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नक्सलियों के गढ़ में बदलाव की बयार, लोग जी रहे बेखौफ जिंदगी

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Published : Nov 17, 2020, 5:30 AM IST

पलामू जिले का कई क्षेत्र नक्सल प्रभावित रहा है, लेकिन आज के समय में यहां के लोगों से नक्सलियों का खौफ खत्म हो गया है. प्रशासन की पहल से लोग बेखौफ जिंदगी जी रहे हैं. सुरक्षा के मद्देनजर कई जगहों पर पुलिस पिकेट बनाए गए हैं, जहां सुरक्षाकर्मी मौजूद रहते हैं. जिस स्कूलों को नक्सलियों ने उड़ा दिया था वहां भी आज बच्चे काफी संख्या में शिक्षा लेने पहुंच रहे हैं.

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नक्सलियों के क्षेत्र में विकास

पलामू: जिले के कई इलाकों में नक्सलियों के खौफ से लोग घरों में दुबके रहते थे, लेकिन अब प्रशासन के पहल से इलाके का माहौल बदल गया है. झारखंड बनने के बाद पलामू में बदलाव की बयार बह रही है. एक बड़ी आबादी जो कभी लोकतंत्र से अलग थलग थी अब मुख्य धारा से जुड़ गई है. पलामू 70 के दशक से नक्सल हिंसा के चपेट में है, लेकिन अब यहां पुलिस और सुरक्षाबलों की मौजूदगी में तेजी से विकास कार्य हो रहे हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी


तेजी से बन रहे रोड, लगने लगी हाट और बाजार
पलामू के नक्सल प्रभावित इलाकों में तेजी से बदलाव हुआ है. नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले कुहकुह कला, चेतमा, डगरा, पथरा, महूदंड, ताल, मिटार, मंसुरिया, पदमा, चक, डबरा, कसमार के इलाके में तेजी से विकास कार्य हो रहे हैं. कभी इन इलाकों में लोग नक्सलियों के भय से बाइक नहीं खरीदते थे. अब वहां तेजी से चार पहिया वाहन दौड़ रही है. इन इलाकों में स्कूल खुलने लगी है, बाजार सजने लगे हैं. तेजी से सरकार की आधारभूत संरचना तैयार हो रही है. कुहकुह कला में तैनात है शिक्षक राजीव रंजन मिश्रा ने बताया कि वो 2005 के चुनाव में नक्सल प्रभावित इलाके में गए थे उस समय इलाके में भय का माहौल था, लेकिन 15 साल बाद हालात बदल गए हैं. उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने 2010 में जिस स्कूल को उड़ा दिया था, उसी स्कूल में वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि चक जैसे इलाके में 2009 तक गांव में सिर्फ एक स्कूटर था, लेकिन अब वहां 400 से अधिक बाइक और कई चार पहिया वाहन है.



पिकेट ने लाया है बड़ा बदलाव, ग्रामीण है बेहद खुश
जिले में नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए 17 पुलिस पिकेट बनाए गए हैं. पिकेट के माध्यम से नक्सलियों पर नकेल कसी गई है. नतीजा यह है कि पिछले एक दशक में नक्सल हिंसा में 80 प्रतिशत तक की कमी हुई है. 2014 के बाद से नक्सल हिंसा में सिर्फ दो लोगों की हत्या हुई है. 2016 के बाद से सुरक्षबलों ने 20 से अधिक नक्सलियों को मार गिराया है, जबकि 200 से अधिक की गिरफ्तारी हुई है. ग्रामीण विकास कुमार यादव बताते हैं कि पिकेट के कारण माहौल बदल गया है, अब लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. ग्रामीण बेहद खुश हैं कि उनके गांव तक अब आधारभूत संरचना पंहुच रही है. संतोष कुमार बताते हैं कि काफी कुछ बदल गया है, अब पहले पुलिस और नक्सली के बीच ग्रामीण पिसते थे, लेकिन अब माहौल बदल गया.

इसे भी पढे़ं:-चिंताजनक: पलामू का युवा वर्ग नशे की गिरफ्त में, सिर्फ 15 % ही पहुंच रहे अस्पताल


पुलिस के प्रति लोगों का बढ़ा विश्वास
एक दशक में पुलिस के प्रति नक्सल इलाकों में लोगों की सोच बदल गई है. अब लोग पुलिस की मदद कर रहे हैं और मदद की उम्मीद भी रख रहे हैं. एसपी संजीव कुमार ने बताया कि आम लोग पुलिस को अपना दोस्त समझें, पुलिस आम लोगों की मदद के लिए है. उन्होंने बताया कि आम लोग और पुलिस के बीच जो खाई है हसे पाटने की कोशिश है, सोशल पुलिसिंग के माध्यम से कई पहल की जा रही है.

नक्सल इलाकों में योजनाओं को धरातल पर उतारा जा रहा
नक्सल प्रभावित इलाकों में योजनाओं को धरातल पर उतारा जा रहा है. विशेष केंद्रीय सहायता से हर साल नक्सल प्रभावित गांव में बदलाव की कोशिश जारी है. पलामू के डीसी शशि रंजन ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों में योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कटिबद्ध है, एक एक व्यक्ति तक लोक कल्याणकारी योजना पंहुचाई जा रही है.

पलामू: जिले के कई इलाकों में नक्सलियों के खौफ से लोग घरों में दुबके रहते थे, लेकिन अब प्रशासन के पहल से इलाके का माहौल बदल गया है. झारखंड बनने के बाद पलामू में बदलाव की बयार बह रही है. एक बड़ी आबादी जो कभी लोकतंत्र से अलग थलग थी अब मुख्य धारा से जुड़ गई है. पलामू 70 के दशक से नक्सल हिंसा के चपेट में है, लेकिन अब यहां पुलिस और सुरक्षाबलों की मौजूदगी में तेजी से विकास कार्य हो रहे हैं.

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तेजी से बन रहे रोड, लगने लगी हाट और बाजार
पलामू के नक्सल प्रभावित इलाकों में तेजी से बदलाव हुआ है. नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले कुहकुह कला, चेतमा, डगरा, पथरा, महूदंड, ताल, मिटार, मंसुरिया, पदमा, चक, डबरा, कसमार के इलाके में तेजी से विकास कार्य हो रहे हैं. कभी इन इलाकों में लोग नक्सलियों के भय से बाइक नहीं खरीदते थे. अब वहां तेजी से चार पहिया वाहन दौड़ रही है. इन इलाकों में स्कूल खुलने लगी है, बाजार सजने लगे हैं. तेजी से सरकार की आधारभूत संरचना तैयार हो रही है. कुहकुह कला में तैनात है शिक्षक राजीव रंजन मिश्रा ने बताया कि वो 2005 के चुनाव में नक्सल प्रभावित इलाके में गए थे उस समय इलाके में भय का माहौल था, लेकिन 15 साल बाद हालात बदल गए हैं. उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने 2010 में जिस स्कूल को उड़ा दिया था, उसी स्कूल में वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उन्होंने बताया कि चक जैसे इलाके में 2009 तक गांव में सिर्फ एक स्कूटर था, लेकिन अब वहां 400 से अधिक बाइक और कई चार पहिया वाहन है.



पिकेट ने लाया है बड़ा बदलाव, ग्रामीण है बेहद खुश
जिले में नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए 17 पुलिस पिकेट बनाए गए हैं. पिकेट के माध्यम से नक्सलियों पर नकेल कसी गई है. नतीजा यह है कि पिछले एक दशक में नक्सल हिंसा में 80 प्रतिशत तक की कमी हुई है. 2014 के बाद से नक्सल हिंसा में सिर्फ दो लोगों की हत्या हुई है. 2016 के बाद से सुरक्षबलों ने 20 से अधिक नक्सलियों को मार गिराया है, जबकि 200 से अधिक की गिरफ्तारी हुई है. ग्रामीण विकास कुमार यादव बताते हैं कि पिकेट के कारण माहौल बदल गया है, अब लोग सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. ग्रामीण बेहद खुश हैं कि उनके गांव तक अब आधारभूत संरचना पंहुच रही है. संतोष कुमार बताते हैं कि काफी कुछ बदल गया है, अब पहले पुलिस और नक्सली के बीच ग्रामीण पिसते थे, लेकिन अब माहौल बदल गया.

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पुलिस के प्रति लोगों का बढ़ा विश्वास
एक दशक में पुलिस के प्रति नक्सल इलाकों में लोगों की सोच बदल गई है. अब लोग पुलिस की मदद कर रहे हैं और मदद की उम्मीद भी रख रहे हैं. एसपी संजीव कुमार ने बताया कि आम लोग पुलिस को अपना दोस्त समझें, पुलिस आम लोगों की मदद के लिए है. उन्होंने बताया कि आम लोग और पुलिस के बीच जो खाई है हसे पाटने की कोशिश है, सोशल पुलिसिंग के माध्यम से कई पहल की जा रही है.

नक्सल इलाकों में योजनाओं को धरातल पर उतारा जा रहा
नक्सल प्रभावित इलाकों में योजनाओं को धरातल पर उतारा जा रहा है. विशेष केंद्रीय सहायता से हर साल नक्सल प्रभावित गांव में बदलाव की कोशिश जारी है. पलामू के डीसी शशि रंजन ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों में योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कटिबद्ध है, एक एक व्यक्ति तक लोक कल्याणकारी योजना पंहुचाई जा रही है.

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