लोहरदगा: जिले में ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति बदहाल ही नहीं वेंटीलेटर पर है. जिले के 74 ग्रामीण अस्पतालों में न तो डॉक्टर हैं और ना ही समुचित व्यवस्था है. यहां तक कि जिले के एक दर्जन नए अस्पताल भवनों का आज तक इस्तेमाल भी नहीं हो पाया है. 20-20 लाख रुपए की लागत से एक-एक ग्रामीण अस्पताल का निर्माण आज से 8 साल पहले कराया गया था.
इन 8 सालों में नवनिर्मित भवनों का उपयोग करने को लेकर कभी भी स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई. आज यह ग्रामीण अस्पताल दम तोड़ते नजर आ रहे हैं. ग्रामीणों को इलाज के लिए आज भी जिला अस्पताल या कहें कि सदर अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ता है. यही कारण है कि झोलाछाप डॉक्टर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में रहनुमा बने हुए हैं.
डॉक्टर के आधे से ज्यादा पद हैं रिक्त
जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली की सबसे बड़ी वजह यहां डॉक्टरों की कमी है. यहां डॉक्टरों के आधे से ज्यादा पद रिक्त पड़े हुए हैं. जिले में कुल डॉक्टरों की स्वीकृत पद 88 हैं, जबकि वर्तमान में महज 35 चिकित्सक ही कार्यरत हैं. सदर अस्पताल में स्वीकृत 33 चिकित्सकों के विपरीत महज 8 चिकित्सक ही काम कर रहे हैं. ग्रामीण अस्पतालों में डॉक्टर कभी पहुंचते ही नहीं. नर्सिंग स्टाफ की भी कमी है. ऐसे में भला ग्रामीण अस्पताल चले भी तो कैसे.
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लाखों-करोड़ों रुपए की लागत से ग्रामीण अस्पताल भवनों का निर्माण तो करा दिया गया है, लेकिन यहां न तो कभी संसाधन उपलब्ध कराए गए और ना ही नर्सिंग और मेडिकल स्टाफ. इन तमाम परिस्थितियों की वजह से ग्रामीणों को आज भी इलाज के लिए परेशान होना पड़ता है. पहाड़ी क्षेत्र से जिला अस्पताल तक लाने में कई बार मरीजों की मौत तक हो जाती है. फिर भी मजबूरी है कि सरकारी व्यवस्था पर ही निर्भर रहना है. ग्रामीण अस्पतालों के दुरुस्त रहने से कम से कम मलेरिया, स्नेक बाइट, डॉग बाइट, टाइफाइड और जौंडिस जैसी बीमारियों से लोगों की मौत तो ना होती.
व्यवस्था सवाल पूछती है कि आखिर कब तक उन्हें इसी प्रकार से वेंटिलेटर पर रहना होगा. क्या कोई ऐसी सरकार या व्यवस्था उन्हें नहीं मिलेगी, जो उन्हें इस समस्या से निजात दिला सके. जिले की साढे पांच लाख आबादी में यदि हम स्वास्थ्य व्यवस्था का आकलन करें तो 11,000 की आबादी में एक भी डॉक्टर नहीं हैं. ऐसे में कब तक स्वास्थ्य व्यवस्था इसी प्रकार से सिसकती रहेगी.