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दो दशक में माओवादियों के गुरिल्ला आर्मी की संख्या सिमटी, दो दिसंबर 2000 को हुआ था गठन - पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)

पिछले दो दशक में माओवादियों के गुरिल्ला आर्मी के कैडरों की संख्या हजारों से दर्जनों में सिमट गई है. यह संख्या माओवादियों के बिहार, झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमिटी में घटी है. माओवादियों ने 2 दिसंबर 2002 को पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का गठन किया था.

maoists' number of gorilla army is decreasing in palamu
नक्सली फाइल
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Published : Dec 2, 2020, 1:56 PM IST

Updated : Dec 2, 2020, 2:12 PM IST

पलामूः दो दशक में माओवादियों के गुरिल्ला आर्मी की संख्या अब हजारों से सिमटकर दर्जनों में सिमट गई है. 2 दिसंबर 2000 को इसका गठन हुआ था. यह पीपुल्स वार ग्रुप ने बनाया था. इसी दौरान माओवादियों के तीन सेंट्रल कमिटी सदस्य श्याम, मुरली और महेश मारे गए थे. 2004 में पीपुल्स वार ग्रुप और माओइस्ट कम्युनिटी सेन्टर ऑफ इंडिया (MCCI) का विलय हो गया. दोनों के विलय से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) बनी. उसके पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का नामकरण पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी हो गई. 2004 में पलामू के बिश्रामपुर के इलाके में ही पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी का पहली बैठक हुई थी. पूर्व माओवादी टॉप नेता सह आजसू के केंद्रीय सदस्य सतीश कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि तीनों टॉप कमांडर के बरसी पर PLGA का गठन हुआ, बाद में इसका धीरे-धीरे ढांचागत विस्तार हुआ था. वो बताते है कि वर्षों पहले वो मुख्यधारा में आ गए है, अब इसमें क्या फेरबदल हुआ है कहना बेहद ही मुश्किल है.

खास बातचीतः पूर्व माओवादी नेता से
गुरिल्ला आर्मी की संख्या हजारों से दर्जनों में सिमटीमाओवादियों के बिहार, झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमिटी जिसमें पूरा बिहार और झारखंड है, उसमें 2008-09 तक कैडरों की संख्या 2500 से 3000 के बीच थी. इससे अधिक संख्या माओवादियों के सिर्फ दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी के पास थी. दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी में कैडरों की संख्या 4500 से 5000 के करीब थी. सुरक्षा एजेंसियों की माने तो झारखंड, बिहार, उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमिटी में 300 से भी कम PLGA कैडर बच गए हैं. 2004 से 2015 तक PLGA के कार्रवाई में झारखंड बिहार में 2300 से अधिक लोगों की जान गई. लेकिन 2015 के बाद पुलिस और सुरक्षबलों के अभियान में बड़ी संख्या में PLGA कैडर मारे और गिरफ्तार हुए. वहीं 2015 के बाद PLGA में हिंसक कार्रवाई में करीब 30 लोगों की जान गई है. PLGA से टूट कर TSPC, JJMP, PLFI जैसे नक्सल संगठन बने.

इसे भी पढ़ें- पलामू के ईंट भट्टों में बड़े पैमाने पर चल रहा बाल श्रम, केंद्रीय सलाहकार ने दिया कार्रवाई का निर्देश


PLGA धीरे-धीरे खोता गया जनाधार, नहीं मिल रहे कैडर
माओवादियों की हिंसक गतिविधि को PLGA ही अंजाम देता है. PLGA के पास रॉकेट लांचर से लेकर कई आधुनिक हथियार हैं. पूर्व माओवादी सह आजसू नेता सतीश कुमार ने बताया कि सिर्फ हथियार के बल पर सत्ता परिवर्तन नहीं हो सकता. वो बताते हैं माओवादी कई संगठनों को मिला कर बना था. सभी एक तो हो गए लेकिन एक विचारधारा नहीं बन पाई. सभी एक हो कर भी अलग अलग विचारधारा से काम करते रहे. नतीजा है कि उनका जनाधार घटता गया और वो कमजोर होते चले गए.

झारखंड बिहार में PLGA कई बड़े हमलों को अंजाम दे चुका है
माओवादियों के पीपुल्स लिबरेशन अब गोरिल्ला आर्मी झारखंड बिहार में कई बड़े नक्सल हमलों को अंजाम दे चुका है. झारखंड बिहार में PLGA का टॉप कमांडर एक करोड़ का इनामी माओवादी किशन दा है.

पलामूः दो दशक में माओवादियों के गुरिल्ला आर्मी की संख्या अब हजारों से सिमटकर दर्जनों में सिमट गई है. 2 दिसंबर 2000 को इसका गठन हुआ था. यह पीपुल्स वार ग्रुप ने बनाया था. इसी दौरान माओवादियों के तीन सेंट्रल कमिटी सदस्य श्याम, मुरली और महेश मारे गए थे. 2004 में पीपुल्स वार ग्रुप और माओइस्ट कम्युनिटी सेन्टर ऑफ इंडिया (MCCI) का विलय हो गया. दोनों के विलय से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओइस्ट) बनी. उसके पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का नामकरण पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी हो गई. 2004 में पलामू के बिश्रामपुर के इलाके में ही पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी का पहली बैठक हुई थी. पूर्व माओवादी टॉप नेता सह आजसू के केंद्रीय सदस्य सतीश कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि तीनों टॉप कमांडर के बरसी पर PLGA का गठन हुआ, बाद में इसका धीरे-धीरे ढांचागत विस्तार हुआ था. वो बताते है कि वर्षों पहले वो मुख्यधारा में आ गए है, अब इसमें क्या फेरबदल हुआ है कहना बेहद ही मुश्किल है.

खास बातचीतः पूर्व माओवादी नेता से
गुरिल्ला आर्मी की संख्या हजारों से दर्जनों में सिमटीमाओवादियों के बिहार, झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमिटी जिसमें पूरा बिहार और झारखंड है, उसमें 2008-09 तक कैडरों की संख्या 2500 से 3000 के बीच थी. इससे अधिक संख्या माओवादियों के सिर्फ दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी के पास थी. दंडकारण्य स्पेशल जोन कमिटी में कैडरों की संख्या 4500 से 5000 के करीब थी. सुरक्षा एजेंसियों की माने तो झारखंड, बिहार, उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमिटी में 300 से भी कम PLGA कैडर बच गए हैं. 2004 से 2015 तक PLGA के कार्रवाई में झारखंड बिहार में 2300 से अधिक लोगों की जान गई. लेकिन 2015 के बाद पुलिस और सुरक्षबलों के अभियान में बड़ी संख्या में PLGA कैडर मारे और गिरफ्तार हुए. वहीं 2015 के बाद PLGA में हिंसक कार्रवाई में करीब 30 लोगों की जान गई है. PLGA से टूट कर TSPC, JJMP, PLFI जैसे नक्सल संगठन बने.

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PLGA धीरे-धीरे खोता गया जनाधार, नहीं मिल रहे कैडर
माओवादियों की हिंसक गतिविधि को PLGA ही अंजाम देता है. PLGA के पास रॉकेट लांचर से लेकर कई आधुनिक हथियार हैं. पूर्व माओवादी सह आजसू नेता सतीश कुमार ने बताया कि सिर्फ हथियार के बल पर सत्ता परिवर्तन नहीं हो सकता. वो बताते हैं माओवादी कई संगठनों को मिला कर बना था. सभी एक तो हो गए लेकिन एक विचारधारा नहीं बन पाई. सभी एक हो कर भी अलग अलग विचारधारा से काम करते रहे. नतीजा है कि उनका जनाधार घटता गया और वो कमजोर होते चले गए.

झारखंड बिहार में PLGA कई बड़े हमलों को अंजाम दे चुका है
माओवादियों के पीपुल्स लिबरेशन अब गोरिल्ला आर्मी झारखंड बिहार में कई बड़े नक्सल हमलों को अंजाम दे चुका है. झारखंड बिहार में PLGA का टॉप कमांडर एक करोड़ का इनामी माओवादी किशन दा है.

Last Updated : Dec 2, 2020, 2:12 PM IST
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