पलामू: झारखंड में वन संपदाओं की भरमार है. इन वन संपदाओं में कई ऐसे उपज हैं, जिनका राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा बाजार है. इन वन संपदाओं से आदिवासियों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने की पहल की जा रही है. वन धन विकास केंद्र वन उपज के लिए एक बड़ा बाजार तैयार कर रहा है.
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2021 में मध्यप्रदेश के भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इसी दौरान देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन धन विकास केंद्र का जिक्र किया था और वन उपज को बढ़ावा देने की बात कही थी. इसी वन धन विकास केंद्र ने आदिवासियों के जीवन में बदलाव लाना शुरू कर दिया है.
एक दर्जन वन उपज का चयन: इस योजना के तहत झारखंड में करीब एक दर्जन वन उपज का चयन किया गया है. यह वन उपज पूरी तरह से प्राकृतिक है, और जंगलों में ही पाया जाता है. इस योजना के तहत झारखंड में पाए जाने वाला वन तुलसी, हरे बहेरा, महुआ, आंवला, बेल, बेर, इमली, केंदु पता, पलाश का फूल, लाह जैसे वन उपज को शामिल किया गया है. झारखंड लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की पहल पर आदिवासी परिवारों को मॉडल टूल्स उपलब्ध करवाए गए हैं ताकि वन उपज की गुणवत्ता को बेहतर किया जा सके.
पलामू में केंद्र से जुड़े हैं 300 से अधिक परिवार: झारखंड की राजधानी रांची से करीब 165 किलोमीटर दूर पलामू के छह इलाके में वन विकास केंद्र का संचालन किया जा रहा है. पलामू के मनातू, पांकी, रामगढ़, सतबरवा, छतरपुर और चैनपुर के इलाके में वन धन केंद्र बनाया गया है. इससे 300 से ज्यादा परिवार जुड़े हुए हैं. अकेले मनातू में 60 परिवार केंद्र से जुड़े हैं और वन उपज के लिए मॉडल टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं. योजना के तहत आदिवासी परिवारों की आमदनी में बढ़ोतरी करने का लक्ष्य रखा गया है.
आमदनी 300 रुपए करने का लक्ष्य: आमतौर पर वन उपज पर आधारित परिवार प्रतिदिन 60 से डेढ़ सौ रुपए की आमदनी करते थे. मॉडल टूल्स के माध्यम से इस आमदनी को प्रतिदिन 300 रुपए तक करने का लक्ष्य रखा गया है. मॉडल टूल्स के माध्यम से ग्रामीणों को वन उपज को सहेजने में आसानी होगी. टूल्स के माध्यम से वन उपज को वह काफी दिनों तक सुरक्षित रख पाएंगे और तोड़ने के दौरान वह बर्बाद भी नहीं होगा. वन धन विकास केंद्र अभी शुरुआती दौर में है. इसके लिए फिलहाल बाजार उपलब्ध करवाया जाएगा. वन उपज के लिए आउटलेट खोले जाने की योजना है. इस आउटलेट में वन उपज के साथ-साथ अन्य उत्पादों को भी रखा जाएगा.