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जानिए क्या है इस गांव की हकीकत, आखिर क्यों चिंतित हैं सीएम हेमंत सोरेन

लोहरदगा के कुडू प्रखंड के पहाड़ की तलहटी में बसा मसियातु गांव विकास को मुंह चिढ़ा नजर आ रहा. गांव में विकास की बयार के बोर्ड लगा दिए गए लेकिन, समस्याओं को गांव से दूर तक नहीं किया गया. इसकी हकीकत जानने के बाद सीएम हेमंत सोरेन ने चिंता जताते हुए उन्होंने ट्वीट कर गांव की स्थिति को लेकर चिंता जताई है.

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Published : Jan 15, 2020, 8:48 AM IST

ODF board installed without toilet in village in lohardaga
भ्रष्टाचार है इस गांव की कहानी

लोहरदगाः खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगाया दिया गया, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत जानकर सभी हैरान रह गए. इस गांव को देखकर सीएम हेमंत सोरेन भी चिंतित हैं. जिले को कागज और बोर्ड पर ओडीएफ घोषित कर दिया गया लेकिन यहां न तो पीने के पानी की व्यवस्था है, न ही पक्की सड़क और न ही बिजली. जिसे लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट करते हुए स्थानीय प्रशासन को गांव में समस्याओं के निराकरण और विकास को लेकर त्वरित रूप से काम करने का निर्देश दिया है.

देखें पूरी खबर

ये है गांव की रियलिटी
ईटीवी भारत की टीम गांव की हकीकत जानने लोहरदगा पहुंची. जहां विकास की हकीकत और समस्याओं को जानने के लिए रियलिटी चेक किया. हकीकत जानकर काफी हैरानी हुई कि गांव में सिर्फ विकास का बोर्ड लगा है, यहां विकास तो कभी झांकने भी नहीं आया. लगभग 100 घरों की आबादी वाले इस गांव में तुरी समुदाय के लोग रहते हैं. बांस की कारीगरी के माध्यम से दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में यह आज भी संघर्ष करते आ रहे हैं. इसके बाद भी कई बार इन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है.

नई सरकार से है उम्मीदें
नई सरकार से यहां के लोगों को उम्मीदें तो काफी हैं, पर गांव की हालत यह बताती है कि ये इतना आसान भी नहीं है. सफर काफी लंबा है और निश्चय उतना ही कमजोर दिखाई देता है. इस गांव में लोगों के पास समस्याओं का अंबार है. जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर इस गांव में सिर्फ समस्याएं ही समस्याएं हैं. लोगों के पास सुविधाओं के नाम पर बस सपने नजर आते हैं. लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड के सलगी पंचायत का यह मसियातु गांव हर मायने में पिछड़ा हुआ दिखाई देता है.

सरकारी योजनाओं पर बिचौलिए हावी
वहीं, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो आवास मिले हैं उसमें बिचौलिए हावी हो चुके हैं. बिचौलियों ने लाभुकों के आवास को खुद के माध्यम से करा देने का भरोसा दिलाते हुए ऐसा घर बना दिया है कि उसमें रहना भी मुश्किल है. लाभुकों से पैसे की मांग की, जब लाभुकों ने पैसे नहीं दिए तो घर ऐसा बनाया कि देखकर ही शर्म आ जाए. इसके बावजूद कोई सुनने वाला नहीं है.

सड़क, बिजली और पानी से वंचित गांव
इस गांव में न तो पक्की सड़क है और न ही अन्य सुविधाएं. पानी के लिए लोगों को सालों भर परेशान रहना पड़ता है. हैंडपंप मुंह चिढ़ाते नजर आता है. शौचालय के नाम पर चंद दीवारें ही खड़ी हैं. लोगों के पास न तो रोजगार है और न ही अन्य साधन. ऐसे में हर साल गांव के कई परिवार रोजगार की तलाश में देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर जाते हैं.

ये भी पढ़ें-बाघिन के आतंक से परेशान ग्रामीण, डर के साए में जी रहे गांववाले

कागज पर ओडीएफ घोषित
महिलाओं के पास भी कोई स्थाई रोजगार नहीं है. परिवार पालने के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. इस गांव में सरकार की योजनाओं पर भी भ्रष्टाचार का दीमक लगा हुआ है. इस गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत साल 2012 में शौचालय बनाए गए थे. सरकारी आंकड़ों में तो कुल 76 शौचालय बनाए गए, पर आज उन शौचालय के स्थान पर महज कुछ दीवार और खंडहर ही नजर आते हैं. ग्रामीण आज भी खुले में शौच के लिए जाने को विवश हैं. ग्रामीणों की समस्याएं यथावत बनी हुई है. अंतर बस इतना है कि गांव के बाहर स्वच्छ भारत और खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगा हुआ है. यह बोर्ड ग्रामीणों को चिढ़ाता है कि तुम्हारी हकीकत यही है, तुम्हारी किस्मत भी यही है.

लोहरदगाः खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगाया दिया गया, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत जानकर सभी हैरान रह गए. इस गांव को देखकर सीएम हेमंत सोरेन भी चिंतित हैं. जिले को कागज और बोर्ड पर ओडीएफ घोषित कर दिया गया लेकिन यहां न तो पीने के पानी की व्यवस्था है, न ही पक्की सड़क और न ही बिजली. जिसे लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट करते हुए स्थानीय प्रशासन को गांव में समस्याओं के निराकरण और विकास को लेकर त्वरित रूप से काम करने का निर्देश दिया है.

देखें पूरी खबर

ये है गांव की रियलिटी
ईटीवी भारत की टीम गांव की हकीकत जानने लोहरदगा पहुंची. जहां विकास की हकीकत और समस्याओं को जानने के लिए रियलिटी चेक किया. हकीकत जानकर काफी हैरानी हुई कि गांव में सिर्फ विकास का बोर्ड लगा है, यहां विकास तो कभी झांकने भी नहीं आया. लगभग 100 घरों की आबादी वाले इस गांव में तुरी समुदाय के लोग रहते हैं. बांस की कारीगरी के माध्यम से दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में यह आज भी संघर्ष करते आ रहे हैं. इसके बाद भी कई बार इन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है.

नई सरकार से है उम्मीदें
नई सरकार से यहां के लोगों को उम्मीदें तो काफी हैं, पर गांव की हालत यह बताती है कि ये इतना आसान भी नहीं है. सफर काफी लंबा है और निश्चय उतना ही कमजोर दिखाई देता है. इस गांव में लोगों के पास समस्याओं का अंबार है. जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर इस गांव में सिर्फ समस्याएं ही समस्याएं हैं. लोगों के पास सुविधाओं के नाम पर बस सपने नजर आते हैं. लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड के सलगी पंचायत का यह मसियातु गांव हर मायने में पिछड़ा हुआ दिखाई देता है.

सरकारी योजनाओं पर बिचौलिए हावी
वहीं, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो आवास मिले हैं उसमें बिचौलिए हावी हो चुके हैं. बिचौलियों ने लाभुकों के आवास को खुद के माध्यम से करा देने का भरोसा दिलाते हुए ऐसा घर बना दिया है कि उसमें रहना भी मुश्किल है. लाभुकों से पैसे की मांग की, जब लाभुकों ने पैसे नहीं दिए तो घर ऐसा बनाया कि देखकर ही शर्म आ जाए. इसके बावजूद कोई सुनने वाला नहीं है.

सड़क, बिजली और पानी से वंचित गांव
इस गांव में न तो पक्की सड़क है और न ही अन्य सुविधाएं. पानी के लिए लोगों को सालों भर परेशान रहना पड़ता है. हैंडपंप मुंह चिढ़ाते नजर आता है. शौचालय के नाम पर चंद दीवारें ही खड़ी हैं. लोगों के पास न तो रोजगार है और न ही अन्य साधन. ऐसे में हर साल गांव के कई परिवार रोजगार की तलाश में देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर जाते हैं.

ये भी पढ़ें-बाघिन के आतंक से परेशान ग्रामीण, डर के साए में जी रहे गांववाले

कागज पर ओडीएफ घोषित
महिलाओं के पास भी कोई स्थाई रोजगार नहीं है. परिवार पालने के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. इस गांव में सरकार की योजनाओं पर भी भ्रष्टाचार का दीमक लगा हुआ है. इस गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत साल 2012 में शौचालय बनाए गए थे. सरकारी आंकड़ों में तो कुल 76 शौचालय बनाए गए, पर आज उन शौचालय के स्थान पर महज कुछ दीवार और खंडहर ही नजर आते हैं. ग्रामीण आज भी खुले में शौच के लिए जाने को विवश हैं. ग्रामीणों की समस्याएं यथावत बनी हुई है. अंतर बस इतना है कि गांव के बाहर स्वच्छ भारत और खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगा हुआ है. यह बोर्ड ग्रामीणों को चिढ़ाता है कि तुम्हारी हकीकत यही है, तुम्हारी किस्मत भी यही है.

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स्टोरी- जानिए क्या है इस गांव की हकीकत, क्यों है सीएम चिंतित
... बदहाली, बेबसी और भ्रष्टाचार है इस गांव की कहानी
एंकर- खुले में शौच मुक्त गांव का लगाया बोर्ड. आपको देखकर लग रहा होगा की इस गांव में तमाम सुविधाएं हैं. बिजली है, सड़क है, पीने के लिए पानी है और जरूरत के हर वह साधन जिससे कि आम आदमी की जरूरतें पूरी होती है. हम आपको इस गांव की हकीकत से रूबरू कराते हैं. यह वही गांव है. जिसे लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट करते हुए स्थानीय प्रशासन को गांव में समस्याओं के निराकरण और विकास को लेकर त्वरित रूप से काम करने का निर्देश दिया है. ईटीवी भारत ने इस गांव में पहुंचकर यहां विकास की हकीकत और समस्याओं को जानने के लिए रियलिटी चेक किया. हकीकत जानकर काफी हैरानी हुई कि गांव में सिर्फ विकास का बोर्ड लगा है, यहां विकास तो कभी झांकने भी नहीं आया. लगभग 100 घरों की आबादी वाले इस गांव में तुरी समुदाय के लोग रहते हैं. बांस की कारीगरी के माध्यम से दो वक्त के रोटी के जुगाड़ में यह आज भी संघर्ष करते आ रहे हैं. इसके बाद भी कई बार इन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है.

बाइट- सुरेंद्र उरांव, स्थानीय ग्रामीण

वी/ओ- नई सरकार से यहां के लोगों को उम्मीदें तो काफी है, पर गांव की हालत यह बताती है कि ये इतना आसान भी नहीं है. सफर काफी लंबा है और निश्चय उतना ही कमजोर दिखाई देता है. इस गांव में लोगों के पास समस्याओं का अंबार है. जिला मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर दूर इस गांव में सिर्फ समस्याएं और समस्याएं ही हैं. लोगों के पास सुविधाओं के नाम पर बस सपने नजर आते हैं. लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड अंतर्गत सलगी पंचायत का यह मसियातु गांव हर मायने में पिछड़ा हुआ दिखाई देता है.

बाइट- नीमा देवी, स्थानीय महिला

वी/ओ- प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो आवास मिले हैं उसमें बिचौलिए हावी हो चुके हैं. बिचौलियों ने लाभुकों के आवास को खुद के माध्यम से करा देने का भरोसा दिलाते हुए ऐसा घर बना दिया है कि उसमें रहना भी मुश्किल है. लाभुकों से पैसे की मांग की, जब लाभुकों ने पैसे नहीं दिए तो घर ऐसा बनाया कि देखकर ही शर्म आ जाए. इसके बावजूद कोई सुनने वाला नहीं है.

बाइट- राजमती देवी, स्थानीय ग्रामीण
बाइट- संपति देवी, स्थानीय ग्रामीण

वी/ओ- इस गांव तक ना तो जाने के लिए पक्की सड़क है और ना ही अन्य सुविधाएं. पानी के लिए लोगों को सालों भर परेशान रहना पड़ता है. हैंडपंप मुंह चिढ़ाते हैं. शौचालय के नाम पर चंद दीवारें ही खड़ी है. लोगों के पास ना तो रोजगार है और ना ही अन्य साधन. ऐसे में हर साल गांव के कई परिवार रोजगार की तलाश में देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर जाते हैं. महिलाओं के पास भी कोई स्थाई रोजगार नहीं है. परिवार पालने के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल है. इस गांव में सरकार की योजनाओं पर भी भ्रष्टाचार का दीमक लगा हुआ है. इस गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत साल 2012 में शौचालय बनाए गए थे. सरकारी आंकड़ों में तो कुल 76 शौचालय बनाए गए, पर आज उन शौचालय के स्थान पर महज कुछ दीवार और खंडहर ही नजर आते हैं. ग्रामीण आज भी खुले में शौच के लिए जाने को विवश हैं. ग्रामीणों की समस्याएं यथावत बनी हुई है. अंतर बस इतना है कि गांव के बाहर स्वच्छ भारत और खुले में शौच मुक्त गांव का बोर्ड लगा हुआ है. यह बोर्ड ग्रामीणों को चिढ़ाता है कि तुम्हारी हकीकत यही है, तुम्हारी किस्मत भी यही है.


बाइट-शीला कुमारी, स्थानीय ग्रामीण
बाइट-चुन्देश्वर तुरी, स्थानीय ग्रामीण

वी/ओ- गांव की हालत को जानकर हैरानी होगी कि कोई भी पिता इस गांव में अपनी बेटी ब्याहना ही नहीं नहीं चाहता. यदि किसी ने ब्याह कर भी दिया तो कोई यहां रहना नहीं चाहता. युवाओं की शादी तक नहीं होती. मजबूरी है कि बारात का वाहन ना तो आप आता है नहीं यहां से जा पाता है. सड़क है ही नहीं तो वाहन आए भी तो कैसे. किसी इमरजेंसी की हालत में मरीज को अस्पताल तक पहुंचाना किसी जंग जीतने के समान है. परेशानियां कई है, पर सुनने वाला कोई भी नहीं है. पीने के लिए पानी के जब लाले हैं तो भला विकास की उम्मीद कहां से की जा सकती है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस गांव की हालत को लेकर ट्वीट करते हुए स्थानीय प्रशासन को विकास की गति को समर्पित भाव से आगे बढ़ाने और समस्याओं के समाधान का निर्देश दिया है. अब देखना यह है कि स्थानीय प्रशासन नई सरकार की ऊर्जा के साथ कितना काम कर पाती है. यहां के लोगों के सपने पूरे होते हैं या फिर दूसरी सरकारों की तरह फिर एक बार सपने दिखाकर लोगों को ठगा जाता है.

पीटूसी-


Body:गांव की हालत को जानकर हैरानी होगी कि कोई भी पिता इस गांव में अपनी बेटी ब्याहना ही नहीं नहीं चाहता. यदि किसी ने ब्याह कर भी दिया तो कोई यहां रहना नहीं चाहता. युवाओं की शादी तक नहीं होती. मजबूरी है कि बारात का वाहन ना तो आप आता है नहीं यहां से जा पाता है. सड़क है ही नहीं तो वाहन आए भी तो कैसे. किसी इमरजेंसी की हालत में मरीज को अस्पताल तक पहुंचाना किसी जंग जीतने के समान है. परेशानियां कई है, पर सुनने वाला कोई भी नहीं है. पीने के लिए पानी के जब लाले हैं तो भला विकास की उम्मीद कहां से की जा सकती है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस गांव की हालत को लेकर ट्वीट करते हुए स्थानीय प्रशासन को विकास की गति को समर्पित भाव से आगे बढ़ाने और समस्याओं के समाधान का निर्देश दिया है. अब देखना यह है कि स्थानीय प्रशासन नई सरकार की ऊर्जा के साथ कितना काम कर पाती है. यहां के लोगों के सपने पूरे होते हैं या फिर दूसरी सरकारों की तरह फिर एक बार सपने दिखाकर लोगों को ठगा जाता है.


Conclusion:लोहरदगा जिले के कुडू प्रखंड के सलगी पंचायत अंतर्गत पहाड़ की तलहटी में बसा मसियातु गांव विकास को लेकर मुंह चिढ़ाता है. गांव की समस्याओं को लेकर राज्य के मुखिया हेमंत सोरेन भी चिंतित हैं. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर गांव की स्थिति को लेकर चिंता जताई है. ईटीवी ने गांव पहुंचकर रियलिटी चेक किया, यह हकीकत जानने की कोशिश की' यहां की स्थिति क्या है.
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