पलामूः 28 मार्च 1859 को जंग-ए-आजादी की लड़ाई लड़ने वाले झारखंड के वीर योद्धा और 1857 क्रांति के महानायक नीलांबर-पीतांबर को अंग्रेजों ने पलामू के लेस्लीगंज में फांसी दे दी थी. झारखंड ही नहीं पूरा देश उनकी शहादत का ऋणी है और आज के दिन उनकी कुर्बानी को याद कर रहा है. झारखंड की राजधानी रांची से करीब 300 किलोमीटर दूर आज भी वो पेड़ और टटरी मौजूद है, जहां दो भाई नीलांबर और पीतांबर आजादी की लड़ाई की रणनीति तैयार करते थे.
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सन 1857 में हुई अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति में झारखंड के वीर योद्धा के नाम शामिल है. ऐसे ही दो भाई नीलांबर और पीतांबर, जिन्होंने अपने गुरिल्ला तकनीक से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे. भगवान बिरसा मुंडा से पहले इन दो भाइयों ने झारखंड में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई शुरू किया था. पूरे देश में 1857 की क्रांति कुछ ही महीनों में कमजोर हो गयी थी. लेकिन पलामू का ही एक ऐसा इलाका था जहां साल 1859 तक क्रांति की लौ जलती रही.
लेकिन इतिहास में महानायक नीलांबर-पीतांबर को वो सम्मान और तरजीह नहीं मिली जिनके वो हकदार थे. आज भी नीलांबर पीतांबर का गांव चेमो सान्या उपेक्षित है. यहां तक पहुंचते पहुंचते सारी विकास योजनाएं ठप हो जाती हैं. यह इलाका अब नक्सल हिंसा के लिए चर्चित है और बूढापहाड़ के नजदीक है. चेमो सान्या निर्माणाधीन मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आता है. आज पूरा इलाका नीलांबर पीतांबर की धरती को बचाने के लिए लड़ाई लड़ रहा है.
नीलांबर-पीतांबर ने की थी अंग्रेजों मुखालफतः नीलांबर पीतांबर के पिता चेमो सिंह खरवार ने चेमो और सान्या गांव को बसाया था और वो वहां के जागीरदार थे. पिता की मौत के बाद नीलांबर ने पीतांबर का पालन-पोषण किया था. 1857 के सैन्य विद्रोह के दौरान पीतांबर रांची में थे, वहां से लौटने के बाद अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की योजना तैयार की. इस दौरान दोनों भाइयों ने भोक्ता, खरवार, चेरो और आसपास के कुछ जागीरदारों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई शुरू की.
दोनों भाइयों के नेतृत्व में सैकड़ों युवाओं ने 27 नवंबर 1857 को रजहरा स्टेशन पर हमला किया. यहां से अंग्रेज कोयला की ढुलाई करते थे. इसके बाद अंग्रेज बौखलाए और लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में एक फौज पलामू पहुंची और नीलांबर पीतांबर के ठिकाने पलामू किला पर हमला किया. इस हमले से नीलांबर पीतांबर के लड़ाकों का काफी नुकसान हुआ. इसी दौरान नीलांबर पीतांबर के सहयोगी शेख भिखारी और उमराव सिंह पकड़े गए थे, जिसके बाद अंग्रेजी सेना ने दोनों को फांसी दे दी थी.
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कर्नल डाल्टन ने मचाई थी तबाहीः नीलांबर-पीतांबर की गुरिल्ला लड़ाई से परेशान अंग्रेजों ने कमिश्नर डाल्टन को बड़ी फौज के साथ पलामू भेजा था. डाल्टन के साथ मद्रास इन्फेंट्री के सैनिक घुड़सवार और विशेष बंदूकधारी जवान भी इसमें शामिल थे. फरवरी 1858 में डाल्टन चेमो सान्या पहुंचा और जमकर तबाही मचाई. डाल्टन लगातार 24 दिनों तक चेमो सान्या में रहे थे. दोनों भाइयों पर किताब लिखने वाले देवेंद्र गुप्ता बताते है कि दोनों भाइयों को अंग्रेजों ने छल से पकड़ा था. जिसके बाद 28 मार्च 1859 को लेस्लीगंज में एक पेड़ पर दोनों भाइयों को फांसी दे दी गयी थी.
उपेक्षित है नीलांबर पीतांबर का गांवः नीलांबर पीतांबर के गांव चेमो सान्या झारखंड की राजधानी रांची से करीब 300 किलोमीटर दूर है ये इलाका छत्तीसगढ़ राज्य से सटा हुआ है. यह गांव मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आता है. मंडल डैम बनने के बाद यह गांव डूब जाएगा. चेमो सान्या और पलामू के मेदिनीनगर में एक छोटा स्मारक है जबकि दोनों भाइयों से जुड़ी किसी भी सामग्री को बचाया नहीं जा सका है. दोनों भाइयों के नाम पर यूनिवर्सिटी जरूर बनी है लेकिन यूनिवर्सिटी में उनकी प्रतिमा तक नहीं है. पलामू के युवा सन्नी शुक्ला बताते हैं कि इतिहास में जो नीलांबर पीतांबर को तरजीह मिलनी चाहिए थी वो जगह नहीं मिला है. नीलांबर पीतांबर के शहादत स्थल के अतिक्रमण का मामला हाल में ही विधानसभा में सत्र के दौरान बगोदर विधायक विनोद सिंह ने उठाई थी.