पलामू: कभी माओवादी संगठन में 28 साल तक काम करने वाले पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा कहते हैं कि माओवाद अब अपनी विचारधारा से भटक गया है. आधुनिक भारत में हथियारबंद संघर्ष की जगह नहीं है. माओवाद भारत की गलत व्याख्या कर रहा है और इसी के चलते संगठन अब कमजोर पड़ गया है. कामेश्वर बैठा ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.
'जिन्हें लोग जंगल कहते हैं, वह मेरी कर्मभूमि'
पूर्व सांसद कामेश्वर बैठा का कहना है जिन्हें लोग या मीडिया जंगल समझती है, वह उनकी कर्मभूमि रही है. वे गांव, जंगल के हक और अधिकार की लड़ाई लड़े, जिसके कारण वे सांसद बने थे. वे संघर्ष नहीं करते तो पलामू की जनता उन्हें सांसद के रूप में नहीं चुनती. देश में पहली बार हुआ था कि कोई माओवादी जेल में रहकर सांसद का चुनाव जीता था. कामेश्वर बैठा जिस आंदोलन से जुड़े हुए थे वह आंदोलन भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं करता है.
जेल में संसदीय व्यवस्था पर जगी आस्था
कामेश्वर बैठा बताते हैं कि जेल में अध्ययन के दौरान संसदीय व्यवस्था पर उनकी आस्था जगी. उनका कहना है कि जमीन, मजदूरी, भुखमरी समेत कई जन मुद्दों को लेकर वे माओवादी आंदोलन में शामिल हुए थे. वह बताते हैं कि 80 के दशक के बाद उन्होंने गांव-गांव जाकर आंदोलन को खड़ा किया था. उस दौरान कई संगठन बने थे और लीगल तरीके से आंदोलन की शुरुआत हुई थी. उस दौरान हुए उत्पीड़न को भुलाया नहीं जा सकता.
देश के हालात बदले, अब हथियारबंद संघर्ष की जगह नहीं
कामेश्वर बैठा 1980 के दशक के भारत और अब के दौर के भारत की तुलना करते हुए बताते हैं कि देश के हालात बदले हैं. माओवादी परिवर्तन की बात करते हैं लेकिन चार लोगों के बल पर परिवर्तन नहीं हो सकता. वह बताते हैं कि माओवादी लाल इलाका, मुक्तांचल, गुरिल्ला बेस, गुरिल्ला बेस जोन की बात करते है. लेकिन, ये संभव नहीं है. बदलाव के लिए हर क्षेत्र, हर तबके के सहयोग की जरूरत होती है. दुनिया में रूस और चीन की क्रांति माओवाद के लिए आदर्श माना जाती है. लेकिन, भारत के हालात अलग हैं. भारत आज आधुनिक हो चुका है. भारत टेक्नोलॉजी से परिपूर्ण हो गया है. यहां शस्त्रों की जरूरत नहीं है.
भारत की गलत व्याख्या कर रहे माओवादी
कामेश्वर बैठा माओवादियों के कमजोर होने के विषय पर खुलकर बोलते हैं. वे कहते हैं कि माओवादी वर्तमान में भारत की व्यवस्था की गलत व्याख्या कर रहे हैं. कमजोर व्याख्या के कारण माओवादी बेहद कमजोर हो गए हैं. वे बताते हैं कि देश की व्यवस्था में बदलाव हुआ है. अब सामंतवाद वह नहीं है जो पहले क्रूरतम रूप में था. वर्तमान हालात में सामंतवाद बदल गया है. अब वह उसी रूप में है जिस रूप में सभी रहे हैं. पहले से अधिक लूट है लेकिन स्वरूप अलग है.
कौन हैं कामेश्वर बैठा ?
28 वर्षों तक माओवादी आंदोलन के हथियारबंद संघर्ष से जुड़े रहे कामेश्वर बैठा 15वीं लोकसभा के सदस्य चुने गए थे. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कामेश्वर बैठा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर पलामू संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीता था. देश मे पहली बार कोई माओवादी सांसद चुना गया था. जिस वक्त कामेश्वर बैठा चुनाव जीते थे उस दौरान वह बिहार के सासाराम जेल में बंद थे. कामेश्वर बैठा पर उस दौरान 48 मामले दर्ज थे, जिसमें कई गंभीर धाराओं में थे. हालांकि अधिकतर मामलों में कामेश्वर बैठा को दोषी नहीं पाया गया है.
इससे पहले 2005 में कामेश्वर बैठा बिहार के सासाराम से गिरफ्तार हुए थे. 2013 में वे जेल से बाहर निकले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में कामेश्वर बैठा हार गए. कामेश्वर बैठा मूल रूप से पलामू के पांडु थाना क्षेत्र के ढांचाबार गांव के रहने वाले हैं. फिलहाल वे विश्रामपुर में अपने पूरे परिवार के साथ रह रहे हैं. वे तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए है.