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पोस्ता की खेती के साइड इफेक्ट, मुकदमों का दंश झेल रहे ग्रामीण, 400 से अधिक लोग जा चुके हैं जेल - पलामू खबर

पलामू में पोस्ता की खेती के साइड इफेक्ट दिख रहा है. अभी तक इस मामले में 400 से अधिक ग्रामीण जेल जा चुके हैं. इसे लेकर अलग-अलग थानों में 150 से अधिक एफआईआर दर्ज किए जा चुके हैं.

Side effects of poppy cultivation
Side effects of poppy cultivation
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Published : Jan 5, 2022, 7:53 PM IST

Updated : Jan 5, 2022, 8:24 PM IST

पलामू: झारखंड बिहार सीमावर्ती क्षेत्र में नक्सलवाद के बाद एक नई समस्या पांव पसार चुकी हैं पलामू, चतरा और गया सीमा पर पोस्ता की खेती अब बड़ी समस्या बन गई है. पोस्ता की खेती करने वालों को यह पता भी नहीं की वो कौन सा जहर तैयार कर रहे हैं. पिछले एक दशक के दौरान पोस्ता की खेती का दायरा लाखों से बढ़ कर 100 करोड़ से भी अधिक हो गया है.

पोस्ता से अफीम तैयार करने वाले तस्करों का नेटवर्क बिहार, यूपी, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों तक फैल चुका है. अब इस पोस्ता की खेती के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं. पोस्ता की खेती के आरोप में 400 से अधिक ग्रामीण जेल जा चुके हैं, जबकि पलामू के विभिन्न थानों में 150 से भी अधिक एफआईआर दर्ज किए गए हैं.

ये भी पढ़ें- अफीम माफिया की हर चालबाजी कैमरे में होगी कैद, खेतों की ड्रोन से निगरानी करेगी पुलिस

तस्कर ग्रामीणों को बहला फुसला कर करवा रहे खेती

पलामू के अतिनक्सल प्रभावित इलाके में अफीम के तस्करों ने अपनी पकड़ को मजबूत बना लिया है. वे ग्रामीणों को बहला फुसला कर पोस्ता की खेती करवा रहे हैं. पलामू के चतरा और बिहार के गया से सटे हुए सीमावर्ती इलाकों में 2013 के 2021 तक 2100 एकड़ से अधिक में लगे फसल को नष्ट किया गया है. 2021 की शुरुआत में पलामू पुलिस ने माना दो थाना क्षेत्र से एक साथ पोस्ता की खेती करने के आरोप में 35 लोगों को गिरफ्तार किया था.

देखें स्पेशल स्टोरी

ग्रामीण बताते हैं कि तस्कर लालच देते हैं और ग्रामीणों को बीज उपलब्ध करवाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि खेती के लिए तस्कर किसानों को 20 से 25 हजार रुपये देने की लालच देते हैं. फसल तैयार होने पर खराब बता कर आठ से 10 हजार रुपये ही उन्हें देते हैं. ग्रामीणों को पता तक नहीं की वे क्या कर रहे हैं. स्थानीय विधायक डॉ शशि भूषण मेहता बताते हैं कि कुछ लोग गरीबी और नादानी में, जबकि कुछ लोग बहकावे में आकर इस खेती को कर रहे हैं. जरूरत है इस मामले में सख्त कार्रवाई की.

ये भी पढ़ें- डंप अफीम को निकालने में लगे तस्कर, पुलिस भी नकेल कसने की तैयारी में जुटी

नक्सल इलाका होने का फायदा उठा रहे तस्कर

जिस इलाके में पोस्ता की खेती हो रही है वह इलाका अतिनक्सल प्रभावित इलाका है. नक्सल संगठन की इजाजत के बिना इलाके में कुछ भी नहीं हो सकता है. तस्कर ग्रामीणों से वन और गैरमजरुआ जमीन में अफीम की खेती करवा रहे हैं. जिस कारण कार्रवाई के दौरान सरकारी तंत्र को मुश्किलों को सामना करना पड़ रहा है. पलामू के मनातू, तरहसी, पिपराटांड़ और पांकी के क्षेत्रों में पोस्ता की खेती होती है. विधायक डॉ शशि भूषण मेहता बताते हैं कि हाल के दिनों में पोस्ता की खेती में कमी आई है. कुछ लोग को बहला फुसला कर खेती करवा रहे है.

इलाके में की जाएगी कार्रवाई

पोस्ता की खेती के खिलाफ कार्रवाई के लिए पलामू प्रमंडल में पुलिस ने तैयारी कर ली है. पलामू रेंज के डीआईजी राज कुमार लकड़ा बताते हैं कि पोस्ता की खेती खिलाफ कार्रवाई के लिए सभी एजेंसियों को शामिल होना होगा. पुलिस कार्रवाई कर रही है, लेकिन जनप्रतिनिधियों को भी ग्रामीणों को जागरूक करना होगा. पुलिस खेती करने वाले का रिकॉर्ड और जिस इलाके में खेती होती है उसे चिन्हित कर कार्रवाई कर रही है.

पलामू: झारखंड बिहार सीमावर्ती क्षेत्र में नक्सलवाद के बाद एक नई समस्या पांव पसार चुकी हैं पलामू, चतरा और गया सीमा पर पोस्ता की खेती अब बड़ी समस्या बन गई है. पोस्ता की खेती करने वालों को यह पता भी नहीं की वो कौन सा जहर तैयार कर रहे हैं. पिछले एक दशक के दौरान पोस्ता की खेती का दायरा लाखों से बढ़ कर 100 करोड़ से भी अधिक हो गया है.

पोस्ता से अफीम तैयार करने वाले तस्करों का नेटवर्क बिहार, यूपी, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और दक्षिण भारत के कुछ राज्यों तक फैल चुका है. अब इस पोस्ता की खेती के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं. पोस्ता की खेती के आरोप में 400 से अधिक ग्रामीण जेल जा चुके हैं, जबकि पलामू के विभिन्न थानों में 150 से भी अधिक एफआईआर दर्ज किए गए हैं.

ये भी पढ़ें- अफीम माफिया की हर चालबाजी कैमरे में होगी कैद, खेतों की ड्रोन से निगरानी करेगी पुलिस

तस्कर ग्रामीणों को बहला फुसला कर करवा रहे खेती

पलामू के अतिनक्सल प्रभावित इलाके में अफीम के तस्करों ने अपनी पकड़ को मजबूत बना लिया है. वे ग्रामीणों को बहला फुसला कर पोस्ता की खेती करवा रहे हैं. पलामू के चतरा और बिहार के गया से सटे हुए सीमावर्ती इलाकों में 2013 के 2021 तक 2100 एकड़ से अधिक में लगे फसल को नष्ट किया गया है. 2021 की शुरुआत में पलामू पुलिस ने माना दो थाना क्षेत्र से एक साथ पोस्ता की खेती करने के आरोप में 35 लोगों को गिरफ्तार किया था.

देखें स्पेशल स्टोरी

ग्रामीण बताते हैं कि तस्कर लालच देते हैं और ग्रामीणों को बीज उपलब्ध करवाते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि खेती के लिए तस्कर किसानों को 20 से 25 हजार रुपये देने की लालच देते हैं. फसल तैयार होने पर खराब बता कर आठ से 10 हजार रुपये ही उन्हें देते हैं. ग्रामीणों को पता तक नहीं की वे क्या कर रहे हैं. स्थानीय विधायक डॉ शशि भूषण मेहता बताते हैं कि कुछ लोग गरीबी और नादानी में, जबकि कुछ लोग बहकावे में आकर इस खेती को कर रहे हैं. जरूरत है इस मामले में सख्त कार्रवाई की.

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नक्सल इलाका होने का फायदा उठा रहे तस्कर

जिस इलाके में पोस्ता की खेती हो रही है वह इलाका अतिनक्सल प्रभावित इलाका है. नक्सल संगठन की इजाजत के बिना इलाके में कुछ भी नहीं हो सकता है. तस्कर ग्रामीणों से वन और गैरमजरुआ जमीन में अफीम की खेती करवा रहे हैं. जिस कारण कार्रवाई के दौरान सरकारी तंत्र को मुश्किलों को सामना करना पड़ रहा है. पलामू के मनातू, तरहसी, पिपराटांड़ और पांकी के क्षेत्रों में पोस्ता की खेती होती है. विधायक डॉ शशि भूषण मेहता बताते हैं कि हाल के दिनों में पोस्ता की खेती में कमी आई है. कुछ लोग को बहला फुसला कर खेती करवा रहे है.

इलाके में की जाएगी कार्रवाई

पोस्ता की खेती के खिलाफ कार्रवाई के लिए पलामू प्रमंडल में पुलिस ने तैयारी कर ली है. पलामू रेंज के डीआईजी राज कुमार लकड़ा बताते हैं कि पोस्ता की खेती खिलाफ कार्रवाई के लिए सभी एजेंसियों को शामिल होना होगा. पुलिस कार्रवाई कर रही है, लेकिन जनप्रतिनिधियों को भी ग्रामीणों को जागरूक करना होगा. पुलिस खेती करने वाले का रिकॉर्ड और जिस इलाके में खेती होती है उसे चिन्हित कर कार्रवाई कर रही है.

Last Updated : Jan 5, 2022, 8:24 PM IST
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