रामगढ़: महेंद्र सिंह धोनी एक ऐसा नाम है, जिसे सुनते ही सारी खुबियां और सफलता की उच्चतम शिखर घुटने आ जाती है. मन में ऐसा विश्वास जिसकी तरंगे उत्साह बढ़ाती है. राज्य, देश, विदेश तक एक धुरी में बंध जाती है. इसी शख्सियत की परवान चढ़ती जीवन यात्रा को यादों को सजाये हैं, रामगढ़ छावनी परिषद का ऐतिहासिक फुटबॉल मैदान, जो महेंद्र सिंह धोनी के चौकों-छक्कों का गवाह रहा है.
किशोरावस्था के दौरान उन्होंने रामगढ़ की धरती पर अनेक मैच खेले और अपनी टीम को विजय दिलाई. अब उनके अंतरराष्ट्रीय मैच से संन्यास की घोषणा से खेल प्रेमी मायूस दिख रहे हैं. रामगढ़ की गलियों में आम लोगों की तरह अपने दोस्तों के साथ घूमने वाले धोनी राजीव गांधी खेल रत्न, प्लेयर ऑफ द इयर, पद्मश्री और पद्मभूषण जैसे पुरस्कारों से नवाजे गए हैं. ऐसे में रामगढ़वासियों और भुरकुंडा-सयाल कोयलांचलवासियों के लिए सौभाग्य की बात है कि महान क्रिकेटर धोनी ने अपने शुरुआती दौर में कई वर्षों तक यहां पर टूर्नामेंट खेला.
वर्ष 1998 में पहली बार महेंद्र सिंह धोनी रामगढ़ आए और हेहल र्स्पोटिंग, रांची की तरफ से फुटबॉल मैदान की क्रिकेट पीच पर उतरे. रामगढ़ में प्रतिवर्ष, साल के अंतिम महीने दिसंबर में उस वक्त लोकनायक जयप्रकाश नारायण मेमोरियल क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजित की जाती थी. धोनी विकेटकीपर हुआ करते थे. विश्व के इस महानतम विकेटकीपर को उस वक्त अपने टीम के एक अन्य वरिष्ठ विकेटकीपर वंशी सारंगी के चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता था. उस वक्त यह माना जाता था कि सारंगी धोनी की अपेक्षा बेहतर विकेटकीपर है. धोनी के पांव रामगढ़ की धरती पर वर्ष 1998 से 2002 तक लगातार पड़े. किसी न किसी मैच में वह रामगढ़ आते और कीपिंग के साथ-साथ बैटिंग के दौरान चौके-छक्के की बरसात करते थे.
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रामगढ़ में उस वक्त के लोकनायक जयप्रकाश नारायण मेमोरियल क्रिकेट टूर्नामेंट आयोजक अरुण कुमार राय बताते हैं कि धोनी के मैदान पर उतरते ही एक अलग शमा बंध जाता था. मैदान का हर कोना चौकों-छक्कों की बौछार से ओत-प्रोत रहता था. मैदान के सामने से गुजरी एनएच-33 और उसके करीब के दूकानदार गेंदों के बार-बार आने से परेशान हो उठते थे. क्रिकेट के सभी गुण इस महान क्रिकेटर में ईश्वर ने कूट-कूट कर भर रखे थे. जिसकी नुमाईश रामगढ़ फुटबॉल मैदान पर हर वर्ष दिखती थी. इतना ही नहीं उनकी ओर से लगाए गए ऊंचे-ऊंचे छक्कों को भी लोग आज याद करते हैं.