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झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: लोहरदगा विधानसभा सीट पर महामुकाबला, दांव पर भाजपा-आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा - assembly election 2019

लोहरदगा विधानसभा सीट से आजसू ने कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को फिर एक बार चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 के चुनाव में कमल किशोर भगत ने लोहरदगा विधानसभा सीट पर सुखदेव भगत को हराकर यह सीट आजसू की झोली में डाली थी. इसके बाद कमल किशोर भगत को सजा हुई तो साल 2015 के विधानसभा उपचुनाव में कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को चुनाव मैदान में उतारा गया था. इस बार भी नीरू शांति भगत को ही चुनाव मैदान में उतारकर आजसू ने एक बड़ा दांव खेला है.

दांव पर भाजपा-आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा
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Published : Nov 16, 2019, 8:45 AM IST

लोहरदगा: जिला लोहरदगा भले ही या छोटा हो पर राजनीतिक दृष्टिकोण से हमेशा से ही इसकी अपनी एक अलग पहचान रही है. इस बार भी लोहरदगा की राजनीति पूरे राज्य में सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही है. वजह साफ है कि विधानसभा चुनाव में लोहरदगा एक हॉट सीट बन चुकी है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी, आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. तीनों ही दलों से बड़े नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला बेहद रोचक हो चुका है. यहां सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.

वीडियो में देखें पूरी खबर

लोहरदगा विधानसभा सीट से आजसू ने कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को फिर एक बार चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 के चुनाव में कमल किशोर भगत ने लोहरदगा विधानसभा सीट पर सुखदेव भगत को हराकर यह सीट आजसू की झोली में डाली थी. इसके बाद कमल किशोर भगत को सजा हुई तो साल 2015 के विधानसभा उपचुनाव में कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को चुनाव मैदान में उतारा गया था. इस बार भी नीरू शांति भगत को ही चुनाव मैदान में उतारकर आजसू ने एक बड़ा दांव खेला है.

ये भी पढ़ें- BJP से गठबंधन पर अब भी संशय, सुदेश बोले- ऊंचाई पर चले जाने के बाद नीचे की चीजें नहीं आती हैं नजर

लोहरदगा सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की प्रतिष्ठा

सुखदेव भगत के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद लोहरदगा में कांग्रेस पार्टी में एक शून्यता आ गई थी. जिसे भरना कांग्रेस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो चुका था. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव को खुद लोहरदगा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया. ऐसे में लोहरदगा विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए न सिर्फ प्रतिष्ठा का विषय है, बल्कि कांग्रेस के लिए एक तरह से अपनी साख बचाने का मौका भी है. लोहरदगा विधानसभा सीट में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष खुद भी कहते हैं कि चाहे मुकाबला किसी से भी हो जीतना तो कांग्रेस को ही है.

भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब

रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है.

रामेश्वर उरांव से नाराज सुखदेव ने थामा भगवा

रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है.

सुखदेव भगत कहते हैं कि जो नेता इस बार चुनाव मैदान में है, पहले उन्हें जनता को यह बताना चाहिए कि वह पिछले 5 सालों से कहां थे. उन्होंने जनता की कौन सी समस्याओं और मुद्दों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश की. इन लोगों की हालत किसी मौसमी फल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. जनता सब कुछ जानती है और निश्चित रूप से लोहरदगा विधानसभा सीट भगवा फहराएगी.

लोहरदगा: जिला लोहरदगा भले ही या छोटा हो पर राजनीतिक दृष्टिकोण से हमेशा से ही इसकी अपनी एक अलग पहचान रही है. इस बार भी लोहरदगा की राजनीति पूरे राज्य में सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही है. वजह साफ है कि विधानसभा चुनाव में लोहरदगा एक हॉट सीट बन चुकी है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी, आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. तीनों ही दलों से बड़े नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला बेहद रोचक हो चुका है. यहां सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.

वीडियो में देखें पूरी खबर

लोहरदगा विधानसभा सीट से आजसू ने कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को फिर एक बार चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 के चुनाव में कमल किशोर भगत ने लोहरदगा विधानसभा सीट पर सुखदेव भगत को हराकर यह सीट आजसू की झोली में डाली थी. इसके बाद कमल किशोर भगत को सजा हुई तो साल 2015 के विधानसभा उपचुनाव में कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को चुनाव मैदान में उतारा गया था. इस बार भी नीरू शांति भगत को ही चुनाव मैदान में उतारकर आजसू ने एक बड़ा दांव खेला है.

ये भी पढ़ें- BJP से गठबंधन पर अब भी संशय, सुदेश बोले- ऊंचाई पर चले जाने के बाद नीचे की चीजें नहीं आती हैं नजर

लोहरदगा सीट पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की प्रतिष्ठा

सुखदेव भगत के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद लोहरदगा में कांग्रेस पार्टी में एक शून्यता आ गई थी. जिसे भरना कांग्रेस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो चुका था. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव को खुद लोहरदगा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया. ऐसे में लोहरदगा विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए न सिर्फ प्रतिष्ठा का विषय है, बल्कि कांग्रेस के लिए एक तरह से अपनी साख बचाने का मौका भी है. लोहरदगा विधानसभा सीट में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष खुद भी कहते हैं कि चाहे मुकाबला किसी से भी हो जीतना तो कांग्रेस को ही है.

भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब

रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है.

रामेश्वर उरांव से नाराज सुखदेव ने थामा भगवा

रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है.

सुखदेव भगत कहते हैं कि जो नेता इस बार चुनाव मैदान में है, पहले उन्हें जनता को यह बताना चाहिए कि वह पिछले 5 सालों से कहां थे. उन्होंने जनता की कौन सी समस्याओं और मुद्दों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश की. इन लोगों की हालत किसी मौसमी फल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. जनता सब कुछ जानती है और निश्चित रूप से लोहरदगा विधानसभा सीट भगवा फहराएगी.

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स्टोरी- लोहरदगा विधानसभा सीट में महामुकाबला, भाजपा-आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर
एंकर- जिला भले ही या छोटा हो पर राजनीतिक दृष्टिकोण से हमेशा से ही इसकी अपनी एक अलग पहचान रही है. इस बार भी लोहरदगा की राजनीति पूरे राज्य में सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही है. वजह साफ है कि विधानसभा चुनाव में लोहरदगा एक हॉट सीट बन चुका है. यहां पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी, आजसू और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. तीनों ही दलों से बड़े नेताओं के चुनाव मैदान में उतरने से मुकाबला बेहद रोचक हो चुका है. यहां पल-पल बदलते राजनीतिक हालात ने मतदाताओं को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है. राजनीतिक दल के प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रहे हैं.

बाइट- नीरू शांति भगत, प्रत्याशी, आजसू

वी/ओ- लोहरदगा विधानसभा सीट से आजसू ने कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को फिर एक बार चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 के चुनाव में कमल किशोर भगत ने लोहरदगा विधानसभा सीट में सुखदेव भगत को हराकर यह सीट आजसू की झोली में डाल दिया था. इसके बाद कमल किशोर भगत को सजा हुई तो साल 2015 के विधानसभा उपचुनाव में कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत को चुनाव मैदान में उतारा गया था. इस बार भी नीरू शांति भगत को ही चुनाव मैदान में उतारकर आजसू ने एक बड़ा दांव खेला है.

बाइट- रामेश्वर उरांव, प्रत्याशी, कांग्रेस

वी/ओ- सुखदेव भगत के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद लोहरदगा में कांग्रेस पार्टी में एक शून्यता आ गई थी. जिसे भरना कांग्रेस के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण हो चुका था. ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर राम को खुद लोहरदगा विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया. ऐसे में लोहरदगा विधानसभा सीट कांग्रेस के लिए न सिर्फ प्रतिष्ठा का विषय है, बल्कि कांग्रेस के लिए एक तरह से अपनी साख बचाने का मौका भी है. लोहरदगा विधानसभा सीट में कांग्रेस पार्टी अपनी जीत का दावा कर रही है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष खुद भी कहते हैं कि चाहे मुकाबला किसी से भी हो जीतना तो कांग्रेस को ही है.

बाइट- सुखदेव भगत, प्रत्याशी, भाजपा

वी/ओ- रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है. सुखदेव भगत कहते हैं कि जो नेता इस बार चुनाव मैदान में है, पहले उन्हें जनता को यह बताना चाहिए कि वह पिछले 5 सालों से कहां थे. उन्होंने जनता की कौन सी समस्याओं और मुद्दों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश की. इन लोगों की हालत किसी मौसमी फल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. जनता सब कुछ जानती है और निश्चित रूप से लोहरदगा विधानसभा सीट में भाजपा और उन्हें जीत मिलेगी.


Body:रामेश्वर उरांव को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सुखदेव भगत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. सुखदेव भगत को लोहरदगा विधानसभा सीट से टिकट दिलाने को लेकर राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति गरमा गई. भाजपा और आजसू के बीच के रिश्ते खराब हो गए. सुखदेव भगत को टिकट तो मिल गया पर सुखदेव भगत के लिए लोहरदगा विधानसभा सीट को निकाल पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है. कांग्रेस के रामेश्वर उरांव और आजसू की नीरू शांति भगत के चुनावी मैदान में उतरने से सुखदेव भगत के लिए मुकाबला काफी जटिल हो चुका है. सुखदेव भगत कहते हैं कि जो नेता इस बार चुनाव मैदान में है, पहले उन्हें जनता को यह बताना चाहिए कि वह पिछले 5 सालों से कहां थे. उन्होंने जनता की कौन सी समस्याओं और मुद्दों को लेकर आवाज उठाने की कोशिश की. इन लोगों की हालत किसी मौसमी फल से ज्यादा कुछ भी नहीं है. जनता सब कुछ जानती है और निश्चित रूप से लोहरदगा विधानसभा सीट में भाजपा और उन्हें जीत मिलेगी.


Conclusion:लोहरदगा विधानसभा सीट में भाजपा, आजसू और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय हो चुका है. यहां पर मुकाबला सीधे सीधे त्रिकोणीय नजर आ रहा है.
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