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लोहरदगा: कानून से दो-दो हाथ कर रही हैं नारियां, पेश कर रही महिला सशक्तिकरण का बेहतर उदाहरण

आज अपने समाज में नारी के स्तर को उठाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरत है महिला सशक्तिकरण की. लोहरदगा में महिला अधिवक्ताओं की बात ही निराली है. अपने काम के दम पर महिलाएं अपनी पहचान बना रही हैं.

women empowerment presenting by women advocates in lohardaga
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Published : Mar 6, 2021, 1:13 PM IST

Updated : Mar 6, 2021, 1:25 PM IST

लोहरदगा: निसंदेह, सहजता, लक्ष्य और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश लिए हर एक दिन भिन्न-भिन्न भूमिकाएं जीते हुए महिलाएं किसी भी समाज का स्तंभ बन रही हैं. हमारे आसपास महिलाएं, बेटियां, संवेदनशील माताएं, सक्षम सहयोगी और अन्य भूमिकाओं को बड़ी ही कुशलता के साथ निभा रही हैं. हालांकि पेशेवर और व्यक्तिगत ऊंचाइयों को प्राप्त करने में महिलाओं को आज भी काफी ज्यादा परेशानी आती है. इसके पीछे वजह है कि महिलाओं को वह मौका नहीं दिया जाता कि वह अपने आप को साबित कर सकें, लेकिन आज लोहरदगा जैसे छोटे से जिले में कानून से दो-दो हाथ करती हुई महिलाओं को देखकर कोई भी कह उठता है कि महिला सशक्तिकरण का इससे बेहतर उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता.

देखें पूरी खबर

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हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ कोर्ट में करती हैं बहस

व्यवहार न्यायालय लोहरदगा में यूं तो अधिवक्ताओं की कमी नहीं है लेकिन बात जब किसी महिला के केस को लेकर कोर्ट में बहस करने, उसकी पैरवी करने की आ जाती है तो सबसे पहले लोग किसी महिला अधिवक्ता को ही चुनना पसंद करते हैं. लोहरदगा जिले में महिला अधिवक्ताओं की संख्या बहुत अधिक नहीं है. करीब 5 से 6 के करीब महिला अधिवक्ता यहां पर अपने क्लाइंट का पक्ष रखती हैं. शलाका श्रीवास्तव, सुरीला देवी, नफीसा रहमान जैसी महिला अधिवक्ताएं जब अपने पक्ष को न्याय दिलाने को लेकर कोर्ट में बहस करती हैं, तो जरा भी यह एहसास नहीं होता कि उनकी पैरवी करने वाला व्यक्ति कौन है. वही आत्मविश्वास, कानून की वही जानकारी और अपने पक्ष को न्याय दिलाने की ललक उनमें नजर आती है.

लगातार बढ़ रही है महिला अधिवक्ताओं की संख्या

आमतौर पर इस पेशे में महिलाओं की संख्या बहुत कम होती है लेकिन लोहरदगा जिले में लगातार महिला अधिवक्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. जिस गति से महिला अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ रही है, वह आमतौर पर देखने को नहीं मिलता. यह निश्चित रूप से समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश भी देता है. महिला हिंसा, दुष्कर्म, दहेज प्रताड़ना, पारिवारिक हिंसा जैसे मामलों में महिला अधिवक्ताएं काफी बेहतर ढंग से अपना पक्ष रख पाती हैं. एक महिला के दर्द को समझ कर दूसरी महिला अधिवक्ता जब अपना पक्ष रखती है तो निश्चित रूप से वह महिला समुदाय की पैरवी कर रही होती हैं. उन्हें न्याय दिलाने की उनकी कोशिश होती है.

ये भी पढ़े- स्वर्णिमा का 'स्वर्णिम' प्रयास: खुद के पढ़ने की उम्र में जगा रही शिक्षा की अलख, पेड़ के नीचे चला रही पाठशाला

काम के दम पर बना रही है अपनी पहचान

इनकी बात ही निराली है. आंखों में तेज, शरीर में काला कोट, हाथों में अपने क्लाइंट की फाइल और कोर्ट में बेखौफ रूप से जब इन्हें लोग कानून से दो-दो हाथ करते देखते हैं तो कहते हैं वाह गजब का तेज है नारियों में. महिला अधिवक्ता के रूप में अपने पक्ष को न्याय दिलाने की ललक और आत्मविश्वास निश्चित रूप से नारी सशक्तिकरण का एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं. लोहरदगा में महिला अधिवक्ताएं अपने काम के दम पर अपनी पहचान बना रही हैं.

लोहरदगा: निसंदेह, सहजता, लक्ष्य और कुछ कर गुजरने की ख्वाहिश लिए हर एक दिन भिन्न-भिन्न भूमिकाएं जीते हुए महिलाएं किसी भी समाज का स्तंभ बन रही हैं. हमारे आसपास महिलाएं, बेटियां, संवेदनशील माताएं, सक्षम सहयोगी और अन्य भूमिकाओं को बड़ी ही कुशलता के साथ निभा रही हैं. हालांकि पेशेवर और व्यक्तिगत ऊंचाइयों को प्राप्त करने में महिलाओं को आज भी काफी ज्यादा परेशानी आती है. इसके पीछे वजह है कि महिलाओं को वह मौका नहीं दिया जाता कि वह अपने आप को साबित कर सकें, लेकिन आज लोहरदगा जैसे छोटे से जिले में कानून से दो-दो हाथ करती हुई महिलाओं को देखकर कोई भी कह उठता है कि महिला सशक्तिकरण का इससे बेहतर उदाहरण कोई हो ही नहीं सकता.

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हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ कोर्ट में करती हैं बहस

व्यवहार न्यायालय लोहरदगा में यूं तो अधिवक्ताओं की कमी नहीं है लेकिन बात जब किसी महिला के केस को लेकर कोर्ट में बहस करने, उसकी पैरवी करने की आ जाती है तो सबसे पहले लोग किसी महिला अधिवक्ता को ही चुनना पसंद करते हैं. लोहरदगा जिले में महिला अधिवक्ताओं की संख्या बहुत अधिक नहीं है. करीब 5 से 6 के करीब महिला अधिवक्ता यहां पर अपने क्लाइंट का पक्ष रखती हैं. शलाका श्रीवास्तव, सुरीला देवी, नफीसा रहमान जैसी महिला अधिवक्ताएं जब अपने पक्ष को न्याय दिलाने को लेकर कोर्ट में बहस करती हैं, तो जरा भी यह एहसास नहीं होता कि उनकी पैरवी करने वाला व्यक्ति कौन है. वही आत्मविश्वास, कानून की वही जानकारी और अपने पक्ष को न्याय दिलाने की ललक उनमें नजर आती है.

लगातार बढ़ रही है महिला अधिवक्ताओं की संख्या

आमतौर पर इस पेशे में महिलाओं की संख्या बहुत कम होती है लेकिन लोहरदगा जिले में लगातार महिला अधिवक्ताओं की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. जिस गति से महिला अधिवक्ताओं की संख्या बढ़ रही है, वह आमतौर पर देखने को नहीं मिलता. यह निश्चित रूप से समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश भी देता है. महिला हिंसा, दुष्कर्म, दहेज प्रताड़ना, पारिवारिक हिंसा जैसे मामलों में महिला अधिवक्ताएं काफी बेहतर ढंग से अपना पक्ष रख पाती हैं. एक महिला के दर्द को समझ कर दूसरी महिला अधिवक्ता जब अपना पक्ष रखती है तो निश्चित रूप से वह महिला समुदाय की पैरवी कर रही होती हैं. उन्हें न्याय दिलाने की उनकी कोशिश होती है.

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काम के दम पर बना रही है अपनी पहचान

इनकी बात ही निराली है. आंखों में तेज, शरीर में काला कोट, हाथों में अपने क्लाइंट की फाइल और कोर्ट में बेखौफ रूप से जब इन्हें लोग कानून से दो-दो हाथ करते देखते हैं तो कहते हैं वाह गजब का तेज है नारियों में. महिला अधिवक्ता के रूप में अपने पक्ष को न्याय दिलाने की ललक और आत्मविश्वास निश्चित रूप से नारी सशक्तिकरण का एक बेहतर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं. लोहरदगा में महिला अधिवक्ताएं अपने काम के दम पर अपनी पहचान बना रही हैं.

Last Updated : Mar 6, 2021, 1:25 PM IST
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