पलामू: कोरोना काल के बाद पोस्ता की खेती का ट्रेंड बदल गया है. 2023 में पोस्ता की खेती से जुड़े हुए कई चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. कुछ दिनों पहले ही ईटीवी भारत ने खबर प्रकाशित की थी कि झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाके में हर कदम पर पोस्ता की खेती लगी हुई है. पलामू पुलिस ने अब तक कार्रवाई में 60 एकड़ से भी अधिक में लगे पोस्ता की फसल को नष्ट किया है. पोस्ता की खेती के खिलाफ यह अभियान जारी है.
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पलामू पुलिस की कार्रवाई में इस बात का खुलासा हुआ है कि पोस्ता की खेती करने वाले किराए के जमीन का इस्तेमाल कर रहे हैं. गैरमजरूआ और वन भूमि को भी तस्कर स्थानीय ग्रामीणों को बरगला कर खेती करवा रहे हैं. पलामू के नौडीहा बाजार छतरपुर के इलाके में बड़े पैमाने पर चतरा और पांकी के इलाके के तस्करों ने पोस्ता की खेती करवाई है. मामले में अब तक पलामू पुलिस ने 50 से भी अधिक लोगों खिलाफ एफआईआर दर्ज की है और आधा दर्जन से अधिक को गिरफ्तार किया है. कई तस्कर बिहार के गया के शामिल हैं.
पुलिस की कार्रवाई के बाद बदल दी जगह: पोस्ता के तस्करों ने पुलिस की कार्रवाई और इलाके के बदनाम होने के बाद जगह ही बदल दी है. पलामू के पांकी के रहने वाले विजय यादव ने बताया कि पलामू चतरा सीमा पर पिछले कुछ वर्षों में पुलिस ने बड़े पैमाने पर पोस्ता की खेती को नष्ट किया है. जिसके बाद तस्करों ने इलाके को ही बदल दिया है. इलाके के तस्कर नए ठिकानों की तलाश कर खेती करवाई है. तस्कर प्रति एकड़ 10 से 15 हजार रुपये में जमीन किराया पर लेते हैं, जबकि पोस्ता की खेती के देखभाल के लिए रैयत का ही इस्तेमाल तस्कर कर कर रहे हैं. तस्कर इस खेती की देखभाल के लिए प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 300 से 400 रुपये के हिसाब से भुगतान कर रहे हैं. जिस इलाके में तस्करों ने वनभूमि और गैरमजरूआ जमीन पर पोस्ता की फसल लगवाई है, उस इलाके में अपने परिचित मजदूरों का वे इस्तेमाल कर रहे हैं.
पोस्ता की खेती के लिए पलायन कर रही आबादी: पलामू के मनातू प्रखंड के डुमरी, साहद, नागद, रंगेया जैसे गांव की आबादी पोस्ता की खेती के लिए गांव से पलायन कर गई है. यह आबादी पहले धान काटने के लिए बिहार के इलाके में पलायन करती थी. इस बार बड़े संख्या में इलाके के पुरुष पोस्ता की खेती के लिए पलायन कर गए हैं. पलामू से सटे बिहार के इलाके में बड़े पैमाने पर पोस्ता की फसल लगाई गई है. यहां प्रतिदिन 500 से 700 रुपये मजदूरी के मिलती है, जिसके कारण बड़ी संख्या में ग्रामीण इन इलाकों में पलायन कर रही है.
पोस्ता की खेती नए इलाकों में शुरू: अफीम के तस्करों ने नए इलाकों में पोस्ता की खेती की शुरूआत की है. पोस्ता की फसल सितंबर अक्टूबर के महीने में लगाई गई है, जबकि इस फसल से उत्पादन जनवरी फरवरी महीने में शुरू हो जाती है. 2005- 06 में प्रतिबंधित नक्सली संगठन तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी के संरक्षण में इस खेती की शुरुआत हुई थी. उसके बाद खेती लगातार बढ़ती गई है. इस बार भी बड़े पैमाने पर झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाकों में पोस्ता की फसल लगाई गई है. पलामू जैसे इलाके में पिछले एक दशक में पोस्ता की खेती करने के आरोप में 800 से भी अधिक ग्रामीणों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ है. पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को फसल तैयार होने के बाद ही जानकारी मिल पाती है कि पोस्ता की फसल लगाई गई है. कई बार पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के कार्यशैली पर सवाल भी उठे हैं.