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'रेड लेडी' ने किया राज कपूर को मालामाल, जानें क्या है बात

मंडी में रेड लेडी बिकने की आवाज आए तो आप थोड़ा हैरान जरूर होंगे, लेकिन आपको पता चले कि यह पपीते का नाम है तो मुस्कुराए बगैर नहीं रह सकते. यह पपीता अपने नाम के साथ स्वाद में भी अनोखा है. लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड के पखन टोली गांव के किसान राज कपूर ने इसकी खेती कर अपनी तरक्की के रास्ते खोल लिए हैं.

Farming of Red Lady Papaya in Senha Block of Lohardaga
रेड लेडी पपीता
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Published : Feb 25, 2021, 6:37 PM IST

Updated : Feb 25, 2021, 8:17 PM IST

लोहरदगा : मंडी में रेड लेडी बिकने की आवाज आए तो आप थोड़ा हैरान जरूर होंगे, लेकिन आपको पता चले कि यह पपीते का नाम है तो मुस्कुराए बगैर नहीं रह सकते. इस पपीते का नाम ही नहीं इसका स्वाद भी आपको चौंक देगा. इसका मीठा स्वाद इसे बार-बार खरीदने के लिए प्रेरित करेगा. यह पपीता जिले के एक किसान के तरक्की के रास्ते खोल रही है. राज कपूर पपीते का उत्पादन कर अब तक लाखों रुपये मुनाफा कमा चुके हैं.

देखें स्पेशल खबर

ये भी पढ़ें- झारखंड का माउंटेन मैन: पत्नी के लिए पहाड़ का सीना चीर कर निकाला पानी

लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड के पखन टोली गांव के प्रगतिशील किसान राज कपूर भगत ने वर्ष 2018 में कृषि अनुसंधान केंद्र रांची से प्रशिक्षण लिया था. वहीं से राज कपूर को पांच हजार रुपये की कीमत पर रेड लेडी नाम के ताइवानी पपीते का बीज मिला था. इस बीज को उन्होंने महज 50 डिसमिल जमीन में लगाया. 4 से 5 महीने में ही पपीते का उत्पादन शुरू हो गया. देखते ही देखते राज कपूर हर सप्ताह 6 से 7 हजार रुपये की कमाई करने लगे. आज वह महज पांच हजार रुपये के बीज से लाखों रुपये का मुनाफा कमा चुके हैं.

पलायन रोकने में भी मददगार

राज कपूर कहते हैं कि इसके लिए न तो बहुत ज्यादा प्रशिक्षण की आवश्यकता है और न ही बहुत ज्यादा पूंजी की. सिंचाई संसाधन मजबूत हो तो पपीते की खेती से बेहतर कोई और खेती हो ही नहीं सकती है. पपीते की डिमांड साल भर बनी रहती है. एक पपीता बाजार में बड़े आराम से 50 से 60 रुपये प्रति पीस की दर से बिक जाता है. लोग हाथों-हाथ पपीता खरीद कर ले जाते हैं. यही नहीं पपीते की खेती में आसपास के ग्रामीणों को रोजगार भी मिलता है. खेत तैयार करने, पपीते की देखभाल, सिंचाई और बाजार में ले जाकर पपीता बेचने के लिए भी लोगों को मजदूरी आसानी से मिल जाती है. ऐसे में उन्हें पलायन नहीं करना पड़ता.

Farming of Red Lady Papaya in Senha Block of Lohardaga
लोहरदगा में ताइवानी पपीते रेड लेडी की खेती.

ये भी पढ़ें- नक्सल प्रभावित क्षेत्र में ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने की योजना विफल, सालों से स्वास्थ्य केंद्र अधूरा

उद्यान विभाग ने भी की मदद

राज कपूर ने कहा कि पपीते की खेती की एक मजेदार बात यह भी है कि हर दिन पपीते का उत्पादन होता है. पका पपीता पेड़ से निकलता है. जिसे बाजार ले जाकर बेचना होता है. ऐसे में आपको एक बार बीज लगाने पर 3 से 4 साल तक आराम से पपीता का उत्पादन मिलता रहता है. दूसरे फसलों के साथ ऐसा नहीं होता. उद्यान विभाग ने भी इसके लिए राज कपूर को सहयोग किया है.

बागवानी करने की अपील

भगत कहते हैं कि हमें परंपरागत खेती से अलग कुछ करने की कोशिश करनी चाहिए. हम फल और सब्जियों की खेती कर हालात सुधार सकते हैं. उन्होंने बताया कि कभी रोजगार की तलाश में वे भी पलायन करने के लिए मजबूर थे, लेकिन थोड़ी सी अलग सोच से हालात बदल गए हैं. उन्हें अलग पहचान भी मिली है. उन्होंने बताया कि उन्होंने दूसरे ग्रामीणों को भी रोजगार मुहैया कराया है. इससे वे भी पलायन करने से रूके.

लोहरदगा : मंडी में रेड लेडी बिकने की आवाज आए तो आप थोड़ा हैरान जरूर होंगे, लेकिन आपको पता चले कि यह पपीते का नाम है तो मुस्कुराए बगैर नहीं रह सकते. इस पपीते का नाम ही नहीं इसका स्वाद भी आपको चौंक देगा. इसका मीठा स्वाद इसे बार-बार खरीदने के लिए प्रेरित करेगा. यह पपीता जिले के एक किसान के तरक्की के रास्ते खोल रही है. राज कपूर पपीते का उत्पादन कर अब तक लाखों रुपये मुनाफा कमा चुके हैं.

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लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड के पखन टोली गांव के प्रगतिशील किसान राज कपूर भगत ने वर्ष 2018 में कृषि अनुसंधान केंद्र रांची से प्रशिक्षण लिया था. वहीं से राज कपूर को पांच हजार रुपये की कीमत पर रेड लेडी नाम के ताइवानी पपीते का बीज मिला था. इस बीज को उन्होंने महज 50 डिसमिल जमीन में लगाया. 4 से 5 महीने में ही पपीते का उत्पादन शुरू हो गया. देखते ही देखते राज कपूर हर सप्ताह 6 से 7 हजार रुपये की कमाई करने लगे. आज वह महज पांच हजार रुपये के बीज से लाखों रुपये का मुनाफा कमा चुके हैं.

पलायन रोकने में भी मददगार

राज कपूर कहते हैं कि इसके लिए न तो बहुत ज्यादा प्रशिक्षण की आवश्यकता है और न ही बहुत ज्यादा पूंजी की. सिंचाई संसाधन मजबूत हो तो पपीते की खेती से बेहतर कोई और खेती हो ही नहीं सकती है. पपीते की डिमांड साल भर बनी रहती है. एक पपीता बाजार में बड़े आराम से 50 से 60 रुपये प्रति पीस की दर से बिक जाता है. लोग हाथों-हाथ पपीता खरीद कर ले जाते हैं. यही नहीं पपीते की खेती में आसपास के ग्रामीणों को रोजगार भी मिलता है. खेत तैयार करने, पपीते की देखभाल, सिंचाई और बाजार में ले जाकर पपीता बेचने के लिए भी लोगों को मजदूरी आसानी से मिल जाती है. ऐसे में उन्हें पलायन नहीं करना पड़ता.

Farming of Red Lady Papaya in Senha Block of Lohardaga
लोहरदगा में ताइवानी पपीते रेड लेडी की खेती.

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उद्यान विभाग ने भी की मदद

राज कपूर ने कहा कि पपीते की खेती की एक मजेदार बात यह भी है कि हर दिन पपीते का उत्पादन होता है. पका पपीता पेड़ से निकलता है. जिसे बाजार ले जाकर बेचना होता है. ऐसे में आपको एक बार बीज लगाने पर 3 से 4 साल तक आराम से पपीता का उत्पादन मिलता रहता है. दूसरे फसलों के साथ ऐसा नहीं होता. उद्यान विभाग ने भी इसके लिए राज कपूर को सहयोग किया है.

बागवानी करने की अपील

भगत कहते हैं कि हमें परंपरागत खेती से अलग कुछ करने की कोशिश करनी चाहिए. हम फल और सब्जियों की खेती कर हालात सुधार सकते हैं. उन्होंने बताया कि कभी रोजगार की तलाश में वे भी पलायन करने के लिए मजबूर थे, लेकिन थोड़ी सी अलग सोच से हालात बदल गए हैं. उन्हें अलग पहचान भी मिली है. उन्होंने बताया कि उन्होंने दूसरे ग्रामीणों को भी रोजगार मुहैया कराया है. इससे वे भी पलायन करने से रूके.

Last Updated : Feb 25, 2021, 8:17 PM IST
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