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झारखंड में अंतिम सांसें गिन रहे नक्सली संगठन, जानिए सुरक्षाबलों ने कैसे रचा चक्रव्यूह

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Published : Apr 28, 2023, 6:21 PM IST

एक समय था कि झारखंड में नक्सलियों का खौफ देखा जाता था, लेकिन सुरक्षाबलों ने अब नक्सलियों इतनी गहरी चोट दी है कि वे अंतिम सांसें गिन रहे हैं. इनके कई टॉप कमांडर्स पकड़े गए हैं इसके अलावा कई ने सरेंडर कर दिया है. कुछ नक्सलियों की एनकाउंटर में मौत भी हो चुकी है.

Naxalism is on verge of ending in Jharkhand
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पलामू: नक्सल संगठनों खिलाफ दो दशक से भी अधिक समय से अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन हाल के पांच वर्षों में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली है. सुरक्षाबलों के अभियान के कारण नक्सलियों की स्थिति बेहद कमजोर हो गई है. झारखंड-बिहार में ये खात्मे के कगार पर पहुंच गए हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों ने मिलकर नक्सलियों के खिलाफ चक्रव्यूह बनाया है कि माओवादियों के टॉप कमांडर उसमे फंसते गए.

ये भी पढ़ें: देश में बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में थे नक्सली, बिहार-झारखंड की सीमा पर सुरक्षाबलों ने सभी को एनकाउंटर में किया ढेर

सुरक्षाबलों ने सबसे पहले माओवादियों के उन ठिकानों को चिन्हित किया था, जहां माओवादियों का दस्ता रुकता और गतिविधि का संचालन करता था. झारखंड के बूढ़ापहाड़, झुमरा, पारसनाथ, सारंडा और बिहार के छकरबंधा का इलाका इनका सबसे बड़ा पनाहगार था. सुरक्षाबलों ने पिछले कुछ वर्षों में इन इलाकों की घेराबंदी शुरू की. इसके बाद माओवादियों के सभी ठिकानों और कॉरिडोर पर पुलिस कैंप की स्थापना की गई. अकेले छकरबंधा, बूढ़ापहाड़ कॉरिडोर में 53 से अधिक कैंपों की स्थापना की गई, सीआरपीएफ की छह जबकि अन्य बलों की चार बटालियन की तैनाती की गई. इन कैंपों के माध्यम से सुरक्षाबलों ने सबसे पहले नक्सलियों के सप्लाई लाइन को काट दिया.

सुरक्षाबलों की घेराबंदी के बाद माओवादियों के टॉप कमांडर अपने ठिकानों से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. माओवादियों के टॉप कमांडरों को गिरफ्तारी का डर सता रहा था. जिसका नतीजा है कि वह बीमार होने के बावजूद जंगल में ही इलाज करवा रहे थे. 2018 में माओवादियों को सबसे बड़ा झटका देवकुमार सिंह उर्फ अरविंद की मौत के बाद लगा. अरविंद माओवादियों के पीएलजीए का सुप्रीमो था, उस पर एक करोड़ रुपये का इनाम था. उसकी मौत के बाद माओवादी बूढ़ापहाड़ पर धीरे-धीरे करके बिखरते चले गए.

2022 में छकरबंधा में टॉप माओवादी कमांडर संदीप यादव की मौत हो गई. इलाज के क्रम में दवा का रिएक्शन हुआ था, जिसमें उसकी मौत हो गई. संदीप यादव के मौत के बाद माओवादी छकरबंधा में बिखर गए. पिछले एक दशक में रहिमन समेत आधा दर्जन से अधिक टॉप माओवादियों की जंगल में बीमारी के कारण मौत हुई है. माओवादियों का टॉप कमांडर प्रशांत बोस भी बीमारी से इलाज के लिए निकला था और सुरक्षाबलों ने उसे दबोच लिया.

पलामू: नक्सल संगठनों खिलाफ दो दशक से भी अधिक समय से अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन हाल के पांच वर्षों में सुरक्षाबलों को बड़ी सफलता मिली है. सुरक्षाबलों के अभियान के कारण नक्सलियों की स्थिति बेहद कमजोर हो गई है. झारखंड-बिहार में ये खात्मे के कगार पर पहुंच गए हैं. पुलिस और सुरक्षाबलों ने मिलकर नक्सलियों के खिलाफ चक्रव्यूह बनाया है कि माओवादियों के टॉप कमांडर उसमे फंसते गए.

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सुरक्षाबलों ने सबसे पहले माओवादियों के उन ठिकानों को चिन्हित किया था, जहां माओवादियों का दस्ता रुकता और गतिविधि का संचालन करता था. झारखंड के बूढ़ापहाड़, झुमरा, पारसनाथ, सारंडा और बिहार के छकरबंधा का इलाका इनका सबसे बड़ा पनाहगार था. सुरक्षाबलों ने पिछले कुछ वर्षों में इन इलाकों की घेराबंदी शुरू की. इसके बाद माओवादियों के सभी ठिकानों और कॉरिडोर पर पुलिस कैंप की स्थापना की गई. अकेले छकरबंधा, बूढ़ापहाड़ कॉरिडोर में 53 से अधिक कैंपों की स्थापना की गई, सीआरपीएफ की छह जबकि अन्य बलों की चार बटालियन की तैनाती की गई. इन कैंपों के माध्यम से सुरक्षाबलों ने सबसे पहले नक्सलियों के सप्लाई लाइन को काट दिया.

सुरक्षाबलों की घेराबंदी के बाद माओवादियों के टॉप कमांडर अपने ठिकानों से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. माओवादियों के टॉप कमांडरों को गिरफ्तारी का डर सता रहा था. जिसका नतीजा है कि वह बीमार होने के बावजूद जंगल में ही इलाज करवा रहे थे. 2018 में माओवादियों को सबसे बड़ा झटका देवकुमार सिंह उर्फ अरविंद की मौत के बाद लगा. अरविंद माओवादियों के पीएलजीए का सुप्रीमो था, उस पर एक करोड़ रुपये का इनाम था. उसकी मौत के बाद माओवादी बूढ़ापहाड़ पर धीरे-धीरे करके बिखरते चले गए.

2022 में छकरबंधा में टॉप माओवादी कमांडर संदीप यादव की मौत हो गई. इलाज के क्रम में दवा का रिएक्शन हुआ था, जिसमें उसकी मौत हो गई. संदीप यादव के मौत के बाद माओवादी छकरबंधा में बिखर गए. पिछले एक दशक में रहिमन समेत आधा दर्जन से अधिक टॉप माओवादियों की जंगल में बीमारी के कारण मौत हुई है. माओवादियों का टॉप कमांडर प्रशांत बोस भी बीमारी से इलाज के लिए निकला था और सुरक्षाबलों ने उसे दबोच लिया.

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