पाकुड़: किसानों के हित के लिए राज्य या केंद्र सरकार भले ही लाख दावे कर ले लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. किसानों की आय को बढ़ाने के लिए सरकार ने तीन विभाग को सक्रिय किया है. इसके बावजूद पाकुड़ जिले में धान अधिप्राप्ति के मामले में लक्ष्य के खिलाफ 50 प्रतिशत उपलब्धि हासिल नहीं कर पायी है, लेकिन सरकारी बाबू धान अधिप्राप्ति मामले में बड़े-बड़े दावे जरूर कर रहे हैं.
धान अधिप्राप्ति मामले में खानापूर्ति वाला काम
सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने और बाजार मुहैया कराने के नीयत से किसानों से धान खरीदने का काम सहकारिता विभाग के माध्यम से शुरू कराया. इसमें पहले किसानों का पंजीयन कराया जाता है और उसके बाद किसान पंजीकृत किसानों का धान खरीदा जाता है लेकिन धान अधिप्राप्ति मामले में चाहे आपूर्ति, कृषि हो या सहकारिता विभाग सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति करने का काम पाकुड़ जिले में कर रही है, जो आपूर्ति विभाग से दिया गया डेटा बता रहा है.
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जानकारी के मुताबिक बीते वर्ष सरकार ने 30 हजार क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य आपूर्ति विभाग को दिया था, जिले में 1341 किसानों का पंजीयन सहकारिता विभाग की ओर से कराया गया. पंजीकृत 1341 किसानों में से 180 किसानों से 10 हजार 265 क्विंटल धान सहकारिता विभाग ने किसानों से क्रय किया.
आपूर्ति विभाग से दी गयी जानकारी के मुताबिक जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड के आलूबेड़ा लैंपस में 89 किसानों ने पंजीयन कराया और 16 किसानों ने धान बेचा. हिरणपुर प्रखंड के देवपुर लैंपस में 274 किसानों का पंजीयन कराया गया. यहां 93 किसानों ने अपना उत्पादित धान बेचा जबकि हिरणपुर लैंपस ने 329 के खिलाफ 44 लिट्टीपाड़ा प्रखंड के कानीझाड़ा में 264 के खिलाफ 3, करमाटांड़ में 139 के खिलाफ 19 और पाकुड़िया प्रखंड स्थित लैपंस में 246 किसानों ने पंजीयन कराया और मात्र 5 किसानों ने ही धान बेचा.
धान अधिप्राप्ति मामले में 50 प्रतिशत लक्ष्य हासिल नहीं कर पाने के कारण इस बार सरकार ने लक्ष्य को घटाकर पाकुड़ जिले को 20 हजार क्विंटल कर दिया है. आपूर्ति विभाग के मुताबिक किसानों को एक क्विंटल धान के एवज में समर्थन मूल्य 1,815 रुपये और बोनस के रूप में 150 रुपये दिया जाता है. बावजूद किसान सस्ते दर पर अपने उत्पादित धान को महाजन के यहां बेचने को मजबूर हैं.
महाजन के यहां धान बेचने का भी है कारण
इस मामले में ईटीवी भारत ने किसानों से लैंपस में अधिक मूल्य देने के बावजूद महाजन के यहां सस्ते दर पर बेचने के कारणों के बारे में पूछा तो किसानों ने बताया कि लैंपस में धान बेचने के लिए एक तो उसकी प्रक्रिया काफी लंबी है और समय पर भुगतान नहीं मिल पाता.
पूर्व में कई किसान अपने धान बेचकर सरकारी बाबू के दफ्तर में चक्कर लगाए इसलिए अपने उत्पादित धान को महाजन के यहां भले ही कम पैसे में बेचना पड़ता है लेकिन यहां नगद भुगतान मिल जाता है और समय पर भुगतान मिल जाने से खेत में दूसरे फसल के लिए तैयारी शुरू करने में आसानी होती है. वहीं, कुछ किसानों ने बताया कि पाकुड़ और महेशपुर मुख्यालय सहित ग्रामीण इलाकों में एक लैंपस का चयन नहीं किया गया है. किसानों को धान बेचने के लिए दूसरे प्रखंड जाना पड़ता है.
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लक्ष्य काफी पीछे रहने और किसानों का भरोसा नहीं जीत पाने को लेकर जब जिला आपूर्ति पदाधिकारी शिवनारायण यादव से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि धान अधिप्राप्ति के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कृषि, आपूर्ति और सहकारिता विभाग के प्रखंड और जिलास्तरीय अधिकारियों के साथ बैठक की गयी है. बैठक में किसानों के बीच प्रचार प्रसार करने, उन्हें जागरूक करने, ज्यादा से ज्यादा किसानों का पंजीयन कराकर धान की खरीदारी करने का निर्देश दिया गया है.
जिला आपूर्ति पदाधिकारी ने बताया कि कुछ कारणों से बीते वर्ष लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका लेकिन जितने भी किसानों का धान क्रय किया गया था उन किसानों को समय पर भुगतान कर दिया गया है. वहीं, इस बार सरकार ने जो लक्ष्य दिया है उसे शत-प्रतिशत हासिल करने के लिए तीनों विभाग को सक्रिय कर दिया गया है.
वहीं, जिला सहकारिता पदाधिकारी कुमार गौतम का कहना है कि जिले में 6 लैंपस को नोडल के रूप में चिन्हित किया गया है. उन सभी नोडल लैंपस में धान की खरीदारी की जाएगी. उन्होंने बताया कि पूर्व में धान खरीदारी और जमावृद्धि मामले में जिस लैंपस में गड़बड़झाला हुआ था वैसे लैंपस का चयन नहीं किया गया है क्योंकि कई लैंपस सील हैं और कई के खिलाफ कार्रवाई चल रही है.