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लोहरदगा में बेटी ने पिता को दी मुखाग्नि, किया अंतिम संस्कार

लोहरदगा के सेन्हा बरही गांव में बेटी ने पिता को मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज पूरा किया. बताया जा रहा है कि रितेश कुमार साहू को पुत्र नहीं है सिर्फ एक पुत्री है. उनके निधन के बाद मुखाग्नि कौन देगा, यह सवाल उठने लगा. बेटी ने इस समस्या का निदान कर दिया, जिसका गवाह ग्रामीण बने.

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Published : Jan 24, 2022, 8:14 AM IST

Daughter performs funeral of father
लोहरदगा में बेटी ने पिता को दी मुखाग्नि

लोहरदगाः सेन्हा बरही गांव के रहने वाले रितेश कुमार साहू की इलाज के दौरान मौत हो गई. उनकी चिता को मुखाग्नि कौन देगा इसे लेकर लोगों के मन में सवाल उठ रहे थे. इसकी वजह यह थी कि रितेश को कोई पुत्र नहीं है और सिर्फ एक पुत्री है. सभी सवालों पर विराम लगाते हुए उसकी दस वर्षीय बेटी ने पिता को मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार किया.

यह भी पढ़ेंःपंचतत्व में विलीन हुआ शहीद जवान मंजीत झा का पार्थिव शरीर, 6 साल की बेटी ने दी मुखाग्नि

अब यह बात पुरानी हो गई, जब सिर्फ बेटे ही परिवार के सदस्यों को मुखाग्नि दे सकते हैं. बदलते दौर में समय के साथ लोगों की सोच भी बदलने लगी है. अब महिलाएं रूढ़िवादी परंपरा को दरकिनार कर महिला सशक्तिकरण की ओर अपना कदम बढ़ा रही हैं. इसकी मिसाल सेन्हा बरही गांव की दस वर्षीय बेटी मिष्टी ने दी है.

रितेश साहू नामक शख्स की मौत हो गई. उसकी अंतिम यात्रा घर से निकली और बरही मुक्तिधाम पर पहुंची. जहां उनकी बेटी मिष्टी ने उनका अंतिम संस्कार किया और पिता की चिता को मुखाग्नि दी. मौके पर लोहरदगा जिला परिषद के सदस्य रामलखन प्रसाद, मुखिया सुखदेव उरांव, अमर भगत, महावीर साहू, त्रिपुरेश्वर पाठक श्यामाधार पाठक, परमानन्द महतो,धरमु महतो, मनोज साहू, दिलीप साहू, अभिमन्यु साहू, बहादुर महतो, सीताराम महतो, भीम महतो, शक्ति साहू, बंटी साहू, परमानंद प्रसाद, चतर्गुण महतो,सुनील महतो, विनोद महतो समेत सैकड़ो ग्रामीण मौजूद थे.

समाज में यह धारणा है कि एक पिता को पुत्र ही मुखाग्नि दे सकता है. लेकिन लोहरदगा में एक बेटी ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर समाज को जागरूक किया है. 10 वर्षीय बच्ची ने रूढ़िवादी परंपराओं के साथ साथ सोच को भी बदला है और अपने समाज को प्रेरित किया है. एक बेटी की ओर से उठाए कदम की सभी लोगों ने सराहना की है.

लोहरदगाः सेन्हा बरही गांव के रहने वाले रितेश कुमार साहू की इलाज के दौरान मौत हो गई. उनकी चिता को मुखाग्नि कौन देगा इसे लेकर लोगों के मन में सवाल उठ रहे थे. इसकी वजह यह थी कि रितेश को कोई पुत्र नहीं है और सिर्फ एक पुत्री है. सभी सवालों पर विराम लगाते हुए उसकी दस वर्षीय बेटी ने पिता को मुखाग्नि दी और अंतिम संस्कार किया.

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अब यह बात पुरानी हो गई, जब सिर्फ बेटे ही परिवार के सदस्यों को मुखाग्नि दे सकते हैं. बदलते दौर में समय के साथ लोगों की सोच भी बदलने लगी है. अब महिलाएं रूढ़िवादी परंपरा को दरकिनार कर महिला सशक्तिकरण की ओर अपना कदम बढ़ा रही हैं. इसकी मिसाल सेन्हा बरही गांव की दस वर्षीय बेटी मिष्टी ने दी है.

रितेश साहू नामक शख्स की मौत हो गई. उसकी अंतिम यात्रा घर से निकली और बरही मुक्तिधाम पर पहुंची. जहां उनकी बेटी मिष्टी ने उनका अंतिम संस्कार किया और पिता की चिता को मुखाग्नि दी. मौके पर लोहरदगा जिला परिषद के सदस्य रामलखन प्रसाद, मुखिया सुखदेव उरांव, अमर भगत, महावीर साहू, त्रिपुरेश्वर पाठक श्यामाधार पाठक, परमानन्द महतो,धरमु महतो, मनोज साहू, दिलीप साहू, अभिमन्यु साहू, बहादुर महतो, सीताराम महतो, भीम महतो, शक्ति साहू, बंटी साहू, परमानंद प्रसाद, चतर्गुण महतो,सुनील महतो, विनोद महतो समेत सैकड़ो ग्रामीण मौजूद थे.

समाज में यह धारणा है कि एक पिता को पुत्र ही मुखाग्नि दे सकता है. लेकिन लोहरदगा में एक बेटी ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर समाज को जागरूक किया है. 10 वर्षीय बच्ची ने रूढ़िवादी परंपराओं के साथ साथ सोच को भी बदला है और अपने समाज को प्रेरित किया है. एक बेटी की ओर से उठाए कदम की सभी लोगों ने सराहना की है.

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