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20 वर्ष के झारखंड में नहीं बदली गांवों की तस्वीर, बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे ग्रामीण - झारखंड के दुर्गम भागों में सुविधाएं नहीं

आज झारखंड का 20वां स्थापना दिवस है. स्थापना के एक लंबे अरसे के बाद भी राज्य की जमीनी हकीकत में पूरी तरह बदलाव नहीं हो पाया है. खासकर ग्रामीण भागों की आज भी हालात नहीं सुधरे हैं. अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी मूलभूत सुविधाएं पूरी तरह से नदारद हैं.

नहीं बदली गांवों की तस्वीर
नहीं बदली गांवों की तस्वीर
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Published : Nov 15, 2020, 6:03 AM IST

पाकुड़: आज झारखंड राज्य का 20 वां स्थापना है. इन 20 वर्षों में राज्य में अनेक उतार चढ़ाव देखे गए, यदि विकास की दृष्टि से देखा जाए तो आज भी हालात जस के तस है. स्थिति ये है कि लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

झारखंड में गांवों की हालत खस्ता

आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में जनता को दैनिक सामानों की पूर्ति के लिए कई किमी. का सफर तय करना पड़ता है. राज्य के दुर्गम भागों में स्थित गांवों की हालत अत्यंत दयनीय है. जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले आदिवासी एवं आदिम जनजाति पहाड़िया ग्रामीण बेबस और लाचार है.

झारखंड राज्य की राजधानी रांची जिले के एक छोटे से गांव उलीहातू गांव में जन्मे शहीद बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर झारखंड राज्य का स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष हम सभी झारखंडवासी मनाते हैं.

इन्हें सरकार हो शासन में बैठे लोग हो या राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों से जुड़े नेता व कार्यकर्ता इसलिए याद करते हैं कि इन्होंने अंग्रेजी शासन और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया बल्कि समाज की चेतना को जागृत करने और शोषण से मुक्ति दिलाने के साथ साथ समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए उलगुलान जिसे हिंदी में हम महान हलचल कहते हैं पैदा करने का काम किया.

आज राज्य के इस महान सपूत को हम प्रत्येक वर्ष खासकर झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 15 नवंबर को न केवल याद करते हैं बल्कि इनके आदर्शों और सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हैं.

इस आश और विश्वास के साथ कि अपने आदिवासी मूलवासी को समस्याओं से मुक्ति मिले और वह भी शहरी लोगों की तरह जीवन यापन कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है.

नहीं पहुंची सरकारी योजनाएं

ऐसा क्यों नहीं हुआ है आदिवासी और मूलवासी के सपने पूरे क्यों नहीं हुए यह आज भी पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले इन लोगों के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है.

ऐसे में यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि अलग राज्य बनाने और अब तक सरकार चलाने वाले लोगों ने ईमानदारी पूर्वक शहीद बिरसा मुंडा के आदर्शों को अपने में आत्मसात करने के साथ साथ अपनी जवाबदेही सही तरीके से नहीं निभायी.

यदि शासन और प्रशासन में बैठे लोगों ने ईमानदारीपूर्वक प्रयास किया होता तो पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले आदिवासी और मूलवासी लोग बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं के लिए नहीं तरसते.

लिट्टीपाड़ा प्रखंड में हालात बद से बदतर

केन्द्र व राज्य सरकारों ने झारखंड राज्य के अंतिम छोर में बसे पाकुड़ जिले के आदिवासियों और मूलवासियों की दशा एवं दिशा बदलने के लिए अनेकों योजनाएं लागू की और करोड़ों रुपए खर्च भी किए लेकिन दर्जनों ऐसे गांव है जहां आज भी लोगों को बुनियादी सुविधाओं को पूरी तरह से अभाव है.

एक गांव से दूसरे गांव एवं गांव से प्रखंड मुख्यालय आने और जाने के साथ पीने का शुद्ध पानी और सरकार की विकास व कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है.

वन बंधु योजना ने दम तोड़ा

पाकुड़ जिले में ही जनजातीय बहुल लिट्टीपाड़ा प्रखंड है. शैक्षणिक रूप से पिछड़े इस प्रखंड में रहने वाले लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पूर्व से चल रही योजनाओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन बंधु कल्याण योजना की घोषणा की देश के 12 वें और झारखंड के एकमात्र सबसे पिछड़े प्रखंड को वन बंधु योजना के तहत चयनित किया गया और करोड़ों रुपए की राशि मुहैया करायी गयी लेकिन इस योजना ने भी दम तोड़ दिया.

क्योंकि इसे क्रियान्वयन करने वाले लोगों ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी. इसी प्रखंड ने एचगो, मालीपाड़ा, तेतुलकुड़िया, बड़ा एवं छोटा पकटोटि, छतनी मासपाड़ा, कामोगोरा, सिमलढाब, बेहरा, पहाड़िया टोला, आमझाड़ी, पहाड़जोड़ी, चापा, रोलडीह आदि दर्जनों गांव हैं, जहां रह रहे लोगों को चलने लायक सड़क, शुद्ध पीने का पानी, स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सा सुविधा शासन और प्रशासन मुहैया नहीं करा पाया है.

पगडंडियों के भरोसे आवागमन

इन गांवों के लोगों को रोज पगडंडियों नदी नालों से होकर गुजरना पड़ रहा है. कई बार दुपहिया वाहन से आवागमन करने के दौरान दुर्घटना का शिकार भी लोग हो रहे हैं. शुद्ध पीने का पानी की व्यवस्था इनके लिए सपना बन गया है.

नदी नालों से बह रहे पानी के अलावा झरनों का पानी ग्रामीणों के अलावे जानवर भी एक साथ पी रहे हैं. क्योंकि पेयजल व्यवस्था सरकार बनने के 20 साल बीतने के बाद भी बहाल नहीं हो पायी है. स्वास्थ्य सुविधा का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं बड़ा मालीपाड़ा का 4 वर्षीय जोरी पहाड़िया कुपोषित है जिसे भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है.

यह भी पढ़ेंः झारखंड के सरकारी स्कूलों में पेयजल का अभाव, ऐसे में कैसे होगा बच्चों का विकास

सरकार की विकास व कल्याणकारी योजनाएं इस क्षेत्र के कई गांव में अधूरी पड़ी हुई है क्योंकि इन्हें पूरा कराने के लिए समान यथा ईट, बालू, सीमेंट नहीं पहुंचाया जा सकता आखिर सड़कें जो नहीं बन पायी हैं.

शासन और प्रशासन में बैठे लोग भले ही यह दावा करें कि राज्य में रहने वाले सभी लोगों का विकास हो रहा है लेकिन लिट्टीपाड़ा प्रखंड के पहाड़ों पर रहने वाले लोगों की दशा और दुर्दशा इन के दावों की पोल खोल रहा है.

बहरहाल शासन और प्रशासन में बैठे लोगों की नींद कब खुलती है यह तो आने वाला वक्त तय करेगा. हम अलग राज्य की स्थापना दिवस मनाने के लिए तैयार जरूर है लेकिन जंगलों और पहाड़ों पर रहने वाले आदिम जनजाति पहाड़िया और आदिवासी आज भी सुविधाओं के लिए बेबस और लाचार है.

पाकुड़: आज झारखंड राज्य का 20 वां स्थापना है. इन 20 वर्षों में राज्य में अनेक उतार चढ़ाव देखे गए, यदि विकास की दृष्टि से देखा जाए तो आज भी हालात जस के तस है. स्थिति ये है कि लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

झारखंड में गांवों की हालत खस्ता

आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में जनता को दैनिक सामानों की पूर्ति के लिए कई किमी. का सफर तय करना पड़ता है. राज्य के दुर्गम भागों में स्थित गांवों की हालत अत्यंत दयनीय है. जंगलों और पहाड़ों में रहने वाले आदिवासी एवं आदिम जनजाति पहाड़िया ग्रामीण बेबस और लाचार है.

झारखंड राज्य की राजधानी रांची जिले के एक छोटे से गांव उलीहातू गांव में जन्मे शहीद बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर झारखंड राज्य का स्थापना दिवस प्रत्येक वर्ष हम सभी झारखंडवासी मनाते हैं.

इन्हें सरकार हो शासन में बैठे लोग हो या राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों से जुड़े नेता व कार्यकर्ता इसलिए याद करते हैं कि इन्होंने अंग्रेजी शासन और जमींदारों के खिलाफ विद्रोह किया बल्कि समाज की चेतना को जागृत करने और शोषण से मुक्ति दिलाने के साथ साथ समाज में फैली कुरीतियों को खत्म करने के लिए उलगुलान जिसे हिंदी में हम महान हलचल कहते हैं पैदा करने का काम किया.

आज राज्य के इस महान सपूत को हम प्रत्येक वर्ष खासकर झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 15 नवंबर को न केवल याद करते हैं बल्कि इनके आदर्शों और सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हैं.

इस आश और विश्वास के साथ कि अपने आदिवासी मूलवासी को समस्याओं से मुक्ति मिले और वह भी शहरी लोगों की तरह जीवन यापन कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है.

नहीं पहुंची सरकारी योजनाएं

ऐसा क्यों नहीं हुआ है आदिवासी और मूलवासी के सपने पूरे क्यों नहीं हुए यह आज भी पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले इन लोगों के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है.

ऐसे में यह सवाल खड़ा होना लाजमी है कि अलग राज्य बनाने और अब तक सरकार चलाने वाले लोगों ने ईमानदारी पूर्वक शहीद बिरसा मुंडा के आदर्शों को अपने में आत्मसात करने के साथ साथ अपनी जवाबदेही सही तरीके से नहीं निभायी.

यदि शासन और प्रशासन में बैठे लोगों ने ईमानदारीपूर्वक प्रयास किया होता तो पहाड़ों और जंगलों में रहने वाले आदिवासी और मूलवासी लोग बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं के लिए नहीं तरसते.

लिट्टीपाड़ा प्रखंड में हालात बद से बदतर

केन्द्र व राज्य सरकारों ने झारखंड राज्य के अंतिम छोर में बसे पाकुड़ जिले के आदिवासियों और मूलवासियों की दशा एवं दिशा बदलने के लिए अनेकों योजनाएं लागू की और करोड़ों रुपए खर्च भी किए लेकिन दर्जनों ऐसे गांव है जहां आज भी लोगों को बुनियादी सुविधाओं को पूरी तरह से अभाव है.

एक गांव से दूसरे गांव एवं गांव से प्रखंड मुख्यालय आने और जाने के साथ पीने का शुद्ध पानी और सरकार की विकास व कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है.

वन बंधु योजना ने दम तोड़ा

पाकुड़ जिले में ही जनजातीय बहुल लिट्टीपाड़ा प्रखंड है. शैक्षणिक रूप से पिछड़े इस प्रखंड में रहने वाले लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पूर्व से चल रही योजनाओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वन बंधु कल्याण योजना की घोषणा की देश के 12 वें और झारखंड के एकमात्र सबसे पिछड़े प्रखंड को वन बंधु योजना के तहत चयनित किया गया और करोड़ों रुपए की राशि मुहैया करायी गयी लेकिन इस योजना ने भी दम तोड़ दिया.

क्योंकि इसे क्रियान्वयन करने वाले लोगों ने कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखायी. इसी प्रखंड ने एचगो, मालीपाड़ा, तेतुलकुड़िया, बड़ा एवं छोटा पकटोटि, छतनी मासपाड़ा, कामोगोरा, सिमलढाब, बेहरा, पहाड़िया टोला, आमझाड़ी, पहाड़जोड़ी, चापा, रोलडीह आदि दर्जनों गांव हैं, जहां रह रहे लोगों को चलने लायक सड़क, शुद्ध पीने का पानी, स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सा सुविधा शासन और प्रशासन मुहैया नहीं करा पाया है.

पगडंडियों के भरोसे आवागमन

इन गांवों के लोगों को रोज पगडंडियों नदी नालों से होकर गुजरना पड़ रहा है. कई बार दुपहिया वाहन से आवागमन करने के दौरान दुर्घटना का शिकार भी लोग हो रहे हैं. शुद्ध पीने का पानी की व्यवस्था इनके लिए सपना बन गया है.

नदी नालों से बह रहे पानी के अलावा झरनों का पानी ग्रामीणों के अलावे जानवर भी एक साथ पी रहे हैं. क्योंकि पेयजल व्यवस्था सरकार बनने के 20 साल बीतने के बाद भी बहाल नहीं हो पायी है. स्वास्थ्य सुविधा का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं बड़ा मालीपाड़ा का 4 वर्षीय जोरी पहाड़िया कुपोषित है जिसे भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है.

यह भी पढ़ेंः झारखंड के सरकारी स्कूलों में पेयजल का अभाव, ऐसे में कैसे होगा बच्चों का विकास

सरकार की विकास व कल्याणकारी योजनाएं इस क्षेत्र के कई गांव में अधूरी पड़ी हुई है क्योंकि इन्हें पूरा कराने के लिए समान यथा ईट, बालू, सीमेंट नहीं पहुंचाया जा सकता आखिर सड़कें जो नहीं बन पायी हैं.

शासन और प्रशासन में बैठे लोग भले ही यह दावा करें कि राज्य में रहने वाले सभी लोगों का विकास हो रहा है लेकिन लिट्टीपाड़ा प्रखंड के पहाड़ों पर रहने वाले लोगों की दशा और दुर्दशा इन के दावों की पोल खोल रहा है.

बहरहाल शासन और प्रशासन में बैठे लोगों की नींद कब खुलती है यह तो आने वाला वक्त तय करेगा. हम अलग राज्य की स्थापना दिवस मनाने के लिए तैयार जरूर है लेकिन जंगलों और पहाड़ों पर रहने वाले आदिम जनजाति पहाड़िया और आदिवासी आज भी सुविधाओं के लिए बेबस और लाचार है.

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