पलामू: डॉक्टर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करवाने के लिए पूरी ताकत लगा चुके हैं. एक तरफ डॉक्टर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट को लागू करवाना चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकारी अस्पताल के डॉक्टर मरीजों के पर्ची पर बाहर की दवा को लिख रहे हैं. कई बार तो मेडिकल रिप्रेजेन्टेटिव (एमआर) ड्यूटी के दौरान डॉक्टर के बगल में बैठे हुए रहते हैं और अपनी कंपनियों की दवा लिखवाते हैं. पलामू प्रमंडल का सबसे बड़ा रेफरल अस्पताल मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल इन दिनों दलालों और कई गतिविधियों को लेकर चर्चा में है.
एमएमसीएच के सुपरिटेंडेंट ने डॉक्टरों और कर्मियों को दी सख्त हिदायतः इधर, एनएमसीएच प्रबंधन को भी इस बात की जानकारी मिली है कि ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर बाहर की दवा लिखते हैं, जबकि अन्य स्वास्थ्य कर्मी मरीजों की जांच के लिए बाहर से टेक्नीशियन को बुलाते हैं. पूरे मामले में एमएमसीएच प्रबंधन ने अब सख्त रवैया अपनाना शुरू कर दिया है. एमएमसीएच के सुपरिटेंडेंट डॉ डीके सिंह ने बताया कि बाहर की दवा लिखने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए स्वास्थ्य सचिव को पत्र लिखा जाएगा. वहीं बाहर से जांच के लिए मशीन ऑपरेटर को बुलाने वाले स्वास्थ्य कर्मियों के खिलाफ भी बर्खास्तगी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. उन्होंने कहा कि मामले में चेतावनी जारी की गई है गड़बड़ी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. अस्पताल में अगर दवा नहीं है तो डॉक्टर मरीज को बाहर की दवा लिख कर दें.
एमएमसीएच में डॉक्टरों पर सीसीटीवी कैमरे से रखी जा रही निगरानीः मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में सीसीटीवी के माध्यम से डॉक्टर पर निगरानी रखी जा रही है. कई नागरिक और संस्थाओं ने वरीय अधिकारियों से शिकायत की गई थी कि डॉक्टरों के साथ दवा कंपनी के प्रतिनिधि बैठते हैं और उनके कहने पर ही दवा लिखी जाती है. मामले की जानकारी मिलने के बाद एमएमसीएच प्रबंधन ने सभी वार्डों में सीसीटीवी कैमरा लगवा दिया है. सीसीटीवी के माध्यम से डॉक्टरों की गतिविधि पर निगरानी रखी जा रही.
एमएमसीएच में प्रतिदिन इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं 400 से अधिक मरीजः बताते चलें कि एमएमसीएच में प्रतिदिन 400 से अधिक मरीज ओपीडी में इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं. इनमें ज्यादातर मरीज गरीब परिवार के होते हैं. बाहर की दवा लिख देने पर इन मरीजों को परेशानी होती है. क्योंकि बाहर मिलनेवाली दवा की कीमत काफी अधिक होती है. ऐसे में अतिरिक्त आर्थिक बोझ के कारण मरीजों के लिए मर्ज का इलाज कराना मुश्किल हो जाता है.