लोहरदगा: देश को आजाद हुए 75 साल से ज्यादा का समय गुजर चुका है. आज विकास के नाम पर वह तमाम चीज देश में उपलब्ध हैं, जिसके लिए कभी हम सिर्फ सपना देखा करते थे. सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों तक भी सरकार की योजनाएं पहुंची हैं. हालांकि लोहरदगा के पहाड़ी गांव में आज भी विकास की बत्ती गुल है. बिजली के पोल और तार तो पहुंचे हैं, पर सही मायने में बिजली नहीं पहुंची है. यहां कई कई दिन तक बिजली के दर्शन नहीं होते, कहीं पर मीटर लगा है पर बिजली का कनेक्शन नहीं है.
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बिजली के लिए तरसता गांवः जिले के सुदूरवर्ती नक्सल प्रभावित पेशरार प्रखंड के गांव में आज भी बिजली के नाम पर ग्रामीण धोखा के शिकार बने हुए हैं. गांव में विद्युत आपूर्ति के नाम पर खंभा और तार तो है, पर बिजली नहीं है. ज्यादातर उपभोक्ताओं को बमुश्किल कुछ घंटे ही बिजली मिल पाती है. कई लोगों के कनेक्शन भी सिर्फ कागजों में ही दिखाई देते हैं पर इनकी शिकायत करने पर कोई सुनवाई नहीं होती.
पेशरार प्रखंड के गांव में बिजली पहुंचाने का दावा तो किया गया है, फाइलों में बिजली पहुंच भी गई है. जब उपभोक्ताओं को प्रखंड के गांव में ढूंढने के लिए मीटर रीडर पहुंचते हैं तो वहां पर कोई उपभोक्ता ही नहीं मिलता और विभाग को भी इसकी खबर तक नहीं है. बिजली की बदहाल स्थिति ग्रामीणों को परेशान करती है. एक बार बिजली गई तो कई कई दिन तक लाइट के दर्शन नहीं होते.
अब तक किसी ने नहीं ली सुधः गांव के कई लोगों को सिर्फ कागज में मीटर लगा दिया गया है. बिजली के खंभे से घर तक कनेक्शन ही नहीं दिया गया है. इसके साथ ही लो-वोल्टेज की समस्या हमेशा बनी रहती है. यहां कहने के लिए ये बिजली के उपभोक्ता हैं, पर सही मायने में लोगों को विद्युत आपूर्ति उपलब्ध नहीं हो पाई है. अब जरा सोचिए कि जब बिजली का ऐसा हाल है तो वहां का विकास का स्तर क्या होगा. ग्रामीण अपने आप को ठगा महसूस करते हैं, लोगों को लगता है कि सरकार उनकी अनदेखी कर रही है. इस बाबत जिला बिजली विभाग के कार्यपालक अभियंता दीपक खलको का कहना है कि ग्रामीण अगर समस्या बताएंगे तो समस्या का समाधान किया जाएगा, उन्हें ऐसी किसी समस्या की जानकारी नहीं है.