लोहरदगाः खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगाया दिया गया, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत जानकर सभी हैरान रह गए. इस गांव को देखकर सीएम हेमंत सोरेन भी चिंतित हैं. जिले को कागज और बोर्ड पर ओडीएफ घोषित कर दिया गया लेकिन यहां न तो पीने के पानी की व्यवस्था है, न ही पक्की सड़क और न ही बिजली. जिसे लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट करते हुए स्थानीय प्रशासन को गांव में समस्याओं के निराकरण और विकास को लेकर त्वरित रूप से काम करने का निर्देश दिया है.
ये है गांव की रियलिटी
ईटीवी भारत की टीम गांव की हकीकत जानने लोहरदगा पहुंची. जहां विकास की हकीकत और समस्याओं को जानने के लिए रियलिटी चेक किया. हकीकत जानकर काफी हैरानी हुई कि गांव में सिर्फ विकास का बोर्ड लगा है, यहां विकास तो कभी झांकने भी नहीं आया. लगभग 100 घरों की आबादी वाले इस गांव में तुरी समुदाय के लोग रहते हैं. बांस की कारीगरी के माध्यम से दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में यह आज भी संघर्ष करते आ रहे हैं. इसके बाद भी कई बार इन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है.
नई सरकार से है उम्मीदें
नई सरकार से यहां के लोगों को उम्मीदें तो काफी हैं, पर गांव की हालत यह बताती है कि ये इतना आसान भी नहीं है. सफर काफी लंबा है और निश्चय उतना ही कमजोर दिखाई देता है. इस गांव में लोगों के पास समस्याओं का अंबार है. जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर इस गांव में सिर्फ समस्याएं ही समस्याएं हैं. लोगों के पास सुविधाओं के नाम पर बस सपने नजर आते हैं. लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड के सलगी पंचायत का यह मसियातु गांव हर मायने में पिछड़ा हुआ दिखाई देता है.
सरकारी योजनाओं पर बिचौलिए हावी
वहीं, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो आवास मिले हैं उसमें बिचौलिए हावी हो चुके हैं. बिचौलियों ने लाभुकों के आवास को खुद के माध्यम से करा देने का भरोसा दिलाते हुए ऐसा घर बना दिया है कि उसमें रहना भी मुश्किल है. लाभुकों से पैसे की मांग की, जब लाभुकों ने पैसे नहीं दिए तो घर ऐसा बनाया कि देखकर ही शर्म आ जाए. इसके बावजूद कोई सुनने वाला नहीं है.
सड़क, बिजली और पानी से वंचित गांव
इस गांव में न तो पक्की सड़क है और न ही अन्य सुविधाएं. पानी के लिए लोगों को सालों भर परेशान रहना पड़ता है. हैंडपंप मुंह चिढ़ाते नजर आता है. शौचालय के नाम पर चंद दीवारें ही खड़ी हैं. लोगों के पास न तो रोजगार है और न ही अन्य साधन. ऐसे में हर साल गांव के कई परिवार रोजगार की तलाश में देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर जाते हैं.
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कागज पर ओडीएफ घोषित
महिलाओं के पास भी कोई स्थाई रोजगार नहीं है. परिवार पालने के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. इस गांव में सरकार की योजनाओं पर भी भ्रष्टाचार का दीमक लगा हुआ है. इस गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत साल 2012 में शौचालय बनाए गए थे. सरकारी आंकड़ों में तो कुल 76 शौचालय बनाए गए, पर आज उन शौचालय के स्थान पर महज कुछ दीवार और खंडहर ही नजर आते हैं. ग्रामीण आज भी खुले में शौच के लिए जाने को विवश हैं. ग्रामीणों की समस्याएं यथावत बनी हुई है. अंतर बस इतना है कि गांव के बाहर स्वच्छ भारत और खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगा हुआ है. यह बोर्ड ग्रामीणों को चिढ़ाता है कि तुम्हारी हकीकत यही है, तुम्हारी किस्मत भी यही है.