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शारदीय नवरात्र: अलौकिक है रजरप्पा की मां छिन्नमस्तिके का स्वरूप, दूर-दूर से दर्शन को आते हैं भक्त - Maa Chinnamastike

कामाख्या के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है. झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर हैं. रजरप्पा के भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है.

अलौकिक है रजरप्पा की मां छिन्नमस्तिके का स्वरूप
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Published : Oct 3, 2019, 1:01 PM IST

रामगढ़: शारदीय नवरात्र की हर जगह धूम है. इस बार 9 दिन में नौ अद्भुत और मंगलकारी संयोग मिल रहे हैं. दो दिन अमृत सिद्धि, दो दिन सर्वार्थ सिद्धि, दो दिन रवि योग मिलेंगे. दो सोमवार भी होंगे जो शिव-शक्ति के प्रतीक हैं. रजरप्पा में मां छिन्नमस्तिके मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

कामाख्या के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है. झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर हैं. रजरप्पा के भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है. इसके अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं. पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है.

महाभारत युग का है मंदिर

दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के पास ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है. मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य स्वरूप है. मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है. किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण 6 हजार साल पहले हुआ तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है. यह मंदिर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है. असम स्थित मां कामाख्या मंदिर को सबसे बड़ी शक्तिपीठ माना जाता है.

ये भी पढ़ें- सिक्कों से बनाई जा रही मूर्ति बनी आकर्षण का केंद्र, 1957 से हर साल यहां होती है पूजा

सुबह से ही लगता है भक्तों का तांता

मंदिर में सुबह 4 बजे से माता का दरबार सजना शुरू होता है. भक्तों की भीड़ भी सुबह से पंक्तिबद्ध खड़ी रहती है. इस भीड़ को संभालने और माता के दर्शन को सुलभ बनाने के लिए आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय पुलिस भी मदद करती है. मंदिर के आसपास ही फल-फूल, प्रसाद की कई छोटी-छोटी दुकानें हैं. आमतौर पर लोग यहां सुबह आते हैं और दिनभर पूजा-पाठ और मंदिरों के दर्शन करने के बाद शाम होने से पहले ही लौट जाते हैं.

अद्भुत है पापनाशिनी कुंड

मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं. पांव के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं. मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला और मुंडमाल से सुशोभित है. बिखरे और खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित मां दिव्य रूप में हैं. दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं. जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं. मंदिर का मुख्य द्वार पूरब मुखी है. मंदिर के सामने बलि का स्थान है. मंदिर की भित्ति 18 फीट नीचे से खड़ी की गई है. नदियों के संगम के मध्य में एक अद्भुत पापनाशिनी कुंड है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त कर उनमें नवजीवन का संचार करता है.

ये भी पढ़ें- शिव से पहले शक्ति का वास स्थल है देवघर, शारदीय नवरात्रि की रहती है यहां धूम

मनोहारी है भैरवी और दामोदर नदी का संगम स्थल

भक्त दामोदर में स्नान कर मंदिर में जा सकते हैं. दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है. भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है, जबकि दामोदर पुरुष. संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है. कहा जाता है कि जहां भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस स्थल की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है.मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई पुरानी कथाएं प्रचलित हैं. प्राचीन काल में छोटानागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे. राजा की पत्नी का नाम रूपमा था. इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा हो गया.

राजा दामोदर को मां छिन्नमस्तिके ने दिए दर्शन
एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे. रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुखमंडल वाली एक कन्या देखी. उसने राजा से कहा - हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है. मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी. राजा की आंखें खुलीं तो वह इधर-उधर भटकने लगे. इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं. वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई. उसका रूप अलौकिक था. यह देख राजा भयभीत हो उठे.

रजरप्पा के रूप में विख्यात
राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं. कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके, जबकि मैं इस वन में प्राचीन काल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं. मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी. हे राजन, मिलन स्थल के पास तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा. इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी. तुम सुबह मेरी पूजा करके बलि चढ़ाओ. ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं. इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया.

डाकिनी और शाकिनी की भूख शांत करने के लिए कराया रक्तपान
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. सहेलियों ने भी भोजन मांगा. देवी ने उनसे थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा. इसके बाद सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया. कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा और गले से तीन धाराएं निकलीं. वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं, तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं.

रामगढ़: शारदीय नवरात्र की हर जगह धूम है. इस बार 9 दिन में नौ अद्भुत और मंगलकारी संयोग मिल रहे हैं. दो दिन अमृत सिद्धि, दो दिन सर्वार्थ सिद्धि, दो दिन रवि योग मिलेंगे. दो सोमवार भी होंगे जो शिव-शक्ति के प्रतीक हैं. रजरप्पा में मां छिन्नमस्तिके मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

कामाख्या के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिके मंदिर काफी लोकप्रिय है. झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 79 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिके का यह मंदिर हैं. रजरप्पा के भैरवी और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है. इसके अलावा यहां महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल 7 मंदिर हैं. पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है.

महाभारत युग का है मंदिर

दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के पास ही मां छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है. मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य स्वरूप है. मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है. किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण 6 हजार साल पहले हुआ तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है. यह मंदिर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है. असम स्थित मां कामाख्या मंदिर को सबसे बड़ी शक्तिपीठ माना जाता है.

ये भी पढ़ें- सिक्कों से बनाई जा रही मूर्ति बनी आकर्षण का केंद्र, 1957 से हर साल यहां होती है पूजा

सुबह से ही लगता है भक्तों का तांता

मंदिर में सुबह 4 बजे से माता का दरबार सजना शुरू होता है. भक्तों की भीड़ भी सुबह से पंक्तिबद्ध खड़ी रहती है. इस भीड़ को संभालने और माता के दर्शन को सुलभ बनाने के लिए आवश्यकता पड़ने पर स्थानीय पुलिस भी मदद करती है. मंदिर के आसपास ही फल-फूल, प्रसाद की कई छोटी-छोटी दुकानें हैं. आमतौर पर लोग यहां सुबह आते हैं और दिनभर पूजा-पाठ और मंदिरों के दर्शन करने के बाद शाम होने से पहले ही लौट जाते हैं.

अद्भुत है पापनाशिनी कुंड

मां छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. बायां पांव आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं. पांव के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं. मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला और मुंडमाल से सुशोभित है. बिखरे और खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित मां दिव्य रूप में हैं. दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा मस्तक है. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं. जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं. मंदिर का मुख्य द्वार पूरब मुखी है. मंदिर के सामने बलि का स्थान है. मंदिर की भित्ति 18 फीट नीचे से खड़ी की गई है. नदियों के संगम के मध्य में एक अद्भुत पापनाशिनी कुंड है, जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त कर उनमें नवजीवन का संचार करता है.

ये भी पढ़ें- शिव से पहले शक्ति का वास स्थल है देवघर, शारदीय नवरात्रि की रहती है यहां धूम

मनोहारी है भैरवी और दामोदर नदी का संगम स्थल

भक्त दामोदर में स्नान कर मंदिर में जा सकते हैं. दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है. भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है, जबकि दामोदर पुरुष. संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है. कहा जाता है कि जहां भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस स्थल की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है.मां छिन्नमस्तिके की महिमा की कई पुरानी कथाएं प्रचलित हैं. प्राचीन काल में छोटानागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे. राजा की पत्नी का नाम रूपमा था. इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा, जो बाद में रजरप्पा हो गया.

राजा दामोदर को मां छिन्नमस्तिके ने दिए दर्शन
एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुंचे. रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुखमंडल वाली एक कन्या देखी. उसने राजा से कहा - हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है. मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी. राजा की आंखें खुलीं तो वह इधर-उधर भटकने लगे. इस बीच उनकी आंखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं. वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई. उसका रूप अलौकिक था. यह देख राजा भयभीत हो उठे.

रजरप्पा के रूप में विख्यात
राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूं. कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके, जबकि मैं इस वन में प्राचीन काल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं. मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी. हे राजन, मिलन स्थल के पास तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा. इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी. तुम सुबह मेरी पूजा करके बलि चढ़ाओ. ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं. इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया.

डाकिनी और शाकिनी की भूख शांत करने के लिए कराया रक्तपान
एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं. स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया. सहेलियों ने भी भोजन मांगा. देवी ने उनसे थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा. इसके बाद सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया. कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा और गले से तीन धाराएं निकलीं. वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं, तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं.

Intro:-भारत वर्ष में तीन सिद्धपीठ प्रसिद्ध है। जिसमें दूसरा स्थान माता छिन्नमस्तिके का आता है। जो झारखंड प्रदेश के रामगढ़ जिला अंतर्गत रजरप्पा में बिराजमान है। शास्त्रों की अगर माने तो देश में स्थित तीन सिद्धपीठों में आसाम में कमाख्या, पश्चिम बंगाल में तारा पीठ तथा झारखंड में छिन्नमस्तिके प्रसिद्ध है। Body:इन तीनों सिद्ध स्थानों पर पुरूष नद बहा करता है। कमाख्या में ब्रहम्पुत्र, तारा पीठ में अजय तथा रजरप्पा में दामोदर इन तीनों पुरूष नद में महिला नदियों का संगम प्रकृति रूप से हुआ है। रजरप्पा में दामोदर नद में भैरवी नदी का संगम हुआ है। जो देखने में अद्भुत है। इसी का प्रकार माता छिन्नमस्तिके का कागजों पर अंकित तश्वीर है। जिसमें मां अपने खडग से अपना ही सिर काटकर हाथों में ली हुई है। गले से निकलती तीन रक्त धाराओं को एक स्वयं एवं दो अन्य धाराओं सहचरनी डाकनी व साकनी धारण की हुई है। माता के पैरों के नीचे ब्रहम कमल के अंदर रती एवं कामदेव की विपरित रति मुद्रा है। जो इस बात का सूचक है कि माता मनुष्यों के अंदर की सारी बुरी बृतियों को दमन करने में सक्षम है। सिद्धपीठ एवं शक्तिपीठ में सामान्यः कुछ अंतर है। माता सती का अंग छिन्नभिन्न होकर धरती के जिन-जिन स्थानों पर गिरा वह शक्तिपीठ कहलाए। इस घटना के पूर्व माता का संपूर्ण शरीर तीन स्थानों पर निवास करता था। वह तीन स्थान सिद्धपीठ माने जाते है। 



छिन्नमस्तिके मंदिर के अलावा यहाँ महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं। पश्चिम दिशा से दामोदर तथा दक्षिण दिशा से कल-कल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है। दामोदर और भैरवी के संगम स्थल के समीप ही माँ छिन्नमस्तिके का मंदिर स्थित है। मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर मुख किए माता छिन्नमस्तिके का दिव्य रूप अंकित है। मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों में मतभेद है। किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण छह हजार वर्ष पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत युग का मानता है। यह दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। असम स्थित माँ कामाख्या  और बंगाल में मां तारा देवी मंदिर को  शक्तिपीठ माना जाता है। 


माँ छिन्नमस्तिके मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में माँ की तीन आँखें हैं। बायाँ पाँव आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं। पाँव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं। माँ छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला तथा मुंडमाल से सुशोभित है। बिखरे और खुले केश, जिह्वा बाहर, आभूषणों से सुसज्जित माँ  दिव्य रूप में हैं। दाएँ हाथ में तलवार तथा बाएँ हाथ में अपना ही कटा मस्तक है। इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी खड़ी हैं जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं। इनके गले से रक्त की तीन धाराएँ बह रही हैं।

मंदिर का मुख्य द्वारा पूरब मुखी है। मंदिर के सामने बलि का स्थान है।  मंदिर की भित्ति 18 फुट नीचे से खड़ी की गई है। नदियों के संगम के मध्य में एक अद्भुत पापनाशिनी कुंड है जो रोगग्रस्त भक्तों को रोगमुक्त कर उनमें नवजीवन का संचार करता है।
दामोदर और भैरवी नदी का संगम स्थल भी अत्यंत मनोहारी है। भैरवी नदी स्त्री नदी मानी जाती है जबकि दामोदर पुरुष। संगम स्थल पर भैरवी नदी ऊपर से नीचे की ओर दामोदर नदी के ऊपर गिरती है। कहा जाता है कि जहाँ भैरवी नदी दामोदर में गिरकर मिलती है उस स्थल की गहराई अब तक किसी को पता नहीं है।



नवरात्र में होती है विशेष पूजा

नवरात्र में माता छिन्नमस्तिके के मंदिर में पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पहली पूजा क्षेत्र के आदिवासी ही करते है। दस महाविद्याओं की सिद्धी हासिल करने के लिए किसी भी क्षेत्र के साधकों को छिन्नमस्तिके के दरबार में आना पड़ता है। क्योंकि दस महाविद्या में दसवां छिन्नमस्ता ही है। नवरात्र में देश व विदेश के श्रद्धालु पूजा अर्चना करने के लिए आते है तथा कलश की स्थापना कर विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। इन दिनों मंदिर श्रद्धालुुओं से पटा हुआ है। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु माता का पूजन करते है। सुबह से ही मंदिर प्रांगण श्रद्धालुओं से पटा जाता  है। श्रद्धालु कतारबद्ध होकर माता की पूजा-अर्चना करते  है। 

 यहां अष्टमी एवं नवमी में तो श्रद्धालुओं की इतनी भीड़ होती है कि मंदिर में पैर रखने की जगह भी नहीं बचती है। साथ ही मंदिर को आकर्षक ढंग से सजाया जाता है। मंदिर में प्रत्येक दिन भंडारा होता है। भारी संख्या में श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते है। 

बाइट शुभाशीष पंडा पुजारी व सचिव रजरप्पा मंदिर न्यास समिति( चश्मा पहने हुए वाइट शर्ट में)

बाइट सुबोध पंडा पुजारी रजरप्पा मंदिर /(note मंदिर के पीछे बैकग्राउंड में सर पर बाल नहीं है)

बाइट लोकेश पंडा पुजारी रजरप्पा मंदिर( कंधा पर चुनरी है)

बाइक पोपेश पडा पुजारी रजरप्पा मंदिर (व्हाइट शर्ट में बैठे हुए मैं बाइट है)



रजरप्पा स्थित मां छिन्मस्तिका मंदिर का विशेष महत्व है। इसलिए देश के अलावा विदेशों से भी भक्त व साधक माता के दर्शन को पहुंचते हैं। छिन्नमस्तिका मंदिर की पावन भूमि सिद्धपीठ है। काशी बनारस से आए एक साधक की मानें तो छिन्नमस्तिका मंदिर के आसपास के कण-कण में साधना के लिए ऐसी उर्जा मिलती है, जिसे साधारण जनमानस महसूस नहीं कर सकते हैं। बल्कि इस करंट को साधक या तंत्र मंत्र के जानकार ही महसूस कर सकता है। साधक का दावा है कि यहां मिलने वाली उर्जा विश्व के किसी भी सिद्ध या शक्तिपीठ में महसूस नही किया जा सकता है।

बाइट राम नारायण शास्त्री साधक बनारस


वही रजरप्पा मंदिर मंदिर में श्रद्धालुओं का कहना है कि मां उनकी मुरादें पूरी करती हैं नवरात्र में मां के दरबार में हाजिरी लगाने से उन्हें सुकून मिलता है कई लोगों ने कहा कि मां के यहां हाजिरी लगाई थी और उनकी मुराद पूरी हुई है मां की महिमा अपरंपार है सच्चे मन से जो भी यहां मांगेगा उसकी मुराद जरूर पूरी होगी

बाइट महिला श्रद्धालु

बाइट गंजी में शशि श्रद्धालु

बाइट बृजेश कुमार सिंह चेक लाल शर्ट श्रद्धालु

बाइट वाइट शर्ट श्रद्धालु


वही यदि इसकी सुरक्षा वह व्यवस्था की बात करें तो पूरा इलाका सीसीटीवी कैमरे से लैस है उपायुक्त ने बताया कि दुर्गा पूजा के अवसर पर यहां मजिस्ट्रेट व पुलिस बलों की तैनाती रहती है साथ ही साथ श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की जाती है ताकि किसी श्रद्धालु को किसी तरह की कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़े इस बार नवरात्र में वृद्धि खासकर महिला दिव्यांगों के लिए अलग से व्यवस्था की जाएगी ताकि उन्हें बहुत देर तक लाइन में खड़ा रहना पड़े ।

बाइट संदीप सिंह उपायुक्त रामगढ़


वहीं सुरक्षा के दृष्टिकोण से इस पूरे इलाके में पुलिस बलों की तैनाती रहती है रजरप्पा टीओपी का भी निर्माण कराया गया है साथ ही साथ यहां पुलिस बलों की तैनाती 24 घंटे रहती है दुर्गा पूजा एवं दिवाली पर विशेष तौर पर सुरक्षा के दृष्टिकोण से पुलिस बलों की तैनाती की जाती है ताकि आने वाले किसी भी श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई परेशानी का सामना करना ना पड़े।


बाइक राधा प्रेम किशोर एसडीपीओ रामगढ़



माँ छिन्नमस्तिके की महिमा की कई पुरानी कथाएँ प्रचलित हैं। 

प्राचीन काल में छोटानागपुर में रज नामक एक राजा राज करते थे। राजा की पत्नी का नाम रूपमा था। इन्हीं दोनों के नाम से इस स्थान का नाम रजरूपमा पड़ा जो बाद में रजरप्पा हो गया। एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम स्थल पर पहुँचे।

रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुखमंडल वाली एक कन्या देखी। उसने राजा से कहा - हे राजन, इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है। मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी। राजा की आंखें खुलीं तो वह इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उनकी आँखें स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिलीं। वह कन्या जल के भीतर से राजा के सामने प्रकट हुई। उसका रूप अलौकिक था। यह देख राजा भयभीत हो उठे।

राजा को देखकर देख वह कन्या कहने लगी- हे राजन, मैं छिन्नमस्तिके देवी हूँ। कलियुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सके हैं जबकि मैं इस वन में प्राचीन काल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूँ। मैं तुम्हें वरदान देती हूँ कि आज से ठीक नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। हे राजन, मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा। इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी। तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाओ। ऐसा कहकर छिन्नमस्तिके अंतर्ध्यान हो गईं।

इसके बाद से ही यह पवित्र तीर्थ रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गईं। स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया। सहेलियों ने भी भोजन माँगा। देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा। बाद में सहेलियों के विनम्र आग्रह पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिया। कटा सिर देवी के हाथों में आ गिरा व गले से तीन धाराएँ निकलीं। वह दो धाराओं को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगीं। तभी से ये छिन्नमस्तिके कही जाने लगीं।Conclusion:
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