पलामू: नेतरहाट की हसीन वादियां राजस्थान समेत देश के कई इलाकों के चित्रकारों को भा रही है. नेतरहाट की शैले हाउस परिसर का नजारा बीते कुछ दिनों से काफी रंगीन नजर आ रहा है. देशभर से आए करीब 80 चित्रकार अपने-अपने राज्य शैलियों की लोक चित्रकला को कुचियों से कैनवास पर उतार रहे हैं, क्योंकि नेतरहाट में प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी पेंटिंग शिविर का आयोजन किया गया है.
दक्षिण की चेरियाल स्क्रॉल चित्रकारी हो या फिर उत्तर की थांगका चित्रकारी. पूर्व का पट्ट चित्र हो या फिर पश्चिम का फड़ चित्र, चित्रकार झारखंड को पूरे भारत के रंग को रंगने में लगे हुए हैं. शिविर में राजस्थान प्रांत के चित्तौड़गढ़ से आए मनोज कुमार जोशी राजस्थान के मशहूर फड़ चित्र बनाते हुए नजर आ रहे हैं.
मनोज कुमार जोशी ने कहा फड़ चित्रकारी राजस्थान में भीलवाड़ा जिले की विशेषता है और भीलवाड़ा जिले की भोपा जनजाति की विरासत भी. हमने भारतीय संस्कृति के इस ऐतिहासिक धरोहर को वर्षों से अपनी परंपरा में संभाल कर रखा है और विकसित किया है.
फड़ चित्रकारी जितने भी देवी-देवता हैं, उनके गाथाओं के ऊपर आधारित होता है. फड़ सिर्फ चित्रकारी ही नहीं बल्कि संगीत के माध्यम से भी दर्शाया जाता है. फड़ में आयताकार कपड़े पर स्थानीय राजाओं के जीवन की घटनाओं को विस्तृत रूप से चित्रित किया जाता है.
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इसमें लगभग पांच मीटर लंबे और डेढ़ मीटर चौड़े सूती या रश्मि कपड़े पर लाल, नारंगी, काले, गहरे हरे जैसे चटक रंगों का प्रयोग होता है. पहले बाहरी किनारों को ठप्पों की सहायता से बनाया जाता है, बाद में भीतर की और कथा की विस्तृत घटनाओं को बनाया जाता है. दोनों ओर बांस का दंड नुमा आधार बनाया जाता है ताकि इसको लपेटकर रखा और ले जाया जा सके.
आधुनिक फड़ में महाकाव्यों के नायकों और देवताओं के जीवन चरित्र को भी चित्रित किया जाने लगा है. इनका आकार भी पर्यटकों की सुविधा के लिए छोटा बनाया जाने लगा है, क्योंकि राजस्थान काफी गर्म प्रांत है और झारखंड की आबोहवा बहुत ही हसीन. चित्रकारों के लिए यह सुकून भरा माहौल उनकी सोच को गहराई देने में काफी मददगार साबित हो रही है. एक हल्की सी मुस्कान के साथ चित्रकार ने कहा कि इस जगह को नेतरहाट के बजाय नेचर हाट कहना ज्यादा उचित होगा.