लोहरदगा: जिला लोहरदगा भले ही या छोटा हो पर राजनीतिक दृष्टिकोण से हमेशा से ही इसकी अपनी एक अलग पहचान रही है. इस बार भी लोहरदगा की राजनीति पूरे राज्य में सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही है. वजह साफ है कि विधानसभा चुनाव में लोहरदगा एक हॉट सीट बन चुकी है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी, आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. तीनों ही दलों से बड़े नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला बेहद रोचक हो चुका है. यहां सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.
लोहरदगा विधानसभा सीट से आजसू ने कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को फिर एक बार चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 के चुनाव में कमल किशोर भगत ने लोहरदगा विधानसभा सीट पर सुखदेव भगत को हराकर यह सीट आजसू की झोली में डाली थी. इसके बाद कमल किशोर भगत को सजा हुई तो साल 2015 के विधानसभा उपचुनाव में कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को चुनाव मैदान में उतारा गया था. इस बार भी नीरू शांति भगत को ही चुनाव मैदान में उतारकर आजसू ने एक बड़ा दांव खेला है.
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लोहरदगा सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की प्रतिष्ठा
सुखदेव भगत के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद लोहरदगा में कांग्रेस पार्टी में एक शून्यता आ गई थी. जिसे भरना कांग्रेस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो चुका था. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव को खुद लोहरदगा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया. ऐसे में लोहरदगा विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए न सिर्फ प्रतिष्ठा का विषय है, बल्कि कांग्रेस के लिए एक तरह से अपनी साख बचाने का मौका भी है. लोहरदगा विधानसभा सीट में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष खुद भी कहते हैं कि चाहे मुकाबला किसी से भी हो जीतना तो कांग्रेस को ही है.
भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब
रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है.
रामेश्वर उरांव से नाराज सुखदेव ने थामा भगवा
रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है.
सुखदेव भगत कहते हैं कि जो नेता इस बार चुनाव मैदान में है, पहले उन्हें जनता को यह बताना चाहिए कि वह पिछले 5 सालों से कहां थे. उन्होंने जनता की कौन सी समस्याओं और मुद्दों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश की. इन लोगों की हालत किसी मौसमी फल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. जनता सब कुछ जानती है और निश्चित रूप से लोहरदगा विधानसभा सीट भगवा फहराएगी.