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प्रशासन की फेल हुई जांच की गाड़ी, बेखबर बैठे हैं जनप्रतिनिधि और अधिकारी

झारखंड के पाकुड़ जिले का एक पुल प्रशासन और सरकार के विकास के दावे को फेल साबित कर रहा है. पाकुड़ में घाटचोरा चंडालमारा पुल सितंबर 2019 में नदी के तेज बहाव के कारण बह गया था, लेकिन दूख की बात ये है कि अब तक इसे लेकर ना तो सरकार गंभीर दिख रही है और ना ही प्रशासन. पढिए स्पेशल रिपोर्ट...

Administration investigation failed in Pakur
व्यवस्था पर ठेकेदार भारी
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Published : Jun 15, 2020, 7:31 PM IST

पाकुड़: झारखंड में एक दावे की खूब चर्चा है कि हेमंत है तो हिम्मत है लेकिन इस चर्चा को पाकुड़ जिले में लोग झूठला रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रशासन की फेल हो गयी है जांच की गाड़ी. क्योंकि व्यवस्था पर है ठेकेदार भारी. लोगों के दावे और 'हेमंत है तो हिम्मत है' के नारे को पाकुड़ जिले में एक ठेकेदार ने ऐसा आइना दिखाया है कि शासन और प्रशासन में बैठे लोग अपने काला चेहरा देखने से बच रहे हैं.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

हम बात कर रहे हैं 9 महीने पहले करोड़ों की राशि से बनाए गए घाटचोरा चंडालमारा पुल के धंसने की. पुल के संवेदक मेसर्स जमाल कंस्ट्रक्शन की रसूख जिले से लेकर राजधानी तक इतनी है कि इस पुल के घटिया निर्माण और लापरवाही को लेकर योजना से जुड़े कनीय, सहायक और कार्यपालक अभियंताओं के विरुद्ध प्रपत्र गठित कर दिया गया है, लेकिन ठेकेदार के खिलाफ कुछ कार्रवाई नहीं की गयी.

कार्रवाई नहीं होने पर बताया जा रहा है कि ठेकेदार 'हेमंत है तो हिम्मत है' का झंडेवदार है. कार्यपालक अभियंता ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल अशोक कुमार से पुल के निर्माण को लेकर और दोषी ठेकेदार और अभियंताओं के बारे में जानकारी ली गयी तो उन्होंने जो बताया कि यह न केवल आश्चर्यजनक बल्कि चौंकाने वाला है. बकौल कार्यपालक अभियंता अशोक कुमार के मुताबिक अभियंताओं के खिलाफ प्रपत्र गठित करने के आदेश मिले थे और कार्रवाई की गयी है.

कार्यपालक अभियंता अशोक कुमार

सरकार के मुंह पर तामाचा!

उन्होंने कहा कि ठेकेदार मेसर्स जमाल कंस्ट्रक्शन ने पुल के पुन: निर्माण अपने निजी खर्च पर कराए जाने के लिए शपथ पत्र दिया है इस वजह से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. यह पुल पूर्व सरकार और मौजूदा हेमंत सरकार की पारदर्शी और जनहित में काम करने के दावा के मुंह पर तमाचा है. ऐसा इसलिए कि यदि सरकार चाहती तो 9 महीने में ध्वस्त घाटचोरा चंडालमारा पुल का निर्माण कार्य शुरू हो सकती थी.

Administration investigation failed in Pakur
लकड़ी की पुलिया पार करते ग्रामीण

ये भी पढ़ें- 1761 पहुंची झारखंड में कोरोना मरीजों की संख्या, 1451 प्रवासी मजदूर मिले हैं संक्रमित

अगर सरकार चाहती तो अभियंता और संवेदक सलाखों के पीछे होते और 9 महीने से जान जोखिम में डालकर नदी पार करने वाले हजारों लोग परेशान नहीं होते. यह सब उस राज्य में हो रहा है जहां की सत्ता के कार्यकर्ता सोशल मीडिया के अलावा चौक-चौराहे पर यह दावा करते हैं कि 'हेमंत है तो हिम्मत है'. बता दे कि वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना के तहत महेशपुर प्रखंड के बांसलोई नदी पर घाटचोरा चंडालमारा पुल का निर्माण 5.98 करोड़ की राशि से मेसर्स जमाल कंस्ट्रक्शन ने किया था.

Administration investigation failed in Pakur
ग्रामीण

योजना को पूरा कराने में विभाग के कार्यपालक अभियंता के रूप में उपेंद्र पाठक, लेवा मींज, सहायक अभियंता परशुराम सत्यवादी, राजकुमार भारती, कनीय अभियंता मदन मोहन सिंह और परमानंद साह शामिल थे. बीते 2019 के सितंबर में बांसलोई नदी में जलस्तर बढ़ गया और करोड़ों का यह पुल का तीन पिलर नदी में बह गया. तब से लेकर आज तक महेशपुर प्रखंड के रोलाग्राम, तेलियापोखर, देवीनगर, घाटचोरा, कैराछत्तर, बासकेंद्री चंडालमारा, पोखरिया, जुगीडीह, सीमलढाब और लौगांव सहित दर्जनों गांवों के हजारों लोग जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं.

Administration investigation failed in Pakur
टूटा पुल और उसके बाद ग्रामीणों की बनाई गई पुलिया

ये भी पढ़ें- CM का पड़ोसी बनना पूर्व आईएएस को पड़ा महंगा, हमेशा चर्चा में रहता है कांके रोड का यह बंगला

यह वही इलाका है जहां के आदिवासी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है, और इनकी समस्याओं को दूर करने में स्थानीय विधायक स्टीफन मरांडी को सरकार ने 20 सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का अध्यक्ष बनाया है. बताते चलें कि राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम भी इस पुल को लेकर कोई राहत दिलाने का काम नहीं किया है.

पाकुड़: झारखंड में एक दावे की खूब चर्चा है कि हेमंत है तो हिम्मत है लेकिन इस चर्चा को पाकुड़ जिले में लोग झूठला रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रशासन की फेल हो गयी है जांच की गाड़ी. क्योंकि व्यवस्था पर है ठेकेदार भारी. लोगों के दावे और 'हेमंत है तो हिम्मत है' के नारे को पाकुड़ जिले में एक ठेकेदार ने ऐसा आइना दिखाया है कि शासन और प्रशासन में बैठे लोग अपने काला चेहरा देखने से बच रहे हैं.

देखिए स्पेशल रिपोर्ट

हम बात कर रहे हैं 9 महीने पहले करोड़ों की राशि से बनाए गए घाटचोरा चंडालमारा पुल के धंसने की. पुल के संवेदक मेसर्स जमाल कंस्ट्रक्शन की रसूख जिले से लेकर राजधानी तक इतनी है कि इस पुल के घटिया निर्माण और लापरवाही को लेकर योजना से जुड़े कनीय, सहायक और कार्यपालक अभियंताओं के विरुद्ध प्रपत्र गठित कर दिया गया है, लेकिन ठेकेदार के खिलाफ कुछ कार्रवाई नहीं की गयी.

कार्रवाई नहीं होने पर बताया जा रहा है कि ठेकेदार 'हेमंत है तो हिम्मत है' का झंडेवदार है. कार्यपालक अभियंता ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल अशोक कुमार से पुल के निर्माण को लेकर और दोषी ठेकेदार और अभियंताओं के बारे में जानकारी ली गयी तो उन्होंने जो बताया कि यह न केवल आश्चर्यजनक बल्कि चौंकाने वाला है. बकौल कार्यपालक अभियंता अशोक कुमार के मुताबिक अभियंताओं के खिलाफ प्रपत्र गठित करने के आदेश मिले थे और कार्रवाई की गयी है.

कार्यपालक अभियंता अशोक कुमार

सरकार के मुंह पर तामाचा!

उन्होंने कहा कि ठेकेदार मेसर्स जमाल कंस्ट्रक्शन ने पुल के पुन: निर्माण अपने निजी खर्च पर कराए जाने के लिए शपथ पत्र दिया है इस वजह से उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती. यह पुल पूर्व सरकार और मौजूदा हेमंत सरकार की पारदर्शी और जनहित में काम करने के दावा के मुंह पर तमाचा है. ऐसा इसलिए कि यदि सरकार चाहती तो 9 महीने में ध्वस्त घाटचोरा चंडालमारा पुल का निर्माण कार्य शुरू हो सकती थी.

Administration investigation failed in Pakur
लकड़ी की पुलिया पार करते ग्रामीण

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अगर सरकार चाहती तो अभियंता और संवेदक सलाखों के पीछे होते और 9 महीने से जान जोखिम में डालकर नदी पार करने वाले हजारों लोग परेशान नहीं होते. यह सब उस राज्य में हो रहा है जहां की सत्ता के कार्यकर्ता सोशल मीडिया के अलावा चौक-चौराहे पर यह दावा करते हैं कि 'हेमंत है तो हिम्मत है'. बता दे कि वर्ष 2015 में मुख्यमंत्री ग्राम सेतु योजना के तहत महेशपुर प्रखंड के बांसलोई नदी पर घाटचोरा चंडालमारा पुल का निर्माण 5.98 करोड़ की राशि से मेसर्स जमाल कंस्ट्रक्शन ने किया था.

Administration investigation failed in Pakur
ग्रामीण

योजना को पूरा कराने में विभाग के कार्यपालक अभियंता के रूप में उपेंद्र पाठक, लेवा मींज, सहायक अभियंता परशुराम सत्यवादी, राजकुमार भारती, कनीय अभियंता मदन मोहन सिंह और परमानंद साह शामिल थे. बीते 2019 के सितंबर में बांसलोई नदी में जलस्तर बढ़ गया और करोड़ों का यह पुल का तीन पिलर नदी में बह गया. तब से लेकर आज तक महेशपुर प्रखंड के रोलाग्राम, तेलियापोखर, देवीनगर, घाटचोरा, कैराछत्तर, बासकेंद्री चंडालमारा, पोखरिया, जुगीडीह, सीमलढाब और लौगांव सहित दर्जनों गांवों के हजारों लोग जान जोखिम में डालकर नदी पार कर रहे हैं.

Administration investigation failed in Pakur
टूटा पुल और उसके बाद ग्रामीणों की बनाई गई पुलिया

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यह वही इलाका है जहां के आदिवासी आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है, और इनकी समस्याओं को दूर करने में स्थानीय विधायक स्टीफन मरांडी को सरकार ने 20 सूत्री कार्यक्रम क्रियान्वयन समिति का अध्यक्ष बनाया है. बताते चलें कि राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम भी इस पुल को लेकर कोई राहत दिलाने का काम नहीं किया है.

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