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बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण खरीद रहे घोड़ा, सुरक्षाबलों की मदद से मिल रहा रोजगार - Palamu news

सुरक्षाबलों की ओर से बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीणों को घोड़ा खरीदन को लेकर प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि उन्हें रोजगार मिल सके. सुरक्षाबलों की योजना है कि कैंप के राशन सप्लाई लाइन से जोड़कर ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराई जाए.

Villagers of Budha Pahad buying horse
बूढ़ा पहाड़ के ग्रामीण खरीद रहे घोड़ा
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Published : Jan 28, 2023, 2:23 PM IST

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पलामूः बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों के पंहुचने के बाद ग्रामीणों के लिए रोजगार के कई साधन खुल गए है. ग्रामीण सुरक्षाबलों के कैंपों में सामग्री को पहुंचा कर पैसे कमा रहे हैं. ग्रामीण पैदल या फिर घोड़ा की मदद से पहाड़ों पर बने सुरक्षाबलों के कैंपों तक सामग्री पहुंचते हैं. इसके बदले उन्हें पारिश्रमिक देते हैं. स्थिति यह है कि ग्रामीणों को घोड़ा खरीदने को लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि इसके जरिए उन्हें अच्छी आमदनी हो सके.

यह भी पढ़ेंः सीएम हेमंत सोरेन को सुकून देती है बूढ़ापहाड़ की वादियां, कहा- कुछ लोगों ने खूबसूरत जगह को बना दिया डरावना

पैदल सामान पहुंचाने वालों को प्रति ट्रिप 100 रुपये और घोड़ा की मदद से सामान पंहुचाने वाले को 500 रुपये देते हैं. सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों से घोड़ा खरीदने की अपील की है, ताकि उन्हें अधिक अधिक लोगों को सप्लाई लाइन से जोड़कर रोजगार मुहैया कराई जा सके. बता दें कि सुरक्षाबलों की अपील के बाद आधा दर्जन से अधिक ग्रामीणों ने घोड़ा खरीद लिया है. हालांकि, पैदल सामग्री पहुंचाने का काम तीन दर्जन से अधिक युवा प्रतिदिन कर रहे हैं.

पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लाकड़ा ने बताया कि कैंपों के माध्यम से लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने की पहल की गई है. लोग सुरक्षाबलों के कैंपो के सप्लाई लाइन से जुड़ेंगे तो उन्हें रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि आने वाले छह आठ माह में इस इलाके को सड़क और पुल पुलिया बनाया जाएगा, ताकि लोगों को आने-जाने में दिक्कत नहीं हो सके.

बूढ़ा पहाड़ झारखंड के गढ़वा जिले में मौजूद है. इसकी सीमा लातेहार और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर से लगी है. यंहा जाने के लिए छत्तीसगढ़ के पुंदाग और लातेहार के तिसिया गांव से सीधी चढ़ाई करनी पड़ती है. दोनों तरफ से पहाड़ चढ़ने में लोगों को करीब दो घंटे से अधिक समय लगते हैं. लेकिन स्थानीय युवा इस पहाड़ को 40 मिनट में चढ़ जाते है. सुरक्षाबलों के सप्लाई लाइन से आदिम जनजाति परिवार के लोग जुड़े हुए हैं.

बता दें कि आदिम जनजाति को केंद्र सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है. इस इलाके में कोरवा और बिरिजिया जनजाति की बहुलता है. ग्रामीण सुधीर कहते हैं कि सुरक्षाबलों के कैंप में रोजाना पैदल सामान पहुंचा रहे है. इससे हमारी कमाई हो रही है. ग्रामीण इस्लाम ने बताया कि सामान के हिसाब से पैसे मिल रहे हैं. बूढ़ा पहाड़ चढ़ाई करने में उसे करीब एक घंटे लगते हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों से घोड़ा खरीदने की अपील भी की है, ताकि सामान पहुंचाने में आसानी होगी.

बूढ़ा पहाड़ के इलाके में नक्सली घोड़ा का इस्तेमाल करते थे. लेकिन ग्रामीणों से सामान पैदल मंगवाते थे. 2015-16 में सुरक्षाबलों ने बड़ी संख्या में नक्सलियों के घोड़े बरामद किया था. ग्रामीण मुस्ताक ने बताया कि सामग्री पहुंचाने के लिए ग्रामीणों ने घोड़ा खरीदना शुरू कर दिया है. छत्तीसगढ़ के कुसमी के इलाके से ग्रामीण चार से पांच हजार रुपये में घोड़ा खरीद रहे है.

बूढ़ा पहाड़ और उसके आसपास के इलाकों में आधा दर्जन से अधिक पुलिस कैंप बनाए गए हैं. इन कैंपो मे कोबरा और सीआरपीएफ को तैनात किया गया. इलाके में बूढ़ा, तिदिया, नावाटोली, बहेराटोली, खपरी महुआ में पुलिस कैंप बनाए गए हैं. इन कैंप पहाड़ों के श्रृंखला पर मौजूद हैं, जहां तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इन कैंपों में जाने के लिए पैदल ही जाना पड़ता है. कैंपों में दो हजार से भी अधिक जवान तैनात हैं. जवानों के लिए सामग्री पहुंचाना बड़ी चुनौती है. हेलीकॉप्टर के माध्यम से कई जगहों पर सामग्री पहुंचाया जा रहा है.

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पलामूः बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों के पंहुचने के बाद ग्रामीणों के लिए रोजगार के कई साधन खुल गए है. ग्रामीण सुरक्षाबलों के कैंपों में सामग्री को पहुंचा कर पैसे कमा रहे हैं. ग्रामीण पैदल या फिर घोड़ा की मदद से पहाड़ों पर बने सुरक्षाबलों के कैंपों तक सामग्री पहुंचते हैं. इसके बदले उन्हें पारिश्रमिक देते हैं. स्थिति यह है कि ग्रामीणों को घोड़ा खरीदने को लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि इसके जरिए उन्हें अच्छी आमदनी हो सके.

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पैदल सामान पहुंचाने वालों को प्रति ट्रिप 100 रुपये और घोड़ा की मदद से सामान पंहुचाने वाले को 500 रुपये देते हैं. सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों से घोड़ा खरीदने की अपील की है, ताकि उन्हें अधिक अधिक लोगों को सप्लाई लाइन से जोड़कर रोजगार मुहैया कराई जा सके. बता दें कि सुरक्षाबलों की अपील के बाद आधा दर्जन से अधिक ग्रामीणों ने घोड़ा खरीद लिया है. हालांकि, पैदल सामग्री पहुंचाने का काम तीन दर्जन से अधिक युवा प्रतिदिन कर रहे हैं.

पलामू रेंज के आईजी राजकुमार लाकड़ा ने बताया कि कैंपों के माध्यम से लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाने की पहल की गई है. लोग सुरक्षाबलों के कैंपो के सप्लाई लाइन से जुड़ेंगे तो उन्हें रोजगार के लिए पलायन नहीं करना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि आने वाले छह आठ माह में इस इलाके को सड़क और पुल पुलिया बनाया जाएगा, ताकि लोगों को आने-जाने में दिक्कत नहीं हो सके.

बूढ़ा पहाड़ झारखंड के गढ़वा जिले में मौजूद है. इसकी सीमा लातेहार और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर से लगी है. यंहा जाने के लिए छत्तीसगढ़ के पुंदाग और लातेहार के तिसिया गांव से सीधी चढ़ाई करनी पड़ती है. दोनों तरफ से पहाड़ चढ़ने में लोगों को करीब दो घंटे से अधिक समय लगते हैं. लेकिन स्थानीय युवा इस पहाड़ को 40 मिनट में चढ़ जाते है. सुरक्षाबलों के सप्लाई लाइन से आदिम जनजाति परिवार के लोग जुड़े हुए हैं.

बता दें कि आदिम जनजाति को केंद्र सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है. इस इलाके में कोरवा और बिरिजिया जनजाति की बहुलता है. ग्रामीण सुधीर कहते हैं कि सुरक्षाबलों के कैंप में रोजाना पैदल सामान पहुंचा रहे है. इससे हमारी कमाई हो रही है. ग्रामीण इस्लाम ने बताया कि सामान के हिसाब से पैसे मिल रहे हैं. बूढ़ा पहाड़ चढ़ाई करने में उसे करीब एक घंटे लगते हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों ने ग्रामीणों से घोड़ा खरीदने की अपील भी की है, ताकि सामान पहुंचाने में आसानी होगी.

बूढ़ा पहाड़ के इलाके में नक्सली घोड़ा का इस्तेमाल करते थे. लेकिन ग्रामीणों से सामान पैदल मंगवाते थे. 2015-16 में सुरक्षाबलों ने बड़ी संख्या में नक्सलियों के घोड़े बरामद किया था. ग्रामीण मुस्ताक ने बताया कि सामग्री पहुंचाने के लिए ग्रामीणों ने घोड़ा खरीदना शुरू कर दिया है. छत्तीसगढ़ के कुसमी के इलाके से ग्रामीण चार से पांच हजार रुपये में घोड़ा खरीद रहे है.

बूढ़ा पहाड़ और उसके आसपास के इलाकों में आधा दर्जन से अधिक पुलिस कैंप बनाए गए हैं. इन कैंपो मे कोबरा और सीआरपीएफ को तैनात किया गया. इलाके में बूढ़ा, तिदिया, नावाटोली, बहेराटोली, खपरी महुआ में पुलिस कैंप बनाए गए हैं. इन कैंप पहाड़ों के श्रृंखला पर मौजूद हैं, जहां तक जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है. इन कैंपों में जाने के लिए पैदल ही जाना पड़ता है. कैंपों में दो हजार से भी अधिक जवान तैनात हैं. जवानों के लिए सामग्री पहुंचाना बड़ी चुनौती है. हेलीकॉप्टर के माध्यम से कई जगहों पर सामग्री पहुंचाया जा रहा है.

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