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SPECIAL: तीन पहियों पर दौड़ रही थी जिंदगी, लॉकडाउन ने लगाया ब्रेक

लॉकडाउन के चलते हर कोई परेशान है. अब कई लोगों के सामने खाने-पीने की समस्या खड़ी हो रही है. ऐसे में लोहरदगा के ऑटो चालक के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल हो रहा है.

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Published : May 11, 2020, 4:52 PM IST

Updated : May 11, 2020, 9:02 PM IST

लोहरदगा: जिले में तीन पहियों पर लगभग ढाई हजार परिवारों की जिंदगी दौड़ती है. तीन पहियों का अर्थ ऑटो परिचालन से है. लोहरदगा में ऑटो चलाकर लगभग ढाई हजार परिवार गुजारा करते हैं. लॉकडाउन की मार ऐसी पड़ी की जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लग गई. अब तो दो वक्त के लिए रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल है. ऑटो का ऋण भरने की चिंता अलग से है. घर का खर्च, बीमारी की परेशानी ने भी ऑटो चालकों को मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान कर दिया है. लॉकडाउन की वजह से तीन पहियों की जिंदगी पर ब्रेक लग चुका है. समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी परिस्थिति का सामना कब तक करना पड़ेगा.

देखें पूरी खबर
सीधे तौर पर प्रभावित हुई जिंदगीलोहरदगा में ऑटो का परिचालन स्थानीय तौर पर आवागमन का प्रमुख जरिया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोहरदगा-रांची रेल के परिचालन को लेकर लोहरदगा रेलवे स्टेशन और विभिन्न गांव की दूरी को तय करने में यात्रियों के लिए यही ऑटो सहारा बनते हैं. लोहरदगा में बड़ी लाइन की शुरूआत के साथ ही ऑटो का परिचालन भी शुरू हो गया था. इस बात को लगभग 16 साल हो चुके हैं. इन 16 सालों में बढ़ते-बढ़ते ढाई हजार ऑटो चालक लोहरदगा में हो गए. आसानी से बैंक का ऋण और छोटी किस्त के साथ ऑटो चलाकर अपने परिवार का गुजारा करने वाले ऑटो चालकों के लिए यह लॉकडाउन जैसे किसी मुसीबत के समान है.
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ऑटो की सफाई करता चालक

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चाची का निधन, घर जा‍कर सीएम ने परिजनों को दी सांत्‍वना

मानसिक रूप से परेशान

तमाम ऑटो बंद पड़े हुए हैं. बैंक के ऋण और ब्याज धड़ाधड़ बढ़ रहे हैं. गरीब ऑटो चालकों के लिए परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो चुका है. संकोच ऐसी कि सामने आकर कुछ कहना भी नहीं चाहते. मजबूरी ऐसी कि किसी को बता भी नहीं सकते. कुल मिलाकर इनकी जिंदगी बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है. झारखंड प्रदेश डीजल ऑटो चालक महासंघ के पदाधिकारी कहते हैं कि सरकार को इन पर ध्यान देना चाहिए. इन ऑटो चालकों के लिए यही तो घर चलाने का एकमात्र जरिया था. सरकार कम से कम दो 2000 रुपए इन्हें हर महीने दे. इसके अलावे बैंक ऋण और ब्याज को लेकर भी उचित कदम उठाया जाए. जिससे कि इन्हें मानसिक रूप से परेशान न होना पड़े.

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लॉकडाउन में थमे ऑटो के पहिए

ये भी पढ़ें- सूरत से लौटे थे गिरिडीह के कोरोना मरीज, 6 मई को स्पेशल ट्रेन से पहुंचे थे धनबाद

फिलहाल खत्म होने वाली नहीं है परेशानी

यह परेशानी फिलहाल खत्म होने वाली नहीं है. यदि लॉकडॉउन के बाद ग्रीन जोन वाले क्षेत्रों में राहत दी भी गई तो ऑटो में यात्रियों के बैठाने को लेकर संख्या को सिमित कर दिया जाएगा. ऐसे में एक या दो यात्रियों को लेकर चल पाना भी बेहद मुश्किल है. न तो उतना किराया मिलेगा और न ही ऐसी परिस्थिति में ऑटो परिचालन से बैंक का ऋण ही भर पाएंगे.

लोहरदगा: जिले में तीन पहियों पर लगभग ढाई हजार परिवारों की जिंदगी दौड़ती है. तीन पहियों का अर्थ ऑटो परिचालन से है. लोहरदगा में ऑटो चलाकर लगभग ढाई हजार परिवार गुजारा करते हैं. लॉकडाउन की मार ऐसी पड़ी की जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लग गई. अब तो दो वक्त के लिए रोटी का जुगाड़ कर पाना भी मुश्किल है. ऑटो का ऋण भरने की चिंता अलग से है. घर का खर्च, बीमारी की परेशानी ने भी ऑटो चालकों को मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान कर दिया है. लॉकडाउन की वजह से तीन पहियों की जिंदगी पर ब्रेक लग चुका है. समझ में नहीं आ रहा कि ऐसी परिस्थिति का सामना कब तक करना पड़ेगा.

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सीधे तौर पर प्रभावित हुई जिंदगीलोहरदगा में ऑटो का परिचालन स्थानीय तौर पर आवागमन का प्रमुख जरिया है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लोहरदगा-रांची रेल के परिचालन को लेकर लोहरदगा रेलवे स्टेशन और विभिन्न गांव की दूरी को तय करने में यात्रियों के लिए यही ऑटो सहारा बनते हैं. लोहरदगा में बड़ी लाइन की शुरूआत के साथ ही ऑटो का परिचालन भी शुरू हो गया था. इस बात को लगभग 16 साल हो चुके हैं. इन 16 सालों में बढ़ते-बढ़ते ढाई हजार ऑटो चालक लोहरदगा में हो गए. आसानी से बैंक का ऋण और छोटी किस्त के साथ ऑटो चलाकर अपने परिवार का गुजारा करने वाले ऑटो चालकों के लिए यह लॉकडाउन जैसे किसी मुसीबत के समान है.
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ऑटो की सफाई करता चालक

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मानसिक रूप से परेशान

तमाम ऑटो बंद पड़े हुए हैं. बैंक के ऋण और ब्याज धड़ाधड़ बढ़ रहे हैं. गरीब ऑटो चालकों के लिए परिवार का गुजारा करना मुश्किल हो चुका है. संकोच ऐसी कि सामने आकर कुछ कहना भी नहीं चाहते. मजबूरी ऐसी कि किसी को बता भी नहीं सकते. कुल मिलाकर इनकी जिंदगी बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है. झारखंड प्रदेश डीजल ऑटो चालक महासंघ के पदाधिकारी कहते हैं कि सरकार को इन पर ध्यान देना चाहिए. इन ऑटो चालकों के लिए यही तो घर चलाने का एकमात्र जरिया था. सरकार कम से कम दो 2000 रुपए इन्हें हर महीने दे. इसके अलावे बैंक ऋण और ब्याज को लेकर भी उचित कदम उठाया जाए. जिससे कि इन्हें मानसिक रूप से परेशान न होना पड़े.

Auto driver upset in Lohardaga, Lohardaga Auto Driver Association, Jharkhand Pradesh Diesel Auto Driver Federation, लोहरदगा में ऑटो चालक परेशान, लोहरदगा ऑटो चालक संघ, झारखंड प्रदेश डीजल ऑटो चालक महासंघ
लॉकडाउन में थमे ऑटो के पहिए

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फिलहाल खत्म होने वाली नहीं है परेशानी

यह परेशानी फिलहाल खत्म होने वाली नहीं है. यदि लॉकडॉउन के बाद ग्रीन जोन वाले क्षेत्रों में राहत दी भी गई तो ऑटो में यात्रियों के बैठाने को लेकर संख्या को सिमित कर दिया जाएगा. ऐसे में एक या दो यात्रियों को लेकर चल पाना भी बेहद मुश्किल है. न तो उतना किराया मिलेगा और न ही ऐसी परिस्थिति में ऑटो परिचालन से बैंक का ऋण ही भर पाएंगे.

Last Updated : May 11, 2020, 9:02 PM IST
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