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लोहरदगा के बाजार में बिहार के तिलकुट की सौंधी खुशबू, शुगर-फ्री तिलकुट की है डिमांड - लोहरदगा समाचार

लोहरदगा में तिल की खुशबू लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है. बिहार के गया की खास तिलकुट बाजार में उपलब्ध है. बड़ी संख्या में दुकानें सजी हुई है. हर आय वर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग तिलकुट उपलब्ध है. वहीं शुगर फ्री तिलकुट भी डिमांड में है.

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शुगर फ्री तिलकुट की है डिमांड
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Published : Jan 3, 2021, 4:30 PM IST

लोहरदगा: तिलकुट की सौंधी सुगंध भला किसे पसंद नहीं है. तिलकुट का नाम आते ही मुंह में पानी आने लगता है. पूरे देश में बिहार के गया का तिलकुट प्रसिद्ध है. यही कारण है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले लोग जब बिहार के गया से होकर गुजरते हैं, तो वहां तिलकुट लेना खरीदना नहीं भूलते. झारखंड में तिलकुट का स्वाद आम तौर पर लोग मकर संक्रांति के मौके पर ही लेते हैं. यही कारण है कि बिहार के गया सहित अन्य क्षेत्रों से दर्जनों दुकानदार हर साल लोहरदगा के बाजार में तिलकुट की दुकान लगाते हैं. यहां के लोगों को बिहार के स्वाद से रूबरू कराते हैं. इस बार भी लोहरदगा शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में तिलकुट की दुकानें सज चुकी है. अब मकर संक्रांति में कुछ दिन ही शेष रह गए है. तिलकुट का बाजार अब गुलजार नजर आने लगा है.

देखें पूरी खबर

तिलकुट से सालों भर मिलता है रोजगार
शहरी क्षेत्र के पावरगंज चौक, सोमवार बाजार, बरवा टोली चौक, महावीर चौक, न्यू रोड, ईस्ट गोला रोड, मिशन चौक सहित अन्य स्थानों में तिलकुट की दुकानें सजी हुई है. यहां पर बिहार के गया के अलावा अन्य क्षेत्रों से भी दर्जन भर की संख्या में तिलकुट के दुकानदार नवंबर माह में ही पहुंच चुके हैं. तिलकुट तैयार करने को लेकर पूरे जोर-शोर से तैयारी चल रही थी. जैसे ही नया साल शुरू हुआ, तिलकुट की बिक्री भी शुरू हो गई. जिला में जनवरी के पहले पखवाड़े में तिलकुट का लाखों का कारोबार होता है. तिलकुट बनाकर इससे जुड़े हुए लोग सालों भर रोजगार भी पाते हैं. यही कारण है कि तिलकुट बनाने वाले कारीगर भी इससे जुड़े हुए हैं. हालांकि नई पीढ़ी इस काम से नहीं जुड़ पा रही है. जितनी ज्यादा मेहनत तिलकुट का स्वाद उतना ही निखर कर सामने आता है.

इसे भी पढ़ें- नक्सली से ज्यादा हाथियों के आतंक से परेशान हैं यहां के ग्रामीण, वन विभाग नहीं उठा रहा कोई ठोस कदम

एक सौ रुपये से लेकर पांच सौ रुपये प्रति किलो तक का तिलकुट
नए साल के मौके पर भी बड़ी संख्या में लोग तिलकुट खाना पसंद करते हैं. मकर संक्रांति के अगले दिन 15 जनवरी को भी काफी ज्यादा तिलकुट की बिक्री होती है. जिला के सेन्हा प्रखंड के चितरी डाडू घाघ मेला में खासतौर पर तिलकुट की बिक्री होती है. दुकानदार बताते हैं कि एक सौ रुपये से लेकर पांच सौ रुपये प्रति किलो तक का तिलकुट बाजार में उपलब्ध है. चीनी और तिल की मात्रा, तिल और गुड़ की मात्रा और तिल और खोया की मात्रा पर इनका मूल्य निर्धारित किया जाता है.


शुगर फ्री तिलकुट भी उपलब्ध
बाजार में चीनी, खोया तिल का तिलकुट उपलब्ध है. इसके अलावा खास तिलकुट के रूप में बिना चीनी वाला शुगर फ्री तिलकुट सहित अन्य तिलकुट भी बाजार में उपलब्ध हैं. बड़ी संख्या में लोग इनका स्वाद लेते हैं. समाज का हर वर्ग अपनी-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार तिलकुट का स्वाद लेना नहीं भूलता. लोहरदगा में नवंबर माह से फरवरी माह तक तिल का बाजार रहता है. तिलकुट के व्यापारी बताते हैं कि वह कच्चा तिल कानपुर से मंगाते हैं. जबकि खोया उनके अपने घर का जमा किया हुआ होता है. वह स्वाद और गुणवत्ता में कोई भी समझौता नहीं करते. ग्राहकों के लिए अलग-अलग मूल्य तय है. जिसे जो भी लेना है वह उपलब्ध हो जाता है. खोया का तिलकुट आमतौर पर आर्डर के अनुसार बनाया जाता है.

लोहरदगा: तिलकुट की सौंधी सुगंध भला किसे पसंद नहीं है. तिलकुट का नाम आते ही मुंह में पानी आने लगता है. पूरे देश में बिहार के गया का तिलकुट प्रसिद्ध है. यही कारण है कि देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले लोग जब बिहार के गया से होकर गुजरते हैं, तो वहां तिलकुट लेना खरीदना नहीं भूलते. झारखंड में तिलकुट का स्वाद आम तौर पर लोग मकर संक्रांति के मौके पर ही लेते हैं. यही कारण है कि बिहार के गया सहित अन्य क्षेत्रों से दर्जनों दुकानदार हर साल लोहरदगा के बाजार में तिलकुट की दुकान लगाते हैं. यहां के लोगों को बिहार के स्वाद से रूबरू कराते हैं. इस बार भी लोहरदगा शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में तिलकुट की दुकानें सज चुकी है. अब मकर संक्रांति में कुछ दिन ही शेष रह गए है. तिलकुट का बाजार अब गुलजार नजर आने लगा है.

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तिलकुट से सालों भर मिलता है रोजगार
शहरी क्षेत्र के पावरगंज चौक, सोमवार बाजार, बरवा टोली चौक, महावीर चौक, न्यू रोड, ईस्ट गोला रोड, मिशन चौक सहित अन्य स्थानों में तिलकुट की दुकानें सजी हुई है. यहां पर बिहार के गया के अलावा अन्य क्षेत्रों से भी दर्जन भर की संख्या में तिलकुट के दुकानदार नवंबर माह में ही पहुंच चुके हैं. तिलकुट तैयार करने को लेकर पूरे जोर-शोर से तैयारी चल रही थी. जैसे ही नया साल शुरू हुआ, तिलकुट की बिक्री भी शुरू हो गई. जिला में जनवरी के पहले पखवाड़े में तिलकुट का लाखों का कारोबार होता है. तिलकुट बनाकर इससे जुड़े हुए लोग सालों भर रोजगार भी पाते हैं. यही कारण है कि तिलकुट बनाने वाले कारीगर भी इससे जुड़े हुए हैं. हालांकि नई पीढ़ी इस काम से नहीं जुड़ पा रही है. जितनी ज्यादा मेहनत तिलकुट का स्वाद उतना ही निखर कर सामने आता है.

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एक सौ रुपये से लेकर पांच सौ रुपये प्रति किलो तक का तिलकुट
नए साल के मौके पर भी बड़ी संख्या में लोग तिलकुट खाना पसंद करते हैं. मकर संक्रांति के अगले दिन 15 जनवरी को भी काफी ज्यादा तिलकुट की बिक्री होती है. जिला के सेन्हा प्रखंड के चितरी डाडू घाघ मेला में खासतौर पर तिलकुट की बिक्री होती है. दुकानदार बताते हैं कि एक सौ रुपये से लेकर पांच सौ रुपये प्रति किलो तक का तिलकुट बाजार में उपलब्ध है. चीनी और तिल की मात्रा, तिल और गुड़ की मात्रा और तिल और खोया की मात्रा पर इनका मूल्य निर्धारित किया जाता है.


शुगर फ्री तिलकुट भी उपलब्ध
बाजार में चीनी, खोया तिल का तिलकुट उपलब्ध है. इसके अलावा खास तिलकुट के रूप में बिना चीनी वाला शुगर फ्री तिलकुट सहित अन्य तिलकुट भी बाजार में उपलब्ध हैं. बड़ी संख्या में लोग इनका स्वाद लेते हैं. समाज का हर वर्ग अपनी-अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार तिलकुट का स्वाद लेना नहीं भूलता. लोहरदगा में नवंबर माह से फरवरी माह तक तिल का बाजार रहता है. तिलकुट के व्यापारी बताते हैं कि वह कच्चा तिल कानपुर से मंगाते हैं. जबकि खोया उनके अपने घर का जमा किया हुआ होता है. वह स्वाद और गुणवत्ता में कोई भी समझौता नहीं करते. ग्राहकों के लिए अलग-अलग मूल्य तय है. जिसे जो भी लेना है वह उपलब्ध हो जाता है. खोया का तिलकुट आमतौर पर आर्डर के अनुसार बनाया जाता है.

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