पाकुड़: सरकारी आंकड़ों में जिले में एक लाख, 43 हजार, 16 शौचालयविहीन लोगों के घरों में शौचालय बनाने के दावे किए गए हैं, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. यहां कई ऐसे शौचालय हैं जो प्रचार ज्यादा और इसके लाभुकों को कम फायदा पहुंचा रहे हैं. शौचालय की हकीकत इतने में ही नहीं थम जाती, सैकड़ों गांव में लाभुकों के घर और आस पास के बजाय खुले मैदान में शौचालय बना दिए गए हैं.
नहीं मिल रहा लाभ
खुले में शौचमुक्त गांव, पंचायत, प्रखंड और जिला बनाने के लिए करोड़ों रुपए पेयजल स्वच्छता विभाग, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से खर्च किए गए, लेकिन इसका लाभ आज भी इसके हकदार नहीं उठा पा रहे. आधे-अधूरे शौचालय आज भी न केवल पहाड़ों और दुर्गम गांव, बल्कि जिला और प्रखंड मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर दिख रहे हैं. कई ऐसे शौचालय भी हैं, जिसे पूरा नहीं करने के कारण लाभुक इसमें पुआल गोइठा रखने के रूप में उपयोग में ला रहे हैं. साथ ही पानी की टंकी में पानी की कहीं कोई सुविधा नजर नहीं आती.
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लाभुकों की नहीं सुनी गई
लाभुकों का कहना है कि शौचालय बनाते वक्त इनकी एक नहीं सुनी गई और लक्ष्य हासिल करने की होड़ में जैसे-तैसे शौचालय का निर्माण करा दिया गया. शौचालय तो ऐसे बनाए गए हैं जिसमें शौच करने यदि तंदुरुस्त व्यक्ति गया तो अंदर ही रह जाएगा और बाहर आने के लिए उसे दीवार तक तोड़ना पड़ेगा.
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कार्रवाई का भरोसा
इस मामले में डीसी कुलदीप चौधरी का कहना है कि जिले में जो शौचालय बनाए गए हैं, उसका उपयोग कुछ लोग कर रहे हैं और जागरूकता के अभाव में कुछ लोग उपयोग नहीं कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि लोगों के बीच जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, ताकि लाभुक शौचालय का उपयोग करें. उन्होंने बताया कि जहां तक गुणवत्ता से संबंधित मामले हैं, इसकी जांच कराई जाएगी और गड़बड़ी पाई गई तो संबंधित कार्य एजेंसी के खिलाफ कार्रवाई भी किए जाएंगे.