पाकुड़: बारिश में मौसमी बीमारियों के अलावा सबसे ज्यादा अगर किसी रोग के फैलने की सबसे बड़ी संभावना है, तो वो है मलेरिया और कालाजार. झारखंड राज्य अलग बनने के बाद से अबतक मलेरिया उन्मूलन हो या मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम इनमें रोगियों की संख्या जरूर घटी है, लेकिन नहीं घटा है तो मच्छरों का प्रकोप. यही वजह है कि सरकार आज भी मलेरिया और कालाजार से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर रही है.
मरीजों की संख्या हर साल घट जरूर रही है, लेकिन मच्छरों का प्रकोप घटने के बजाय लगातार बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर कालाजार और मलेरिया को नष्ट कैसे किया जाए. पाकुड़ जिले में बीते कई साल के आंकड़ों पर गौर किया जाए, तो निश्चित रूप से यह स्पष्ट होता है कि हर साल मलेरिया और कालाजार के रोगियों की संख्या घट रही है. हालांकि मच्छरों का प्रकोप नहीं घट रहा है. शायद यही वजह है कि सरकार ने मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम का नाम बदलकर मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम रख दिया. मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम के तहत पहले डीडीटी का छिड़काव किया जाता था. प्रभावित इलाकों में फागिंग कराई जाती थी, लेकिन अब मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के तहत साल में 2 बार बारिश के पहले और उसके बाद सिंथेटिक पारा थायराइड स्प्रे कराने की व्यवस्था सुनिश्चित की गयी है.
ये भी पढ़ें- कोरोना संक्रमण के दौरान पलामू सेंट्रल जेल बना नजीर, 2 दर्जन से ज्यादा कैदियों को मिला रोजगार
स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, सिंथेटिक पारा थाइराइड स्प्रे से मच्छर मरते नहीं है. इससे उनकी आयु और जहरीलापन पर जरूर खत्म हो जाता है. मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम के तहत आईआरएस छिड़काव लोगों के घरों के अंदर तक किए जाने हैं, लेकिन गांव हो या शहर में रहने वाले लोग अपने घर के बाहर और नालियों में आईआरएस का स्प्रे करा रहे हैं. ऐसे में मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम का उद्देश्य कैसे पूरा होगा. स्वास्थ्य कर्मी हों या विभाग के अधिकारी, लोगों से अपने अपने घरों के अंदर आईआरएस का छिड़काव कराने की अपील जरूर करते हैं, लेकिन लोग उनकी बातों को तवज्जों ही नहीं दे रहे.
592 गांव में आईआरएस का छिड़काव
जिले के लिट़्टीपाड़ा और अमड़ापाड़ा प्रखंड के अधिकांश गांव पहाड़ों और जंगलों से घिरे हुए हैं, जबकि पाकुड़ प्रखंड के अधिकांश गांव बारिश के मौसम में जलमग्न हो जाते हैं. इसी का फायदा मच्छरों को फैलाव करने में होता है. साल 2019 में कालाजार के सर्वाधिक 53 मामले महेशपुर प्रखंड और 46 मामले अमलापाड़ा में मिले थे. जबकि मलेरिया के सर्वाधिक 249 मामले लिट्टीपाड़ा प्रखंड में पाए गए थे. स्वास्थ्य विभाग की ओर से मलेरिया और कालाजार की रोकथाम को लेकर जिले में चिंहित 592 गांव में आईआरएस छिड़काव कराया गया है. फॉगिंग मशीन नहीं रहने के कारण इन गांवों में फॉगिंग नहीं करायी जा सकी. मलेरिया, कालाजार की रोकथाम को लेकर संवेदनहीनता का अंदाजा इसी से लग जा सकता है कि प्रभावित गांव में रह रहे लोगों को 45 हजार 836 मेडिकेटेड मच्छरदानी उपलब्ध कराने के लिए से स्वास्थ्य विभाग की ओर से आपूर्ति की गयी, लेकिन इसका वितरण अब तक शुरू नहीं हो पाया है.
मलेरिया मुक्त बनाने में सरकार फेल
एक तरफ कोरोना तो दूसरी तरफ बारिश के बीच मच्छरों के प्रकोप से लोग परेशान हैं. आज भी लिट्टीपाड़ा प्रखंड के पथरिया, छोटा सूरजबेड़ा, अनिभिटा, बोहरा, बड़ाजारा, पुसरभिटा, छोटा पोखरिया, बड़ा मालगोड़ा सहित दर्जनों गांव हैं, जहां मलेरिया अपने पांव पसारे हुए है. प्रभावित गांव में लोगों का रक्त संग्रह किया जा रहा है. मलेरिया से ग्रसित मरीजों को स्वास्थ्य लाभ भी मिल रहा है, लेकिन पूरी तरह से गांव को मलेरिया मुक्त बनाने में सरकार को सफलता हाथ नहीं लग रही. आखिर लगे भी कैसे क्योंकि सरकार ने एक तरह से यह मान लिया है कि मलेरिया खत्म नहीं होगा, इस पर नियंत्रण लगाया जा सकता है. इसलिए तो मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं.
जल्द होगा मच्छरदानियों का वितरण
हालांकि, सिविल सर्जन रामदेव पासवान का दावा है कि जिले के सभी चिन्हित 592 गांव में आईआरएस का छिड़काव करा दिया गया, जबकि मेडिकेटेड मच्छरदानी भी विभाग की ओर से उपलब्ध कराई गई है. लिट्टीपाड़ा और अमड़ापाड़ा प्रखंड में जल्द वितरण कराया जाएगा. सिविल सर्जन का कहना है कि बारिश के मौसम में मलेरिया, कालाजार के रोगी बढ़े नहीं इसके लिए पूरी तैयारी विभाग ने पहले से कर रखी है.