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मोहर्रम के 8वीं को शिया समुदाय का जंजीरी मातम, बच्चे, बुजुर्ग और युवाओं ने खुद को किया लहूलुहान - हैदरनगर पलामू

पलामू जिले के हैदरनगर में मोहर्रम की आठवीं को जंजीरी मातम कर खुद को शिया समुदाय ने लहूलुहान कर लिया. इसे देखने पलामू, गढ़वा के अलावा बिहार के रोहतास और औरंगाबाद से लोग पहुंचे थे.

जंजीरी मातम
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Published : Sep 8, 2019, 10:23 PM IST

पलामू: जिले के हैदरनगर में मुस्लिम समुदाय के कई लोगों ने मोहर्रम की आठवीं को जंजीरी मातम कर खुद को लहूलुहान कर लिया. इसे देखने बड़ी संख्या में पलामू, गढ़वा के अलावा बिहार के रोहतास और औरंगाबाद से लोग पहुंचे थे. समुदाय ने बड़ा इमामबारगाह में मजलिस की. जिसमें शहीद ए कर्बला का जिक्र किया गया.

जंजीरी मातम

निकाला गया जुलूस
मजलिस के बाद आलम के साथ जुलूस निकाला गया. जुलूस में बच्चे, बुजुर्ग और युवा मातम और मर्शिया पढ़ते हुए भाई बिगहा चौक पहुंचे. शिया समुदाय ने मुहर्रम पर परंपरागत ढंग से ब्लेड और जंजीरी मातम कर खुद को लहूलुहान कर लिया. मुतवल्ली अयूब हुसैन ने बताया कि वो शहीदों की मोहब्बत में खुद का लहू बहाते हैं. उन्हें ये बताते हैं कि कर्बला की जंग में वो होते तो उनपर आंच नहीं आने देते, बल्कि जुल्म के खिलाफ अपना खून बहा देते.

ये भी पढ़ें- ध्यान दें! 9 और 10 सितंबर को करमा और मुहर्रम को लेकर रांची की ट्रैफिक व्यवस्था में बदलाव

क्या है जंजीरी मातम
उन्होंने बताया कि मुहर्रम की आठवीं और दसवीं को ऐसा करते हैं. जंजीरी मातम करने वालो में बुजुर्ग, बच्चे और युवा बड़ी संख्या में शामिल हुए. समुदाय के मौलाना सैयद तौरब अली नकवी ने कहा कि इमाम हुसैन जुल्म के खिलाफ जंग लड़ते हुए शहीद हुए थे. जंजीरी मातम का उद्देश्य है कि उस वक्त वह होते तो उनके जख्मों को अपने ऊपर ले लेते.

पलामू: जिले के हैदरनगर में मुस्लिम समुदाय के कई लोगों ने मोहर्रम की आठवीं को जंजीरी मातम कर खुद को लहूलुहान कर लिया. इसे देखने बड़ी संख्या में पलामू, गढ़वा के अलावा बिहार के रोहतास और औरंगाबाद से लोग पहुंचे थे. समुदाय ने बड़ा इमामबारगाह में मजलिस की. जिसमें शहीद ए कर्बला का जिक्र किया गया.

जंजीरी मातम

निकाला गया जुलूस
मजलिस के बाद आलम के साथ जुलूस निकाला गया. जुलूस में बच्चे, बुजुर्ग और युवा मातम और मर्शिया पढ़ते हुए भाई बिगहा चौक पहुंचे. शिया समुदाय ने मुहर्रम पर परंपरागत ढंग से ब्लेड और जंजीरी मातम कर खुद को लहूलुहान कर लिया. मुतवल्ली अयूब हुसैन ने बताया कि वो शहीदों की मोहब्बत में खुद का लहू बहाते हैं. उन्हें ये बताते हैं कि कर्बला की जंग में वो होते तो उनपर आंच नहीं आने देते, बल्कि जुल्म के खिलाफ अपना खून बहा देते.

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क्या है जंजीरी मातम
उन्होंने बताया कि मुहर्रम की आठवीं और दसवीं को ऐसा करते हैं. जंजीरी मातम करने वालो में बुजुर्ग, बच्चे और युवा बड़ी संख्या में शामिल हुए. समुदाय के मौलाना सैयद तौरब अली नकवी ने कहा कि इमाम हुसैन जुल्म के खिलाफ जंग लड़ते हुए शहीद हुए थे. जंजीरी मातम का उद्देश्य है कि उस वक्त वह होते तो उनके जख्मों को अपने ऊपर ले लेते.

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Body:मुहर्रम की आठवीं को शिया समुदाय ने क्यों बहाया खून

बच्चे,बुजुर्ग और युवाओं ने किया जंजीरी मातम

इमाम हुसैन के मानने वाले जुल्म व आतंकवाद के खिलाफ

पलामू- ज़िले के हैदरनगर में रविवार मुहर्रम की आठवीं को जंजीरी मातम कर खुद को लहू लुहान कर लिया। इस दृश्य को देखने बड़ी संख्या में पलामू, गढ़वा के अलावा बिहार के रोहतास और औरंगाबाद से लोग पहुचे। समुदाय ने बड़ा इमामबारगाह में मजलिस की। जिसमे शहीद ए कर्बला का जिक्र किया गया। मजलिस के बाद आलम के साथ जुलूस निकाला।जुलूस में बच्चे,बुजुर्ग और युवा मातम और मर्शिया पढ़ते हुए भाई बिगहा चौक पहुचे। चौक पर रस्मो के अदा करने के बाद जवाहर पथ होते हुए चौक बाजार में पहुचकर जंजीरी मातम किया। शिया समुदाय ने मुहर्रम पर परंपरागत ढंग से ब्लेड और जंजीरी मातम कर खुद को लहू लुहान कर लिया। मुतवल्ली अयूब हुसैन ने बताया कि वो शहीदों की मुहब्बत में खुद का लहू बहते हैं। उन्हें ये बताते हैं कि कर्बला की जंग में वो होते तो उनपर आंच नही आने देते। बल्कि अपना खून बहा देते। उन्होंने कहा कि मुहर्रम की आठवीं और दसवीं को ऐसा करते है। जंजीरी मातम करने वालो में बुजुर्ग, बच्चे और युवा बड़ी संख्या में शामिल हुए। समुदाय के मौलाना सैयद तौरब अली नकवी ने कहा कि इमाम हुसैन जुल्म के खिलाफ जंग लड़ते हुए शहीद हुए थे। जंजीरी मातम का उद्देश्य है कि उस वक्त हम होते तो उनके जख्मो को अपने ऊपर लेलेते। उन्होंने कहा कि करबला का नाम है जुल्म, आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होने का। इंसानियत का साथ देने का।उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन के मानने वाले जुल्म और आतंकवाद के खिलाफ जहां खड़े होंगे वहाँ जुल्म और आतंकवाद को मिटा के ही दम लेंगे।


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