पलामू: पीढ़ियों से मोम और मधु का उत्पादन पारंपरिक तरीके से करने वाले आदिम जानजातियों के लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगेगा ताकि उनके उत्पाद की बेहतर बाजार मिल सके. 30 मार्च को हमने एक खबर प्रकाशित की थी जिसमें यह बताने की कोशिश की थी आदिम जनजाति द्वारा बनाए जा रहे मधु और मोम को बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता. इसी वजह से ये लोग मुख्य धारा से काफी अलग हैं. लोगों ने यह मांग की थी कि सरकार उनके उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस कदम उठाए. आदिम जनजातियों के उत्पाद को लेकर उपायुक्त शशि रंजन ने अधिकारियों के साथ बैठक की. बैठक में विशेष केंद्रीय मद से आदिम जनजातियों के उत्पाद को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया और अब उनके लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाएगा. डीसी शशि रंजन ने बताया कि आदिम जनजातियों के उत्पाद को बढ़ावा दिया जाएगा. उनके लिए प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाएगा ताकि उनके उत्पाद बाजार मिल सके.
यह भी पढ़ें: आदिम जनजाति परिवार पीढ़ियों से कर रहा मधु और मोम का उत्पादन, पलाश ब्रांड उत्पादों को देगा नई पहचान
10 किलोमीटर का सफर तय करने में लगता है एक घंटा
मनातू के घीरसीरी पंचायत के सरगुजा और समरलेटा में आदिम जनजाति के एक दर्जन से अधिक परिवार पीढ़ियों से मधुमक्खी के छत्ते से मोम बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. दोनों गांव पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 80 और प्रखंड मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर है. दोनों गांव में पंहुचने के लिए सिर्फ एक कच्चा रास्ता है. 10 किलोमीटर का सफर तय करने में एक घंटे से अधिक का वक्त लगता है.
होली और दीवाली से पहले तैयार करते हैं मोम
आदिम जनजाति के लोग होली और दीवाली से पहले मोम को तैयार करते हैं. इससे पहले घने जंगल और पहाड़ों में मधुमक्खी के छत्ते की तलाश शुरू होती है. इस दौरान आदिम जनजाति के लोग आग के जरिए और पेड़ के पत्ते से मधुमक्खी को भगाते हैं. बाजार में 200 रुपए किलो के हिसाब से मोम को बेचा जाता है जबकि मधु को 500 से 600 रुपये किलो बेचा जाता है. एक सीजन में पूरा परिवार 10 हजार रुपये कमाता है. मधुमक्खी के छत्ते को गर्म पानी मे उबाला जाता है उसके बाद उसे धूप में सुखाया जाता है. उसके बाद उसे ठंडे पानी से छाना जाता है और फिर ठंडे पानी से छानने के बाद मोम तैयार होता है.