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आजादी के बाद से आदिवासियों के जनसंख्या अनुपात में 10% की आई कमी, सरना धर्म कोड से किस तरह हो सकता है लाभ, पढ़ें खास रिपोर्ट

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Published : Mar 15, 2021, 5:14 PM IST

Updated : Mar 16, 2021, 6:47 PM IST

आजादी के बाद 1951 में हुई जनगणना के मुताबिक आदिवासी करीब 35 प्रतिशत थे. वहीं, 2011 की जनगणना के मुताबिक आदिवासी 9% घटकर 26% रह गए. अपनी पहचान को लेकर लंबे अरसे से लड़ाई लड़ रहा आदिवासी समाज सरना धर्म कोड की मांग कर रहा है. इस रिपोर्ट में उन बातों का उल्लेख किया गया है कि आदिवासियों की यह मांग पूरी होने के बाद क्या उन्हें क्या लाभ होंगे.

sarna dharm code for tribals
आदिवासियों की सरना धर्म कोड की मांग

रांची: जल, जंगल, जमीन और पहाड़ के अलावा आदिवासियों से झारखंड राज्य की पहचान होती है. लेकिन, आजादी के बाद से धीरे-धीरे आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत कम होती चली गई. इस वजह से आदिवासियों के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. आजाद हिंदुस्तान में पहली बार 1951 में जनगणना हुई. तब झारखंड की कुल आबादी के 35.8% लोग आदिवासी थे. लेकिन, पिछले 70 सालों में आदिवासियों की संख्या में 10 प्रतिशत की गिरावट आई है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत में आई गिरावट को लेकर कई वजह हैं जिसमें धर्मांतरण का मामला बड़ा है. आदिवासियों की अपनी धार्मिक पहचान नहीं होने के कारण अलग-अलग धर्म के कई लोग उन्हें प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करा देते हैं. झारखंड में ऐसे कई मामले लगातार सामने आते रहते हैं. ऐसे में आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत लगातार घट रही है. आजादी के बाद पिछले 70 वर्षों में आदिवासियों की जनसंख्या अनपात में 9.27% की गिरावट आई है.

केंद्र सरकार के पाले में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव

जनसंख्या अनुपात में हो रही गिरावट के कारण आदिवासी अपनी पहचान को लेकर लगातार मांग उठा रहे हैं. आदिवासियों की मांग पर हेमंत सरकार ने सदन से सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर दिया है. अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पाले में है. आदिवासी लगातार मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को संसद से पास कराए और 2021 की जनसंख्या में उनके लिए अलग खाका बने.

आदिवासियों का कहना है कि सरना धर्म कोड से उन्हें अलग पहचान मिलेगी और आरक्षण जैसे गंभीर मामलों पर उन्हें अधिकार मिल सकेगा. आदिवासी छात्रों को सीधा लाभ मिलेगा. आदिवासियों का दूसरे धर्म की ओर झुकाव नहीं होगा और जनगणना प्रपत्र में उनका सही आंकड़ा होगा. झारखंड में धर्मांतरण के मामले भी धीरे-धीरे कम होंगे.

Declining population percentage of tribals
आदिवासियों की गिरती जनसंख्या प्रतिशत

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की सुनीता मुंडा का कहना है कि सरना धर्म कोड गंभीर मुद्दा है क्योंकि आदिवासियों की जनगणना सही तरीके से नहीं हो रही है. आदिवासी समाजसेवी मुकुट डायन ने कहा कि झारखंड की पहचान आदिवासियों से है और पहचान न मिलने की वजह से आदिवासियों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है. जब सरना धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र से पास हो जाएगा तो इसका लाभ देश में सभी आदिवासियों को मिलेगा.

अलग पहचान मिलने से धर्मांतरण में कमी का दावा

केंद्रीय आदिवासी मोर्चा के महासचिव अलविंद लाकड़ा की मानें तो आदिवासियों की धार्मिक पहचान मिलने से आदिवासियों के धर्मांतरण में कमी आएगी. उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि जनगणना कॉलम में पूरे भारतवर्ष में आदिवासी अनुसूचित जनजाति के लिए आदिवासी धर्म के नाम से धर्म कोड आवंटित किया जाए जिससे हमारी धार्मिक पहचान भी बने रहे.

आदिवासियों के लिए अलग से बजट तैयार हो सके. आदिवासी संगठन से जुड़े अल्बर्ट एक्का ने कहा कि लंबे समय से आदिवासी धर्म कोड की मांग उठ रही है. केंद्र और राज्य सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. वहीं, इस मामले को लेकर ऑल इंडिया क्रिश्चियन माइनॉरिटी फ्रंट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजीत तिर्की का कहना है कि सरना धर्म कोड की मांग जायज है. लेकिन, आदिवासियों की जनसंख्या धर्म परिवर्तन की वजह से नहीं घटी है. अनुपात में कमी आई है लेकिन आदिवासियों की संख्या बढ़ी है.

आदिवासियों के विकास को लेकर अंग्रेजों के शासन के समय से ही उनके लिए जनगणना में अलग कॉलन होता था. लेकिन, आजाद भारत में आदिवासियों के लिए अलग कॉलम नहीं रखा गया है जिसके कारण आदिवासी धर्म कोड की मांग उठ रही है. अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को जनगणना में अलग-अलग नाम से दर्जा दिया गया था.

During the British rule, tribals were given different names in the census.
अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को जनगणना में अलग-अलग नाम से दर्जा दिया गया था.

रांची: जल, जंगल, जमीन और पहाड़ के अलावा आदिवासियों से झारखंड राज्य की पहचान होती है. लेकिन, आजादी के बाद से धीरे-धीरे आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत कम होती चली गई. इस वजह से आदिवासियों के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. आजाद हिंदुस्तान में पहली बार 1951 में जनगणना हुई. तब झारखंड की कुल आबादी के 35.8% लोग आदिवासी थे. लेकिन, पिछले 70 सालों में आदिवासियों की संख्या में 10 प्रतिशत की गिरावट आई है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

झारखंड में आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत में आई गिरावट को लेकर कई वजह हैं जिसमें धर्मांतरण का मामला बड़ा है. आदिवासियों की अपनी धार्मिक पहचान नहीं होने के कारण अलग-अलग धर्म के कई लोग उन्हें प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन करा देते हैं. झारखंड में ऐसे कई मामले लगातार सामने आते रहते हैं. ऐसे में आदिवासियों की जनसंख्या प्रतिशत लगातार घट रही है. आजादी के बाद पिछले 70 वर्षों में आदिवासियों की जनसंख्या अनपात में 9.27% की गिरावट आई है.

केंद्र सरकार के पाले में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव

जनसंख्या अनुपात में हो रही गिरावट के कारण आदिवासी अपनी पहचान को लेकर लगातार मांग उठा रहे हैं. आदिवासियों की मांग पर हेमंत सरकार ने सदन से सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर दिया है. अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पाले में है. आदिवासी लगातार मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को संसद से पास कराए और 2021 की जनसंख्या में उनके लिए अलग खाका बने.

आदिवासियों का कहना है कि सरना धर्म कोड से उन्हें अलग पहचान मिलेगी और आरक्षण जैसे गंभीर मामलों पर उन्हें अधिकार मिल सकेगा. आदिवासी छात्रों को सीधा लाभ मिलेगा. आदिवासियों का दूसरे धर्म की ओर झुकाव नहीं होगा और जनगणना प्रपत्र में उनका सही आंकड़ा होगा. झारखंड में धर्मांतरण के मामले भी धीरे-धीरे कम होंगे.

Declining population percentage of tribals
आदिवासियों की गिरती जनसंख्या प्रतिशत

अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद की सुनीता मुंडा का कहना है कि सरना धर्म कोड गंभीर मुद्दा है क्योंकि आदिवासियों की जनगणना सही तरीके से नहीं हो रही है. आदिवासी समाजसेवी मुकुट डायन ने कहा कि झारखंड की पहचान आदिवासियों से है और पहचान न मिलने की वजह से आदिवासियों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है. जब सरना धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र से पास हो जाएगा तो इसका लाभ देश में सभी आदिवासियों को मिलेगा.

अलग पहचान मिलने से धर्मांतरण में कमी का दावा

केंद्रीय आदिवासी मोर्चा के महासचिव अलविंद लाकड़ा की मानें तो आदिवासियों की धार्मिक पहचान मिलने से आदिवासियों के धर्मांतरण में कमी आएगी. उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि जनगणना कॉलम में पूरे भारतवर्ष में आदिवासी अनुसूचित जनजाति के लिए आदिवासी धर्म के नाम से धर्म कोड आवंटित किया जाए जिससे हमारी धार्मिक पहचान भी बने रहे.

आदिवासियों के लिए अलग से बजट तैयार हो सके. आदिवासी संगठन से जुड़े अल्बर्ट एक्का ने कहा कि लंबे समय से आदिवासी धर्म कोड की मांग उठ रही है. केंद्र और राज्य सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है. वहीं, इस मामले को लेकर ऑल इंडिया क्रिश्चियन माइनॉरिटी फ्रंट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अजीत तिर्की का कहना है कि सरना धर्म कोड की मांग जायज है. लेकिन, आदिवासियों की जनसंख्या धर्म परिवर्तन की वजह से नहीं घटी है. अनुपात में कमी आई है लेकिन आदिवासियों की संख्या बढ़ी है.

आदिवासियों के विकास को लेकर अंग्रेजों के शासन के समय से ही उनके लिए जनगणना में अलग कॉलन होता था. लेकिन, आजाद भारत में आदिवासियों के लिए अलग कॉलम नहीं रखा गया है जिसके कारण आदिवासी धर्म कोड की मांग उठ रही है. अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को जनगणना में अलग-अलग नाम से दर्जा दिया गया था.

During the British rule, tribals were given different names in the census.
अंग्रेजी शासनकाल में आदिवासियों को जनगणना में अलग-अलग नाम से दर्जा दिया गया था.
Last Updated : Mar 16, 2021, 6:47 PM IST
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