लोहरदगाः झारखंड राज्य के अस्तित्व में आने से पहले 4 अक्टूबर 2000 को लोहरदगा के पेशरार की घाटी में नक्सलवाद ने सबसे बड़ा जख्म दिया था. तत्कालीन एसपी अजय कुमार सिंह नक्सलियों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे. यह तो लोहरदगा के लिए एक बड़ा जख्म था. इसके साथ-साथ लोहरदगा में कई और समस्याओं ने भी लोगों को काफी पीड़ा दी है. 17 मई 1983 को लोहरदगा जिला का गठन हुआ था.
लोहरदगा जिले में 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है. कृषि और पशुपालन यहां रोजगार के प्रमुख साधन हैं. भले ही बॉक्साइट नगरी के रूप में लोहरदगा जिले की पहचान है. यहां के लोगों के लिए बॉक्साइट के रूप में महज मजदूर की भूमिका ही सीमित रही है. यहां बॉक्साइट आधारित किसी कल कारखानों के स्थापित नहीं रहने की वजह से यहां के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल पाता है. यही वजह है कि रोजगार की कमी लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए एक बड़ी समस्या रही है. हाल के वर्षों में लोहरदगा जिले में इस समस्या को और भी बल मिला है. हर साल हजारों की संख्या में मजदूरों का पलायन रोजगार की तलाश में दूसरे प्रदेशों में होता है. लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र में स्वास्थ्य, पेयजल, रोजगार, कृषि सहित कई समस्याएं आज भी कायम है.
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जनता ने अपने विधायक के बारे में दी राय
ईटीवी भारत की टीम ने लोहरदगा की जनता से विधानसभा चुनाव को लेकर मतदाताओं का मिजाज जानने की कोशिश की. मतदाताओं से बात करने पर यह स्पष्ट हुआ कि यहां के लोग ऐसा विधायक चाहते हैं, जो उनकी मूलभूत जरूरतों को पूरा करे. जनता ने बताया कि विधायक उनके बीच का आदमी हो, जो उनकी समस्याओं को समझे और निराकरण करे. वर्षों से कायम समस्याओं को खत्म करने को लेकर आवाज बनने का काम करे.
मूलभूत सुविधाओं को पूरा करे विधायक
मतदाताओं ने साफ तौर पर कहा कि रोजगार के साधन सृजित करने को लेकर पहल करने वाला विधायक उन्हें जरूरी है. स्वास्थ्य, पेयजल, गंदगी से निजात दिलाने को लेकर जो काम करे, वहीं उनका विधायक होगा. मतदाताओं ने साफ कर दिया कि हम एक कर्मठ और जुझारू व्यक्ति को ही विधायक के रुप में देखना चाहते हैं. खैर आने वाले समय में ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि लोगों की अपेक्षाएं कितनी पूरी होती है और उनके पसंद का विधायक कौन होता है.