पलामू: आजादी के लगभग 75 साल बीतने के बाद देश के कई राज्य जहां आधुनिकता और विकास के नए नए आयाम गढ़ रहे हैं. वहीं झारखंड अब भी अंधविश्वास, जादू टोना, भूत प्रेत और डायन बिसाही जैसी कुप्रथा के मकड़जाल से नहीं निकल पाया है. कहते हैं ये सारी प्रथाएं यहां की सामाजिक संरचना का हिस्सा बन गई है. जिसके ईर्द गिर्द अंधविश्वास का आर्थिक मॉडल काम करता है. यही कारण है कि पिछले एक दशक में झारखंड में डायन बताकर 300 से अधिक लोगों की हत्या के बाद भी झारखंड के पलामू समेत कई इलाकों में ओझा गुणी देवास या डलिया लगाकर किसी महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है और कानून मूकदर्शक बनी रहती है.
क्या है देवास या डलिया कुप्रथा: दरअसल देवास या डलिया उस प्रथा को कहते है जिसमें गांव में रहने वाले ओझा और गुणी एक धार्मिक आयोजन करते है. पलामू के हर 25वें से 30वें गांव में इसका आयोजन किया जाता है. इस धार्मिक आयोजन में ही किसी महिला को डायन बताया बताया जाता है. कानूनी मामलों की जानकार और महिला सामाजिक कार्यकर्ता इंदु भगत बताती है इस तरह के आयोजन के माध्यम से महिलाओं को शोषण किया जाता है. यह समाज के लिए खतरनाक है. उन्होंने बताया कि कमजोर या अकेली महिला को अंधविश्वास के माध्यम से निशाना बनाया जाता है. कई बार संपत्ति को हड़पने के लिए भी लोग इस तरह का कदम उठाते हैं और डायन बताकर प्रताड़ित करते हैं.
भूत भगाने के नाम पर होती है मोटी कमाई: देवास या डलिया को ही अंधविश्वास का आर्थिक मॉडल कहा जाता है. इसके जरिए भूत भगाने और अंधविश्वास के नाम पर लोगों से अच्छी खासी रकम ऐंठ ली जाती है. पलामू के हैदरनगर में आयोजित भूत मेला में एक एक व्यक्ति से 10 से 40 हजार रुपये तक वसूली की जाती है. इस भूत मेला में कई राज्यो से लोग शामिल होतें हैं. यूपी के रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि वह हर वर्ष यहां आता है और भूत मेला में शामिल होता है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस एक मेले से अंधविश्वास के ठेकेदारों को कितनी कमाई होती होगी.
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पुलिस पर हमले से परहेज नहीं: अंधविश्वास के इस खेल का प्रशासन की जानकारी में अंजाम दिया जाता है. हैदरनगर में आयोजित भूत मेला में प्रशासन जवानों की तैनाती भी करता है. लेकिन कई बार इसे रोकने की कोशिश पर पुलिस पर हमला भी शुरू हो जाता है. 2015-16 में पलामू के सरईडीह में आयोजित भूत मेला को पुलिस ने रोकने का प्रयास किया था. इस दौरान हुई झड़प में एक ग्रामीण की मौत हो गई थी जबकि कई पुलिस जवान जख्मी हुए थे. ग्रामीणों के द्वारा हथियार लूटने की भी कोशिश की गई थी. इसी तरह हैदरनगर और हुसैनाबाद के इलाके आयोजन को रोकने गई पुलिस पर हमला हुआ था.
अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता की जरूरत: जिले में अंधविश्वास को दूर करने के लिए कई स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चल रहे हैं. जागरूकता कार्यक्रम शहर और वर्कशॉप तक ही सीमित है. पलामू पुलिस ने 2017-18 में अंधविश्वास से जुड़े मामलों में एक सर्वे करवाया था. जिसमें 300 से भी अधिक लोगों को झाड़-फूंक करने के मामले में चिन्हित किया गया था. उस दौरान पुलिस ने सभी पर निरोधात्मक कार्रवाई की योजना तैयार किया था. प्रमंडलीय आयुक्त जटाशंकर चौधरी बताते हैं कि यह समाज के लिए बेहद गंभीर है. मामले में सघन जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है ताकि अंधविश्वास को जड़ से समाप्त किया जा सके.