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उत्तराखंड हादसे की कहानी घर लौटे मजदूरों की जुबानी, कहा- टनल का मलबा गिरने के बाद नहीं आया किसी को कुछ समझ

Workers rescued in tunnel accident return Ranchi. उत्तराखंड के उत्तरकाशी के टनल हादसे में सुरक्षित निकाले गए झारखंड के रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के खीराबेड़ा के मजदूरों ने 17 दिनों तक कैसे जिंदगी की जंग के लिए जद्दोजहद की इसपर ईटीवी भारत की टीम ने मजदूरों और उनके परिजनों से बातचीत की.

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Workers Rescued In Tunnel Accident Return Ranchi
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 2, 2023, 10:31 PM IST

उत्तराखंड टनल हादसे की कहानी घर लौटे मजदूरों की जुबानी

रामगढ़ः उत्तराखंड टनल हादसे में सुरक्षित निकाले जाने और घर वापसी के बाद रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के खीराबेड़ा गांव निवासी अनिल बेदिया और सुखराम बेदिया से ईटीवी ने बातचीत की. इस दौरान दोनों श्रमिकों ने बताया कि वे एक नवंबर 2023 को अपने घर से काम करने के लिए उत्तराखंड के उत्तरकाशी गए थे. वे टनल निर्माण में सरिया बांधने और सुरंग में ढलाई का काम करते थे.

12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे हुआ था हादसाः उन्होंने बताया कि दिवाली के दिन 12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे टनल के बीचोंबीच का मलबा अचानक गिर गया. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. हम सभी परेशान थे. किसी से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था, लेकिन टनल के अंदर कुछ श्रमिक और पहले से काम कर रहे साथियों ने हम लोगों का हौसला बढ़ाया. जहां मलबा गिरा था वहां से करीब दो किलोमीटर तक टनल पूरी तरह से कंक्रीट होकर कंप्लीट था. हम डरे-सहमे हुए थे कि आगे क्या करेंगे. अचानक हम लोगों में से कुछ का ध्यान टनल के अंदर का जो हिस्सा गिरा था, वहां पर पानी के पाइप पर पड़ा. टनल के अंदर पाइप से पानी गिरने लगा था. उसी पाइप से टनल के अंदर के पानी को बाहर निकाला जाता था. पानी अंदर गिरने लगा तो हम लोगों ने किसी तरह उस पाइप काटा और पानी को बाहर निकाल दिया. पाइप काटने के बाद अंदर फंसे हम सभी मजदूरों ने राहत की सांस ली.

घटना के बाद पहुंचे थे कंपनी के लोगः उधर, टनल धंसने की सूचना पर कंपनी के लोग वहां पहुंचे और किसी तरह पाइप के रास्ते उनसे संपर्क हुआ. हम सभी को भूख काफी लगी थी. सभी को घटना की रात ही लगभग नौ बजे उसी पाइप के जरिए मूढ़ी और ड्राइ फ्रूट भेजा गया. बाद में फिर इसी पानी के छह इंच के पाइप से खाना, ड्राइ फ्रूट, सेब, मोबाइल चार्जर आदि चीजें भेजी गईं तो और उम्मीद और बढ़ गई. दो दिन बाद पाइप के जरिए रेस्क्यू टीम और अधिकारियों ने बात की. परिवार वालों से बात करवायी, तो हौसला बढ़ता गया. मोबाइल तो हम लोगों के पास था और मोबाइल चार्ज करने के लिए चार्जर भी मिल गया था, लेकिन नेटवर्क नहीं था. हम लोग अलग-अलग ग्रुप बनाकर कागज के टुकड़ों से अंदर खेलते थे या फिर मोबाइल में गेम खेलते थे. दोनों ने कहा कि हमलोगों ने सरकार से मांग की है कि हमें स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले. अब हमलोग काम करने के लिए झारखंड से बाहर नहीं जाएंगे. स्थानीय स्तर पर जो भी काम मिलेगा, हम वही काम करेंगे.

राजेंद्र की मां अब बेटे को काम करने नहीं भेजेंगी दूसरे प्रदेशः हालांकि राजेंद्र बेदिया ने बात नहीं की, क्योंकि राजेंद्र की तबीयत खराब थी. देर रात घर पहुंचने के बाद पूजा-अर्चना और परिजनों के आने का तांता लगा रहा. राजेंद्र की नींद पूरी नहीं हो पाई थी. इस कारण उसकी तबीयत खराब थी. वह घर में ही आराम करता दिखा. राजेंद्र की मां उसका सिर सहला रही थी और बेटे के पास ही बैठी रही. बेटे के कुशल लौटने पर वह काफी खुश नजर आ रही थीं, लेकिन राजेंद्र की मां ने भी कहा कि राजेंद्र उनका इकलौता बेटा है. घर चलाने और बहन को पढ़ाने के लिए रोजी-रोजगार के लिए वह राज्य से बाहर काम करने के लिए गया था, लेकिन अब वह उसे राज्य के बाहर काम करने के लिए नहीं भेजेंगे. स्थानीय स्तर पर जो भी मजदूरी करनी होगी उसी से घर चलाएंगे. किसी भी हाल में बाहर नहीं भेजेंगे. उन्हें सरकार और मुख्यमंत्री से कुछ बेहतर की आस है.

उत्तराखंड सरकार से चेक मिलने पर जतायी खुशीः अनिल बेदिया और सुखराम बेदिया ने बताया कि टनल से बाहर निकलने के बाद हमलोग सोचते थे कि सरकार हमारे और हमारे परिवार की क्या मदद करेगी, पर जब बताया गया कि उत्तराखंड सरकार ने सभी मजदूरों को एक-एक लाख रुपए देने की घोषणा की है, तो काफी खुशी मिली. सभी 41 मजदूरों को सहायता स्वरूप एक-एक लाख रुपए का चेक दिया गया है.

ओरमांझी के खीराबेड़ा गांव में जश्न का माहौलः ओरमांझी के खीराबेड़ा के रहने वाले तीनों परिवारों में खुशी और जश्न का माहौल है, लेकिन अब तीनों परिवार अपने बेटों को रोजगार के लिए राज्य से बाहर नहीं भेजेंगे. उन लोगों की आस है कि सरकार स्थानीय स्तर पर उन लोगों के लिए रोजगार मुहैया कराएगी, ताकि अपने परिवार के साथ रहकर उनका भरण-पोषण कर सके और उनके साथ मिल सके.

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रामगढ़ः उत्तराखंड टनल हादसे में सुरक्षित निकाले जाने और घर वापसी के बाद रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के खीराबेड़ा गांव निवासी अनिल बेदिया और सुखराम बेदिया से ईटीवी ने बातचीत की. इस दौरान दोनों श्रमिकों ने बताया कि वे एक नवंबर 2023 को अपने घर से काम करने के लिए उत्तराखंड के उत्तरकाशी गए थे. वे टनल निर्माण में सरिया बांधने और सुरंग में ढलाई का काम करते थे.

12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे हुआ था हादसाः उन्होंने बताया कि दिवाली के दिन 12 नवंबर की सुबह करीब 5:30 बजे टनल के बीचोंबीच का मलबा अचानक गिर गया. किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था. हम सभी परेशान थे. किसी से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था, लेकिन टनल के अंदर कुछ श्रमिक और पहले से काम कर रहे साथियों ने हम लोगों का हौसला बढ़ाया. जहां मलबा गिरा था वहां से करीब दो किलोमीटर तक टनल पूरी तरह से कंक्रीट होकर कंप्लीट था. हम डरे-सहमे हुए थे कि आगे क्या करेंगे. अचानक हम लोगों में से कुछ का ध्यान टनल के अंदर का जो हिस्सा गिरा था, वहां पर पानी के पाइप पर पड़ा. टनल के अंदर पाइप से पानी गिरने लगा था. उसी पाइप से टनल के अंदर के पानी को बाहर निकाला जाता था. पानी अंदर गिरने लगा तो हम लोगों ने किसी तरह उस पाइप काटा और पानी को बाहर निकाल दिया. पाइप काटने के बाद अंदर फंसे हम सभी मजदूरों ने राहत की सांस ली.

घटना के बाद पहुंचे थे कंपनी के लोगः उधर, टनल धंसने की सूचना पर कंपनी के लोग वहां पहुंचे और किसी तरह पाइप के रास्ते उनसे संपर्क हुआ. हम सभी को भूख काफी लगी थी. सभी को घटना की रात ही लगभग नौ बजे उसी पाइप के जरिए मूढ़ी और ड्राइ फ्रूट भेजा गया. बाद में फिर इसी पानी के छह इंच के पाइप से खाना, ड्राइ फ्रूट, सेब, मोबाइल चार्जर आदि चीजें भेजी गईं तो और उम्मीद और बढ़ गई. दो दिन बाद पाइप के जरिए रेस्क्यू टीम और अधिकारियों ने बात की. परिवार वालों से बात करवायी, तो हौसला बढ़ता गया. मोबाइल तो हम लोगों के पास था और मोबाइल चार्ज करने के लिए चार्जर भी मिल गया था, लेकिन नेटवर्क नहीं था. हम लोग अलग-अलग ग्रुप बनाकर कागज के टुकड़ों से अंदर खेलते थे या फिर मोबाइल में गेम खेलते थे. दोनों ने कहा कि हमलोगों ने सरकार से मांग की है कि हमें स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले. अब हमलोग काम करने के लिए झारखंड से बाहर नहीं जाएंगे. स्थानीय स्तर पर जो भी काम मिलेगा, हम वही काम करेंगे.

राजेंद्र की मां अब बेटे को काम करने नहीं भेजेंगी दूसरे प्रदेशः हालांकि राजेंद्र बेदिया ने बात नहीं की, क्योंकि राजेंद्र की तबीयत खराब थी. देर रात घर पहुंचने के बाद पूजा-अर्चना और परिजनों के आने का तांता लगा रहा. राजेंद्र की नींद पूरी नहीं हो पाई थी. इस कारण उसकी तबीयत खराब थी. वह घर में ही आराम करता दिखा. राजेंद्र की मां उसका सिर सहला रही थी और बेटे के पास ही बैठी रही. बेटे के कुशल लौटने पर वह काफी खुश नजर आ रही थीं, लेकिन राजेंद्र की मां ने भी कहा कि राजेंद्र उनका इकलौता बेटा है. घर चलाने और बहन को पढ़ाने के लिए रोजी-रोजगार के लिए वह राज्य से बाहर काम करने के लिए गया था, लेकिन अब वह उसे राज्य के बाहर काम करने के लिए नहीं भेजेंगे. स्थानीय स्तर पर जो भी मजदूरी करनी होगी उसी से घर चलाएंगे. किसी भी हाल में बाहर नहीं भेजेंगे. उन्हें सरकार और मुख्यमंत्री से कुछ बेहतर की आस है.

उत्तराखंड सरकार से चेक मिलने पर जतायी खुशीः अनिल बेदिया और सुखराम बेदिया ने बताया कि टनल से बाहर निकलने के बाद हमलोग सोचते थे कि सरकार हमारे और हमारे परिवार की क्या मदद करेगी, पर जब बताया गया कि उत्तराखंड सरकार ने सभी मजदूरों को एक-एक लाख रुपए देने की घोषणा की है, तो काफी खुशी मिली. सभी 41 मजदूरों को सहायता स्वरूप एक-एक लाख रुपए का चेक दिया गया है.

ओरमांझी के खीराबेड़ा गांव में जश्न का माहौलः ओरमांझी के खीराबेड़ा के रहने वाले तीनों परिवारों में खुशी और जश्न का माहौल है, लेकिन अब तीनों परिवार अपने बेटों को रोजगार के लिए राज्य से बाहर नहीं भेजेंगे. उन लोगों की आस है कि सरकार स्थानीय स्तर पर उन लोगों के लिए रोजगार मुहैया कराएगी, ताकि अपने परिवार के साथ रहकर उनका भरण-पोषण कर सके और उनके साथ मिल सके.

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