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पलामू के हैदरनगर में अलग ढंग से क्यों मनाया जाता है मुहर्रम, मौलाना से जानिए वजह

पलामू के हैदरनगर में अलग अंदाज में मुहर्रम मनाया जाता है. शिया समुदाय के लोग मुहर्रम में मातम मनाकर (mourning festival muharram) कर्बला की शहादत को याद करते हैं. ईटीवी की इस रिपोर्ट से जानिए, हैदरनगर में मुहर्रम अलग ढंग (Muharram celebrated different way) से क्यों मनाया जाता है.

Muharram celebrated different way at Haidarnagar in Palamu
पलामू
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Published : Aug 7, 2022, 11:33 AM IST

पलामूः मुहर्रम का चांद दिखने के बाद से हैदरनगर क्षेत्र में मुहर्रम की शुरुआत हो गई है. हैदरनगर में (Muharram in Haidarnagar) शिया समुदाय के लोग भी निवास करते हैं. इसी लिए हैदरनगर में मुहर्रम राज्य के अन्य इलाकों से अलग (Muharram celebrated different way) होता है.

इसे भी पढ़ें- खूंटी में मुहर्रम को लेकर विशेष सुरक्षा व्यवस्था, सभी थानों को दी जा रही स्पेशल ट्रेनिंग

चांद रात से ही एक ओर शिया समुदाय के मर्द एवं औरतें मजलिसों व कर्बला के बयानात करने में मशगूल हैं. वहीं सुन्नी मुसलमान चैक को जगाने व परंपरागत खेलों के अलावा मातम व मरसिया में जुटे हैं. शिया समुदाय की औरतें चांद रात से ही अपने श्रंगार का त्याग कर देती हैं. वहीं मर्द व औरतें पान खाने से लेकर वह सारे कार्य नहीं करते जो खुशी का प्रतीक हो. उनके घर दस दिनों तक मुकम्मल मातम सा माहौल रहता है.

देखें पूरी खबर

शिया वक्फ बोर्ड के मोतवल्ली सैयद शमीम हैदर रिजवी के अनुसार कर्बला की जंग में फौज ए हुसैनी को जो तकलीफें दी गई थी, उससे सभी वाकिफ हैं. बावजूद इसके उन्होंने हक का दामन नहीं छोडा. उन्होंने कहा कि मुहर्रम कर्बला के शहीदों की याद में मनाया जाता है. यही वजह है कि इस मौके पर शिया समुदाय के घरों में दस दिन मातम सा माहौल (mourning festival muharram) रहता है. उन्होंने कहा कि समुदाय की औरतें दो माह आठ दिन तक विधवा की तरह जीवन बिताती हैं. समुदाय द्वारा इस बीच शादी ब्याह व खुशी का कोई कार्य नहीं किया जाता है.

उन्होंने बताया कि इस मौके पर खास मजलिस के लिए राष्ट्रीय स्तर के ओलेमा को बुलाया गया है. शिया समुदाय के बच्चे, बुजुर्ग व युवा मुहर्रम की आठवीं व दसवीं को जुलूस के दौरान अपना शरीर जंजीरों और ब्लेड से काटते हैं जबकि मुहर्रम की छट्ठी को कूजा मातम करते हैं. इसमें वह अपने शरीर को घायल कर लहू बहाते हैं. इस हृदय विदारक दृश्य को देखने पलामू प्रमंडल के कोने कोने के अलावा बिहार के सीमावर्ती इलाके से बड़ी संख्या में लोग आते हैं.

मुहर्रम के मौके पर सुन्नी समुदाय के द्वारा मस्जिदों में जलसा ए हुसैनी का आयोजन किया गया है. जलसे की शुरुआत चांद रात से ही कर दी गई है. इसमें इलाके के मशहुर व मारुफ ओलेमा ए कराम के अलावा नातखां को आमंत्रित किया गया है. जलसा प्रत्येक दिन संध्या सात बजे से शुरू होता है जो देर रात तक चलता है.

मुहर्रम को लेकर शिया समुदाय का कार्यक्रमः 13 दिनों तक लगातार दिन रात मजलिसों व मरसिया का दौर चलता रहेगा. पांचवीं को अली अकबर अ0 का ताबूत निकाला गया, छठी को कूजे का मातम संपन्न हुआ. 7 वीं को मेहंदी की रस्म होगी, 8वीं को जंजीरी मातम, 9वीं को विभिन्न इमामबारगाहों में मजलिस और 10वीं को ब्लेड मातम के साथ पहलाम की रस्म अदा की जाएगी.



सुन्नी समुदाय का कार्यक्रमः 5वीं को अलम के साथ जुलूस में परंपरागत हथियारों का खेल कूद व नौहाखानी की गयी. 7वीं को अलम के साथ जुलूस में नौहाखानी व खेल कूद, 9वीं को छोटकी चैकी की मिलनी होगी. वहीं 10वीं को बडकी चैकी की मिलनी व भाई बिगहा इमामबाडा में मजलिस का आयोजन के बाद पहलाम के लिए अखाडा कर्बला ले जाएंगे. इसके साथ ही पूर्वजों को फातेहा भी दिया जाएगा.

पलामूः मुहर्रम का चांद दिखने के बाद से हैदरनगर क्षेत्र में मुहर्रम की शुरुआत हो गई है. हैदरनगर में (Muharram in Haidarnagar) शिया समुदाय के लोग भी निवास करते हैं. इसी लिए हैदरनगर में मुहर्रम राज्य के अन्य इलाकों से अलग (Muharram celebrated different way) होता है.

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चांद रात से ही एक ओर शिया समुदाय के मर्द एवं औरतें मजलिसों व कर्बला के बयानात करने में मशगूल हैं. वहीं सुन्नी मुसलमान चैक को जगाने व परंपरागत खेलों के अलावा मातम व मरसिया में जुटे हैं. शिया समुदाय की औरतें चांद रात से ही अपने श्रंगार का त्याग कर देती हैं. वहीं मर्द व औरतें पान खाने से लेकर वह सारे कार्य नहीं करते जो खुशी का प्रतीक हो. उनके घर दस दिनों तक मुकम्मल मातम सा माहौल रहता है.

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शिया वक्फ बोर्ड के मोतवल्ली सैयद शमीम हैदर रिजवी के अनुसार कर्बला की जंग में फौज ए हुसैनी को जो तकलीफें दी गई थी, उससे सभी वाकिफ हैं. बावजूद इसके उन्होंने हक का दामन नहीं छोडा. उन्होंने कहा कि मुहर्रम कर्बला के शहीदों की याद में मनाया जाता है. यही वजह है कि इस मौके पर शिया समुदाय के घरों में दस दिन मातम सा माहौल (mourning festival muharram) रहता है. उन्होंने कहा कि समुदाय की औरतें दो माह आठ दिन तक विधवा की तरह जीवन बिताती हैं. समुदाय द्वारा इस बीच शादी ब्याह व खुशी का कोई कार्य नहीं किया जाता है.

उन्होंने बताया कि इस मौके पर खास मजलिस के लिए राष्ट्रीय स्तर के ओलेमा को बुलाया गया है. शिया समुदाय के बच्चे, बुजुर्ग व युवा मुहर्रम की आठवीं व दसवीं को जुलूस के दौरान अपना शरीर जंजीरों और ब्लेड से काटते हैं जबकि मुहर्रम की छट्ठी को कूजा मातम करते हैं. इसमें वह अपने शरीर को घायल कर लहू बहाते हैं. इस हृदय विदारक दृश्य को देखने पलामू प्रमंडल के कोने कोने के अलावा बिहार के सीमावर्ती इलाके से बड़ी संख्या में लोग आते हैं.

मुहर्रम के मौके पर सुन्नी समुदाय के द्वारा मस्जिदों में जलसा ए हुसैनी का आयोजन किया गया है. जलसे की शुरुआत चांद रात से ही कर दी गई है. इसमें इलाके के मशहुर व मारुफ ओलेमा ए कराम के अलावा नातखां को आमंत्रित किया गया है. जलसा प्रत्येक दिन संध्या सात बजे से शुरू होता है जो देर रात तक चलता है.

मुहर्रम को लेकर शिया समुदाय का कार्यक्रमः 13 दिनों तक लगातार दिन रात मजलिसों व मरसिया का दौर चलता रहेगा. पांचवीं को अली अकबर अ0 का ताबूत निकाला गया, छठी को कूजे का मातम संपन्न हुआ. 7 वीं को मेहंदी की रस्म होगी, 8वीं को जंजीरी मातम, 9वीं को विभिन्न इमामबारगाहों में मजलिस और 10वीं को ब्लेड मातम के साथ पहलाम की रस्म अदा की जाएगी.



सुन्नी समुदाय का कार्यक्रमः 5वीं को अलम के साथ जुलूस में परंपरागत हथियारों का खेल कूद व नौहाखानी की गयी. 7वीं को अलम के साथ जुलूस में नौहाखानी व खेल कूद, 9वीं को छोटकी चैकी की मिलनी होगी. वहीं 10वीं को बडकी चैकी की मिलनी व भाई बिगहा इमामबाडा में मजलिस का आयोजन के बाद पहलाम के लिए अखाडा कर्बला ले जाएंगे. इसके साथ ही पूर्वजों को फातेहा भी दिया जाएगा.

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