पलामूः कैडर समस्या से जूझ रहे माओवादियों ने एक बार फिर से जमीन विवाद की तरफ रुख किया है. जमीन विवाद की आड़ में वो खुद को मजबूत करना चाहते हैं. माओवादी कैडरों की संख्या में बढ़ोतरी करने की योजना तैयार की है. इस बात का खुलासा पलामू पुलिस को मिले नक्सली दस्तावेजों से हुआ है.
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पलामू पुलिस को कुछ ऐसे दस्तावेज मिले हैं, जिसमें इस बात का जिक्र है कि माओवादियों के टॉप कमांडर्स ने अपने कैडर और समर्थकों को ग्रामीण इलाकों में जमीन विवाद में हस्तक्षेप कर अपनी पकड़ को मजबूत करने को कहा गया (Maoists cadre expansion plan in Palamu) है. पलामू पुलिस ने करीब एक सप्ताह पहले टॉप माओवादी कमांडर राम प्रसाद यादव को गिरफ्तार किया था. राम प्रसाद यादव की गिरफ्तारी के बाद उसके निशानदेही पर कई इलाकों में छापेमारी की थी. इस छापेमारी में माओवादियों का दस्तावेज बरामद हुआ था. इसी दस्तावेज में जमीन विवाद के माध्यम से फिर से जनसमर्थन को वापस पाना और कैडर को बढ़ाने की योजना का जिक्र है. पलामू के एसपी चंदन कुमार सिन्हा ने बताया कि जमीन विवाद में माओवादियों का हस्तक्षेप होगा तो वो खुद को मजबूत करने की फिराक में है. इसको लेकर पुलिस पूरे मामले को लेकर अलर्ट पर है और माओवादियों के मंसूबों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है. पुलिस को जो दस्तावेज मिले हैं जिसमें कहा गया है कि पलामू में माओवादी जमीन का सर्वे करवा (Maoists conducting land survey in Palamu) रहे हैं.
जमीन का विवाद एक बड़ी समस्याः बिहार और झारखंड में जमीन का विवाद एक बड़ी समस्या रही है. जमीन विवाद के मामलों पिछले एक दशक में 20 गुणा तक बढ़ गए हैं. थाना तक पहुंचने वाले 70 प्रतिशत से अधिक मामले जमीन विवाद के होते हैं. पलामू के अतिनक्सल प्रभावित इलाकों में से एक मनातू में एक दशक पहले तक महीने में 5 से 10 जमीन विवाद के मामले पहुंचते थे. अब इस इलाके में प्रतिदिन 10 से 15 मामले जमीन विवाद के पहुंच रहे हैं. इसी तरह सरकारी जनता दरबार या अन्य थानों में जमीन विवाद के मामले पहुंच रहे हैं. पलामू रेंज डीआईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि उनके पास जो आवेदन आते हैं, उनमें अधिकतर जमीन विवाद के ही रहते हैं. बाद में पुलिस के पास अधिक अधिकार नहीं है वह आवेदनों को संबंधित अधिकारियों तक भेज देते हैं ताकि समस्याओं का निपटारा हो सके.
हजारों से दर्जन की संख्या में सिमट गए माओवादीः पिछले एक दशक में सुरक्षा बलों ने प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की कमर तोड़कर रख दी है. इनकी संख्या हजारों से दर्जनों में सिमट गई है. झारखंड बिहार में माओवादियों के सबसे मजबूत कमिटी झारखंड, बिहार, उत्तरी छत्तीसगढ़, स्पेशल एरिया कमिटी में एक दशक तक कैडरों की संख्या 4 हजार 500 तक थी लेकिन अब इनकी संख्या 200 से भी कम हो गई है. माओवादियों ने अपने कैडर को बढ़ाने के लिए एक बार फिर से जमीन विवाद की तरफ रुख किया है. पलामू पुलिस को एक पत्र मिला है यह पत्र छतरपुर के इलाके के रामचंद्र यादव ने टॉप माओवादी अभिजीत यादव को पत्र लिखा है. अभिजीत यादव माओवादियों उत्तरी सबजोनल कमिटी का सुप्रीमो है. पत्र में रामचंद्र यादव ने अमित यादव को मामले में पहल करने को कहा है.
जमीन विवाद और माओवादः 70 के दशक में जमीन विवाद की जड़ें इतनी गहरी रही कि इसमें नक्सलवाद का उदय हुआ और इसकी आग कई राज्यों तक फैल गई थीं. 1966-67 में बंगाल के इलाके में नक्सलबाड़ी आंदोलन शुरू हुआ था. नक्सलबाड़ी आंदोलन के कमजोर होने के बाद वहां से निकलकर भागे नेताओं ने जमीन के सवाल पर कई हथियारबंद संगठनों की गठन किया था. 1969 में हथियार बंद दक्षिण देश का गठन किया गया था. 1970 से 1975 के बीच दक्षिण भारत के इलाके में पीपुल्स वार ग्रुप जबकि उत्तरी भारत पार्टी यूनिटी, एमसीसी का गठन किया गया था. 1975 में दक्षिण देश (माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर) एमसीसी बना. नक्सल संगठनों ने अपनी पकड़ को मजबूत बनाते हुए ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर जमीन विवाद में हस्तक्षेप करना शुरू किया था. बड़े जमींदार औरतों से भूमि छीनकर भूमिहीनों के बीच बांट दिए गए थे. करीब एक दशक पहले तक ग्रामीण इलाकों में जमीन विवाद का निपटारा नक्सल संगठन ही करते थे. माओवादी समेत अन्य नक्सल संगठन जन अदालत से जमीन विवाद का निपटारा किया करते थे. एक बार फिर से उसी तर्ज पर ग्रामीणों के बीच अपनी पकड़ को दोबारा मजबूती देने के लिए जमीन विवाद में माओवादियों का हस्तक्षेप करने की योजना तैयार की गयी है.