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ढाई सौ साल से हो रही है मां सिंहवाहिनी की पूजा, यहां दी जाती है चाल कुम्हड़ा की बलि - पाकुड़ में चाल कुम्हड़ा की बलि

पाकुड़ के सिंहवाहिनी मंदिर में पिछले ढाई सौ साल से मां सिंहवाहिनी की पूजा की जा रही है. 1947 के पहले यहां तांत्रिक विधि से पूजा होती थी लेकिन फिर रोक लगा दी गई. यहां नवमी को चाल कुम्हड़ा की बलि दी जाती है.

maa Singhwahini
पाकुड़ में दुर्गापूजा
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Published : Oct 14, 2021, 3:24 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 3:44 PM IST

पाकुड़: शारदीय नवरात्रि की महानवमी को मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा पाकुड़ जिले में धूमधाम से की जा रही है. जिला मुख्यालय के राजापाड़ा स्थित सिंहवाहिनी मंदिर में मां सिंहवाहिनी की पूजा अर्चना भक्तिभाव से की गई. पूजा अर्चना के बाद मंदिर परिसर में चाल कुम्हड़ा की बलि दी गई.

यह भी पढ़ें: ऐसे दुर्गापूजा मनाती हैं दक्षिण भारतीय महिलाएं, आदिकाल से चली आ रही परंपरा

हर मुराद पूरी करती है मां

राज परिवार की मीरा प्रवीण सिंह ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण राजा पृथ्वी चंद्र शाही ने कराया था और तब से लेकर आज तक यहां मां सिंहवाहिनी की पूजा अर्चना की जाती है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से मां से प्रार्थना करता है उसकी मुरादें पूरी होती है. राज परिवार के अमित पांडेय का कहना है कि इस मंदिर में वैदिक मत से पूजा की जाती है इसलिए यहां चाल कुम्हड़ा की बलि दी जाती है.

देखें पूरी खबर

1947 से पहले तांत्रिक विधि से होती थी पूजा-अर्चना

वर्षों से यहां पूजा कर रहे पुरोहित ने बताया कि राजा पृथ्वी चंद्र शाही के काल मे तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना शुरू हुई थी लेकिन वर्ष 1947 में रानी ज्योतिर्मयी देवी ने कुछ कारणों से इस मंदिर में तांत्रिक विधि की पूजा पर रोक लगा दी और वैदिक मत से पूजा अर्चना शुरू करायी. तब से लेकर आज तक इसी विधि से पूजा अर्चना की जा रही है और आगे भी इसी विधि पूजा होगी. सिंहवाहिनी मंदिर में पूजा अर्चना करने और बलि देखने के लिए दूर दराज से सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं.

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यहां चाल कुम्हड़ा की बलि दी जाती है.

पाकुड़: शारदीय नवरात्रि की महानवमी को मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा पाकुड़ जिले में धूमधाम से की जा रही है. जिला मुख्यालय के राजापाड़ा स्थित सिंहवाहिनी मंदिर में मां सिंहवाहिनी की पूजा अर्चना भक्तिभाव से की गई. पूजा अर्चना के बाद मंदिर परिसर में चाल कुम्हड़ा की बलि दी गई.

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हर मुराद पूरी करती है मां

राज परिवार की मीरा प्रवीण सिंह ने बताया कि इस मंदिर का निर्माण राजा पृथ्वी चंद्र शाही ने कराया था और तब से लेकर आज तक यहां मां सिंहवाहिनी की पूजा अर्चना की जाती है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से मां से प्रार्थना करता है उसकी मुरादें पूरी होती है. राज परिवार के अमित पांडेय का कहना है कि इस मंदिर में वैदिक मत से पूजा की जाती है इसलिए यहां चाल कुम्हड़ा की बलि दी जाती है.

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1947 से पहले तांत्रिक विधि से होती थी पूजा-अर्चना

वर्षों से यहां पूजा कर रहे पुरोहित ने बताया कि राजा पृथ्वी चंद्र शाही के काल मे तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना शुरू हुई थी लेकिन वर्ष 1947 में रानी ज्योतिर्मयी देवी ने कुछ कारणों से इस मंदिर में तांत्रिक विधि की पूजा पर रोक लगा दी और वैदिक मत से पूजा अर्चना शुरू करायी. तब से लेकर आज तक इसी विधि से पूजा अर्चना की जा रही है और आगे भी इसी विधि पूजा होगी. सिंहवाहिनी मंदिर में पूजा अर्चना करने और बलि देखने के लिए दूर दराज से सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंचते हैं.

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यहां चाल कुम्हड़ा की बलि दी जाती है.
Last Updated : Oct 14, 2021, 3:44 PM IST
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