पाकुड़ः शहरी सहित ग्रामीण इलाकों में धड़ल्ले से सिंगल यूज प्लास्टिक को लोग न केवल उपयोग में ला रहे हैं. बल्कि इस उद्योग से जुड़े कारोबारी भी मालामाल हो रहे हैं. सिंगल यूज प्लास्टिक की खरीद और बिक्री जारी रहने के कारण ग्रामीण इलाकों में खासकर आदिवासी और पहाड़िया जो पत्ता प्लेट को कुटीर उद्योग पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है.
साप्ताहिक हाट हो या ग्रामीण और शहरी इलाकों की दुकान आज भी कैरीबैग के अलावा थर्माकोल के कटोरे थाली और प्लास्टिक के गिलास बिक रही है. शादी विवाह हो या सरकारी कार्यालयों में बैठक आदि में खुलेआम प्लास्टिक के सामानों की जिसमें इंसान के सेहत और पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है का इस्तेमाल हो रहा है.
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20 से 21 मेट्रिक टन कचरा का उठाव
प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक नगर परिषद क्षेत्र में प्रतिदिन 20 से 21 मेट्रिक टन कचरा का उठाव होता है, जिसमें 60 से 70 फीसदी भाग सिंगल यूज प्लास्टिक के अलावा थर्मोकोल से बने सामान रहते हैं. सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध का अंदाजा इसी से लगता है कि प्रतिदिन कचरा संग्रहण के लिए डोर टू डोर वाहनों में अधिकांश हिस्सा प्लास्टिक के सामान ही होते हैं. मालूम हो कि पाकुड़ आदिवासी बहुल जिला है और लिट्टीपाड़ा, अमड़ापाड़ा प्रखंड के पहाड़ों और दुर्गम स्थानों में रह रहे आदिवासी पहाड़िया साल पत्ता से पत्ता प्लेट, कटोरा बनाकर इसे बाजारों में बेचने और उससे हुए अर्थ उपार्जन से अपना व परिवार का भरण पोषण किया करते हैं. परंतु सिंगल यूज प्लास्टिक के अलावा थर्माकोल के बने सामानों की हो रही बिक्री ने गांव में रहने वाले आदिवासी पहाड़िया ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को ही प्रभावित कर दिया है.
पर्यावरण पर असर
सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर केकेएम कॉलेज के व्याख्याता डॉ प्रसनजीत मुखर्जी बताते हैं कि सिंगल न्यूज़ प्लास्टिक को सड़ने में हजारों साल लग सकता है जिस कारण इंसान के सेहत के साथ-साथ पर्यावरण पर खासा असर पड़ रहा है. डॉ मुखर्जी ने बताया कि यदि जैव सामानों का उपयोग करें तो आसानी से सड़ जाएगा और मिट्टी के लिए भी लाभकारी होगा.