पलामू: गर्मियों का मौसम शुरू होने के साथ ही प्यास लगने पर ठंडे पानी की तलाश होती है. एक दशक पहले तक लोग घड़ा या सुराही के पानी से प्यास बुझाते थे. वक्त बदला उसकी जगह फ्रिज ने ले ली है. इसके बावजूद अभी भी घड़े और सुराही का बड़ा बाजार है, लेकिन कोविड-19 काल ने देसी फ्रिज बनाने और इसका कारोबार करने वालों के सामने भुखमरी जैसे हालात पैदा कर दी है.
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लॉकडाउन 2.0 ने कुम्हारों को बर्बादी की कगार पर खड़ा कर दिया है. पलामू के बाजारों में घड़ा और सुराही भरी पड़ी है, लेकिन बाजारों में लोग नजर नहीं आ रहे. एक अनुमान के मुताबिक पलामू में गर्मियों के दौरान 70 से 80 लाख रुपये के घड़े का कारोबार होता था, लेकिन 2020 और 2021 में यह कारोबार 10 लाख के आस-पास सिमट गया है.
बाजार में नहीं पहुंच रहे खरीदार
लॉकडाउन 2.0 में कुम्हारों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. कोविड काल में लोग गर्म पानी का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं. यह भी एक नुकसान का बड़ा कारण है, जबकि कई लोगों ने घड़े की जगह जार का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. मेदिनीनगर में कान्दू मोहल्ला के संजय और मुरारी प्रजापति खुद घड़ा बनाते हैं और इसका कारोबार करते हैं. दोनों ने बताया कि काफी नुकसान हुआ है. बिक्री हो ही नहीं रही. पूरा परिवार इसी कारोबार पर निर्भर है. संजय ने बताया कि वो मजदूरी के लिए भी जाते हैं, लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा. पूरे परिवार के सामने रोजी रोजगार का संकट उत्पन्न हो गया है. हमीदगंज के झूलन प्रजापति ने बताया कि पेट पालना भी मुश्किल है. बाजार में खरीदार नहीं पहुंच रहे हैं. लोग भीड़ भाड़ वाले इलाके में खरीदारी करना पसंद नहीं कर रहे हैं.
माटी कला बोर्ड ने कहा आर्थिक मदद करे सरकार
झारखंड माटी कला बोर्ड के सदस्य अविनाश देव ने पूरे हालात पर ईटीवी भारत को बताया कि पिछली बार भी जैसे ही मिट्टी के बर्तन तैयार हुए थे लॉकडाउन लग गया था. इस बार भी यही हालात हैं. कुम्हार, शिल्पकार के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है. उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि इनके लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा करें, ताकि इनका जीवन यापन भी हो और उन्हें राहत मिले.