पलामूः झारखंड और छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित बूढ़ापहाड़ करीब 52 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जहां नक्सलियों का साम्राज्य था. बूढ़ा पहाड की सीमा झारखंड के गढ़वा और लातेहार जिले और छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले से सटा हुआ है. इस 52 किलोमीटर के दायरे में अक्टूबर 2022 से पहले तक माओवादीयों साम्राज्य था, जहां सुरक्षाबल दिन में पहले से हिचकता था. अब इस इलाके की तस्वीर बदलने वाली है. सीएम हेमंत सोरेन शुक्रवार को बूढ़ा पहाड़ पंहुचेंगे और इलाके को नक्सल मुक्त होने की घोषणा करेंगे.
यह भी पढ़ेंः हेमंत सोरेन का बूढ़ा पहाड़ दौरा, पहली बार नक्सलियों के गढ़ में कोई सीएम, कई टॉप कमांडर कर सकते हैं आत्मसमर्पण
बूढ़ा पहाड़ से माओवादी झारखंड, बिहार और उत्तरी छत्तीसगढ़ में अपनी गतिविधियों का संचालन करते थे. यह इलाका माओवादियो का पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी (PLGA) का मुख्यालय हुआ करता था, जहां नक्सली अपने कैडर को गुरिल्ला वार का प्रशिक्षण देते थे. सारंडा माओवादियों का ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का मुख्यालय है, तो बूढ़ापहाड़ माओवादियो के बिहार, झारखंड, उत्तरी छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश सीमांत कमेटी का मुख्यालय था.
बूढ़ापहाड़ को बनाया था यूनिफाइड कमांडः 2013-14 में बूढ़ा पहाड़ को माओवादियों ने अपना यूनिफाइड कमांड बनाया था. बिहार, झारखंड और उत्तरी छत्तीसगढ़ में घटनाओं को अंजाम देने के लिए बूढ़ा पहाड़ में ही रणनीति तैयार की जाती थी. बूढ़ा पहाड़ को माओवादियों ने एक अभेद किला बना रखा था, जहां सुरक्षाबलों को पहुंचना मुश्कित हो गया था. माओवादियों का पोलित ब्यूरो सदस्य रहे देव कुमार सिंह उर्फ अरविंद के नेतृत्व में नक्सलियों ने बूढ़ा पहाड़ को ठिकाना बनाया था. साल 2018 में अरविंद की मौत हो गई. अरविंद की मौत के बाद सुधाकरण ने बूढ़ा पहाड़ की कमान संभाली. 2019-20 में सुधाकरण ने अपनी टीम के साथ तेलंगाना में आत्मसमर्पण कर दिया. इसके बाद बूढ़ा पहाड़ की कमान मिथिलेश मेहता उर्फ बनवारी के पास थी. मिथिलेश मेहता 2022 में गिरफ्तार हो गया. अब सौरव उर्फ मारकुस बाबा के पास बूढ़ा पहाड़ की कमान है.
इनामी नक्सली था सक्रियः बूढ़ा पहाड़ के इलाके में 25 लाख के इनामी माओवादी कमांडर मारकुस बाबा उर्फ सौरव के नेतृत्व में माओवादी सक्रिय है. मारकुस बिहार के औरंगाबाद का रहने वाला है. इसके अलावा 15 लाख के इनामी छोटू खरवार, नीरज खरवार, रबिंद्र गंझू, 10 लाख के इनामी मृत्युंजय भुइयां के नेतृत्व में तीन अलग अलग दस्ता सक्रिय है. हालांकि अक्टूबर महीने के बाद यह दस्ता बूढ़ा पहाड़ छोड़ कर भाग गया है. सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार बूढ़ा पहाड़ इलाके में 25 से 30 की संख्या में माओवादी कैडर सक्रिय थे.
विकसित किया था कई तकनीकः बूढ़ा पहाड़ से माओवादियों ने झारखंड और बिहार में कई बड़े नक्सल हमले को अंजाम दिया. इसकी वजह थी कि माओवादियों ने बूढ़ा पहाड़ पर अपनी कई तकनीक विकसित किया, जिससे रणनीति बनाने और घटना को अंजाम देने में आसानी होती थी. साल 2013-14 में माओवादियों ने लातेहार के कटिया हमले को अंजाम दिया. इस हमले में 17 जवान शहीद हुए थे. इस दौरान माओवादियों ने सीआरपीएफ जवान के पेट मे बम लगा दिया था. माओवादियों ने यह तकनीक इसी दौरान विकसित किया था. इसी दौरान माओवादी बूढ़ा पहाड़ पर अपना यूनिफाइड कमांड स्थापित किया. इसके बाद साल 2022 तक इस इलाके से करीब 400 से अधिक हमले को अंजाम दिया है.
बूढ़ा पहाड़ पर चला ऑपरेशन ऑक्टोपसः बूढ़ापहाड़ पर सितंबर महीने से माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया गया. इस ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों ने पहली बार बूढ़ा पहाड़ पर अपना कब्जा जमाया और माओवादी बूढ़ा पहाड़ छोड़ कर भागने लगा. बूढ़ा पहाड़ पर सुरक्षाबलों ने आधा दर्जन के करीब अपने कैंपों को स्थापित किया है. इन कैंपों में कोबरा, सीआरपीएफ, जगुआर के जवानों को तैनात किए गए हैं. सुरक्षाबलों ने बताया कि पिछले चार पांच महीने में 2500 से अधिक लैंड माइंस बरामद किए गए और आधा दर्जन से अधिक बंकरों को ध्वस्त किया गया है.
बूढ़ा पहाड़ को किया जाएगा विकसितः बूढ़ा पहाड़ पर कब्जे के बाद सुरक्षाबलों ने सबसे पहले इस इलाके में सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण शुरू किया. इलाके में रहने वाले एक-एक गांव के एक एक परिवार का डाटा तैयार किया है. सर्वेक्षण के दौरान ग्रामीणों की समस्याओं को भी नोट किया गया. ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों ने खुद से रोड और पल तैयार किए और इलाके को पहली बार मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की गई है.