लोहरदगाः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के गांवों को विकास के पथ पर आगे ले जाने को लेकर सांसद आदर्श ग्राम की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री के आह्वाहन पर सांसदों ने अलग-अलग क्षेत्रों में कई गांवों का चयन सांसद आदर्श ग्राम के रूप में किया था. उम्मीद की गई थी कि सांसदों के माध्यम से इन गांवों का कायाकल्प होगा. गांव में बुनियादी सुविधाएं बढ़ेंगी, समस्याओं को कम किया जा सकेगा और लोगों के सपने पूरे होंगे.आज कितने समय के बाद भी सांसद ग्राम की स्थिति को देखकर यह कहना गलत नहीं की अरमानों के आसमान में सांसद गांव विकास के लिए आंसू बहा रहे हैं.
लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड के अरेया गांव को भाजपा के सांसद सुदर्शन भगत ने गोद लिया था. सांसद इस गांव में दो तीन बार गए भी हैं. लोगों को भरोसा दिलाया कि गांव का विकास किया जाएगा, जो भी समस्याएं होंगी उसे खत्म किया जाएगा. भले ही ऐसा हुआ कुछ नहीं है. सांसद गांव का विकास नहीं होने के आरोप को एक सिरे से खारिज भी करते हैं.
लोहरदगा जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर यह गांव आज भी उसी स्थिति में है, जिस स्थिति में इसे गोद लिया गया था. गांव में न तो पेयजल की बेहतर व्यवस्था है और ना ही अन्य सुविधाएं. गांव जाने वाली सड़क की हालत को देखकर ही यह समझ में आ जाता है कि सांसद आदर्श ग्राम के नाम पर इस गांव को क्या मिला होगा. टूटी-फूटी सड़क और कच्ची सड़क सांसद आदर्श ग्राम के नाम पर किए गए भद्दे मजाक को दर्शाती है.
गांव में शिक्षा के नाम पर जो मध्य विद्यालय स्थित है, वहां महज 2 शिक्षक हैं जबकि कक्षाएं 8. विद्यालय का किचन शेड और शौचालय जर्जर अवस्था की सीमाओं को पार कर चुका है. बच्चों के खेलने के लिए ना तो मैदान है और ना ही अन्य सुविधाएं. शिक्षकों ने कई बार समस्याओं से विभाग को अवगत कराया, परंतु आज तक इस विद्यालय का कायाकल्प नहीं हो सका है.
अरेया गांव में पंचायत भवन है तो जरूर पर वहां किसी के दर्शन नहीं होते. कभी ताला बंद रहता है तो कभी खुले रहने के बावजूद प्रतिनिधि और अधिकारियों के दर्शन नहीं होते. गांव में साफ सफाई की भी लचर व्यवस्था है. इस गांव में बाल विकास परियोजना की हालत भी काफी दयनीय है. भवन का रंग रोगन तो हुआ है पर आंगनबाड़ी केंद्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी है. लोगों के पास रोजगार के साधन नहीं है, कोई ठेला लगाकर गुजारा कर रहा है तो कोई लकड़ी बेचकर पेट पालने की चुनौती का सामना कर रहा है.
गांव में यदि विकास के नाम पर कुछ हुआ है तो चंद शौचालय बनाए गए हैं, बिजली पहुंच गई है, परंतु भला इससे क्या होने वाला है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक गांव की आबादी 1740 है. इस गांव में 303 परिवार निवास करते हैं. अरेया गांव में 889 पुरुष और 851 महिलाएं निवास करती हैं. यहां पर अनुसूचित जनजाति की आबादी 941 है. यदि शिक्षा के प्रतिशत की बात करें तो सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस गांव में 63.23 प्रतिशत लोग शिक्षित हैं. जिसमें 71.90 प्रतिशत पुरुष और 54.22 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं. 1740 लोगों में से 947 लोग मजदूरों की श्रेणी में आते हैं. यह लोग मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं.
ग्रामीणों का साफ कहना है कि गांव में बुनियादी सुविधाएं तो है ही नहीं. यहां पर न तो सड़क का ठीक ढंग से पता है ना ही पीने के लिए पानी है. सिंचाई संसाधनों की कमी की वजह से खेती भी ठीक तरीके से नहीं हो पाती है. स्कूल में शिक्षकों की कमी और बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. गांव के लोग सांसद आदर्श ग्राम के नाम पर खुद को ठगा महसूस करते हैं. इससे तो अच्छा होता कि उन्हें उनकी हालत में ही छोड़ दिया जाता.