लोहरदगा: सब्र और कर्म हमेशा फल मीठा देता है, जब हम कर्म करते हैं तो हमारी जिंदगी फूलों से खिल उठती है. जिंदगी में मुस्कुराहट लौटने लगती है. लोहरदगा जिला में रोजगार एक गंभीर समस्या रही है. बड़े उद्योग, कल-कारखाने नहीं होने की वजह से यहां पर खेती ही रोजगार का सबसे बड़ा माध्यम है. परंपरागत खेती के दम पर किसान किसी प्रकार से अपनी जिंदगी की गाड़ी खींचने की कोशिश करता है. कुछ किसानों को कामयाबी मिलती है, तो कुछ थक कर बैठ जाते हैं. लोहरदगा के कुड़ू में किसान एलेन कुजूर की मेहनत ने यह बता दिया कि सफलता की कोई उम्र नहीं होती. मेहनत करने वाला हर व्यक्ति सफल होता है.
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मेहनत और सोच से मिली सफलता
थोड़ी सी मेहनत, थोड़ी सी पूंजी और थोड़ी सी देखरेख कुछ ही महीनों में ऐलन कुजूर को आर्थिक रुप से मुनाफा होने लगा है. आज ऐलन कुजूर काफी खुशहाल है. कहते हैं कोशिश की जाए तो कभी और असफलता नहीं मिलती है. बस सोच मजबूत होनी चाहिए. ऐलन कुजूर को देखकर अन्य किसान भी अब फूल और फल की खेती की ओर मुड़ रहे है. बाजार आसानी से उपलब्ध हो जाता है. पपीता के खरीदार खेतों तक पहुंचकर पपीता खरीद कर ले जाते है. हालांकि खेतों तक आने वाले व्यापारी पपीते की कम कीमत देते हैं. जब एलएन खुद पपीता को बाजार तक पहुंचाते है तो उसकी अच्छी कीमत मिलती है. एक पपीता कम से कम 20 से 40 रुपये के बीच बिक जाता है. वहीं गेंदा का फूल और जरबेरा के फूल की भी अच्छी कीमत और डिमांड है. परंपरागत खेती से अलग पपीता और फूल की खेती ने किसानों को आर्थिक रूप से मजबूती दी है.