते हैं तो उस पर बंदर कभी नहीं आता. क्योंकि तीर चलाने में इनको महारत होता है और इसी वजह से बंदर भी इनसे डरते हैं. लेकिन जंगलों में निवास करने वाली है जनजाति अब सिमट रही है. अभाव इनकी नियति में है. योजनाएं इनतक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती हैं. लेकिन खूंटी जिला के तेलंगाडीह गांव में रहने वाले 19 बिरहोर परिवार विकास की मुख्यधारा में आने के लिए खेतों में पसीना बहा रहे हैं. जिला प्रशासन और एक स्वयंसेवी संस्था की पहल पर इन लोगों ने 10 एकड़ जमीन पर लेमनग्रास की खेती शुरू की है. इसके लिए कई दिनों तक भूखे प्यासे रहकर इन मेहनतकशों ने पथरीली जमीन को खेती के लायक बना दिया.

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मदद मिली तो जमीन बना दिया हरा-भरा

जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसाइटी के बीच जिले में 100 एकड़ में लेमनग्रास की खेती करने को लेकर हुए एमओयू के तहत बिरहोरों ने लेमनग्रास की खेती की है. जिला प्रशासन से मिले सहयोग के बाद सोसाइटी के लोग लगातार उनके बीच जाकर इनकी हौसला अफजाई करते हैं. अब पांच महीने बाद पहली कटाई होगी और तेल निकाला जाएगा. लेकिन अब भी जरूरत है उनकी इस जमीन पर आसवन केंद्र स्थापित करने की. ऐसा हुआ तो बिरहोरों की कमाई लाखों में पहुंच जाएगी. अब बिरहोरों से आसपास के गुडूबुरू, जोजोहातु आदि गांवों के लोग भी लेमनग्रास की खेती की सिखने लगे हैं.

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20 साल से परती थी जमीन

खास बात है कि जिस जमीन पर लेमन ग्रास की खेती की गई है, वह जमीन पिछले 20 वर्षों से परती पड़ी थी. बीस साल पहले सरकार ने खूंटी जिले के तेलंगाडीह गांव में बिरहोरों के लिए कॉलोनी बनाई और उनके जीविकोपार्जन के लिए कॉलोनी से पांच किमी दूर जोजोहातु में 12.83 एकड़ जमीन दी थी. कॉलोनी में तो बिरहोर रहने लगे, पर जोजोहातु में मिली जमीन उनके काम नहीं आई. कभी-कभार वो उस जमीन को देखने जाया करते थे. उस जमीन पर आज तक एक कुदाल भी नहीं चला था. पिछले वर्ष जेएसएलपीएस द्वारा दस बिरहोरों को लेमनग्रास समेत अन्य औषधीय पौधों का प्रशिक्षण दिया गया, वो मदद के अभाव में खेती नहीं कर पाये थे. इस बार जिला प्रशासन के मुखिया डीसी शशि रंजन, डीडीसी अरूण कुमार सिंह, जिला योजना पदाधिकारी बी अब्रार, नीति आयोग के एडीएफ निखिल त्रिपाठी, जेएसएलपीएस के डीपीएम शैलेश रंजन, सेवा वेलफेयर सोसाईटी की सचिव सबीता संगा, देवा हस्सा, सुशील सोय आदि के सहयोग से लेमनग्रास की खेती के क्षेत्र में पहली सफलता मिली है.

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