पलामू: चेरो साम्राज्य की समृद्धि की गाथा बताने वाला पलामू किला और शाहपुर किला उपेक्षा का शिकार है. इसी किले से महान चेरो राजा के शासन काल की एक कहावत आज भी प्रचलित है. धनी धनी राजा मेदनीया घर घर बाजे मथनिया. यानी, राजा मेदिनीराय के शासन काल में प्रजा खुशहाल थी और सभी घरों में दही मथा जाता था. चेरो साम्राज्य की 7 पीढ़ियों ने पलामू किले पर राज किया. चेरो राजवंश की अंतिम 3 पीढ़ी ने शाहपुर किले से राज किया.
चेरो राजवंश का इतिहास 1613 से 1821 तक का है. पलामू किला अब पलामू टाइगर रिजर्व का हिस्सा बन गया है. यह पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 28 किलोमीटर जबकि बेतला नेशनल पार्क से 4 किलोमीटर की दूरी पर है. यह पूरा इलाका लातेहार के बरवाडीह के अंतर्गत है.
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680 एकड़ में फैले किला पत्थरों के अवशेष में तब्दील
1613 में चेरो राजवंश की स्थापना के बाद 1641 के आस पास पलामू किला बना. इस किले पर अंग्रेजों ने 3 बार आक्रमण किया. इसके बाद राजा मेदिनीराय के कार्यकाल के दौरान नया पलामू किला बनाया गया. दोनों किले पहाड़ की चोटी पर मौजूद हैं. दोनों किले करीब 680 एकड़ में फैले हुए हैं. दोनों किले आज सिर्फ पत्थरों के अवशेष में तब्दील हो गए हैं. किला पूरी तरह से जंगल बन चुका है. हालांकि पीटीआर के कारण यहां तक आने के लिए बेहतर संसाधन मौजूद हैं.
रोहतास किला का जीर्णोद्धार हो सकता है तो पलामू किले का क्यों नहीं
चेरो इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते है कि जब रोहतास किले का जीर्णोद्धार हो सकता है, तो पलामू किले का क्यों नहीं. यह किला महान चेरो राजवंश का बखान करता है. 2012 में सरकार ने 12 करोड़ रुपये जीर्णोद्धार के नाम पर जारी किए, मगर इसके बाद क्या हुआ किसी को जानकारी नहीं है. पूरा इलाका पीटीआर में आ गया है.
किले की हालत से मायूस हैं पलामू के चेरो
पलामू और शाहपुर किले के हालात से पलामू के चेरो मायूस हैं. पलामू में चेरो समाज के अर्जुन सिंह बताते हैं पलामू और शाहपुर किले की उपेक्षा से वो मायूस हैं. सरकार और प्रशासन का इस पर ध्यान नहीं है. इसकी समृद्धि को बचाने की जरूरत है. पलामू किला पर्यटन का बड़ा केंद्र है. पर्यटक बताते हैं कि यहां सुविधा बढ़ाने की जरूरत है, यहां सिर्फ रोड है.